Sunday, 22 January 2012

रास्ते  चारों  तरफ  के  थे  जब  बंद  , ख़ुदा  ने  यकदम  मुझे  आज़ाद  किया  !
बाहर  की  हवा  लगते  ही  , मैंने  फिर  ख़ुदा  की  हस्ती  पे  सवाल  किया  !!

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मैं  परदे  में  हूँ  , तो  ख़ुदा  ने  किये  हैं  परदे  ,
देर  कितनी  है  , चर्चे  में  खबर  आने  को  ?

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मैं  ख़ुद  ही  का  सताया  हूँ  ,
दूजा  मुझे  सता  के  करेगा  भी  क्या  ?
हार  मानना  मेरी  फितरत  में  नहीं  ,
और  इल्ज़ाम  ख़ुदा  को  दिए  जाता  हूँ  !!

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हर  कली  इक  राज़  है  दिल  की  तरह  , 
खिलने  पे  ख़ुशबू  बिखरती  है  और  मुट्ठी  में  आती  नहीं  !
हवाएं  कैसी  फिज़ाओं  में  हैं  , और  कैसे  हैं  कद्रदान  ?
शोहरत  उसी  अंदाज़  में  मिला  करती  है  !!

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