Friday, 27 January 2012


मैं   तंग   आ   गया   हूँ  ,  अपने  ही  ज़ेहन   से   ,
मुझे   दागों   से   पैबस्त   चेहरा   दिखाता   है !
क्यों   मुझे   याद   दिलाता   है   ,  शहंशाह   था   मैं  ,
और   लुटा दी   थी   दुनियाँ   ,  वाह   वाही   के   लिए  !
जो   मुझे   ले   आते   थे   घर   कहारों   की   तरह  ,
मैं   भूल   गया   ,  मेरी   अमीरी   को   हवा   देते   हैं  !
उनको    चाहिए   था   इक  शिकार  महज़  ,  खून   से   भरा  ,
जोंकें   हैं   ,  मुर्दों   को   कहाँ   चिपकती   हैं  !
अब   बदहाल   पड़ा   हूँ  ,  घर   के   कोने   में  ,निचुड़ा   हुआ  ,
इतनी   भी  मय  नसीब   नहीं  , के   भूलूँ  ,  ख़ुद   को  !
चले   जाओ   ,  चले   जाओ  ,  मुझे   हमदर्दी   नहीं   माफ़िक  ,
मैं   तंगहाल  में   ख़ुश   हूँ  ,  जी   लूँगा   खूब  !
तुम   कल   भी   नकली   थे   आज   भी   नकली   हो   ,
ना   जय   बोलो   तुम  ,  इसके   हक़दार   नहीं   हो  !
मैं   तो   शहंशाह   हूँ   ,  ख़ुश   था   जो   शहंशाही   में  ,
मुझे   आता   है   बहुत   अच्छे   से   मरना   भी   ,  जंग   के बाद  !
पर   मैं   तंग   आ   गया   हूँ   अपने   ही   ज़ेहन   से   ,
मुझे   दागों   से   पैबस्त   चेहरा   दिखाता   है  !!

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