रास्ते चारों तरफ के थे जब बंद , ख़ुदा ने यकदम मुझे आज़ाद किया !
बाहर की हवा लगते ही , मैंने फिर ख़ुदा की हस्ती पे सवाल किया !!
.......................
मैं परदे में हूँ , तो ख़ुदा ने किये हैं परदे ,
देर कितनी है , चर्चे में खबर आने को ?
..........................
मैं ख़ुद ही का सताया हूँ ,
दूजा मुझे सता के करेगा भी क्या ?
हार मानना मेरी फितरत में नहीं ,
और इल्ज़ाम ख़ुदा को दिए जाता हूँ !!
.........
हर कली इक राज़ है दिल की तरह ,
खिलने पे ख़ुशबू बिखरती है और मुट्ठी में आती नहीं !
हवाएं कैसी फिज़ाओं में हैं , और कैसे हैं कद्रदान ? शोहरत उसी अंदाज़ में मिला करती है !!
बाहर की हवा लगते ही , मैंने फिर ख़ुदा की हस्ती पे सवाल किया !!
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मैं परदे में हूँ , तो ख़ुदा ने किये हैं परदे ,
देर कितनी है , चर्चे में खबर आने को ?
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मैं ख़ुद ही का सताया हूँ ,
दूजा मुझे सता के करेगा भी क्या ?
हार मानना मेरी फितरत में नहीं ,
और इल्ज़ाम ख़ुदा को दिए जाता हूँ !!
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हर कली इक राज़ है दिल की तरह ,
खिलने पे ख़ुशबू बिखरती है और मुट्ठी में आती नहीं !
हवाएं कैसी फिज़ाओं में हैं , और कैसे हैं कद्रदान ? शोहरत उसी अंदाज़ में मिला करती है !!
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