मैं तंग आ गया हूँ , अपने ही ज़ेहन से ,
मुझे दागों से पैबस्त चेहरा दिखाता है !
क्यों मुझे याद दिलाता है , शहंशाह था मैं ,
और लुटा दी थी दुनियाँ , वाह वाही के लिए !
जो मुझे ले आते थे घर कहारों की तरह ,
मैं भूल गया , मेरी अमीरी को हवा देते हैं !
उनको चाहिए था इक शिकार महज़ , खून से भरा ,
जोंकें हैं , मुर्दों को कहाँ चिपकती हैं !
अब बदहाल पड़ा हूँ , घर के कोने में ,निचुड़ा हुआ ,
इतनी भी मय नसीब नहीं , के भूलूँ , ख़ुद को !
चले जाओ , चले जाओ , मुझे हमदर्दी नहीं माफ़िक ,
मैं तंगहाल में ख़ुश हूँ , जी लूँगा खूब !
तुम कल भी नकली थे आज भी नकली हो ,
ना जय बोलो तुम , इसके हक़दार नहीं हो !
मैं तो शहंशाह हूँ , ख़ुश था जो शहंशाही में ,
मुझे आता है बहुत अच्छे से मरना भी , जंग के बाद !
पर मैं तंग आ गया हूँ अपने ही ज़ेहन से ,
मुझे दागों से पैबस्त चेहरा दिखाता है !!
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