मैं सोया हूँ मानुष शव की तरह , तू चेतनता दे , हे गुरुनानक देव ,
मैं खोया हूँ शव आसन की तरह , तू संवेदन दे , हे , कृष्ण हे , वासुदेव ,
कुम्भ करण की तरह गहरी नींद में हूँ , मेरे अल्लाह , मेरे मौला ,
कुछ चुभती साँसों को भर दे , जो मुझको गति दे , मेरे बुद्ध मेरे गौतम देव ,
मुझे मानव की समझ आये मानव की तरह , हे ईशु मसीह , हे महावीर ,
मानवता के रिस्ते ज़ख्म , मेरे तन मन को झिंझोड़े , कुछ वर ऐसा दे !!
...........................................................................................................
भीगी सी आँखें लिए खड़ी भिखारन उम्मीद मेरी ,
और मैं केवल पलकें झपकाता जाता हूँ ,
कोई आयेगा और तोड़ेगा , आसमान से तारे मेरे लिए ,
यूं ही जीवन भर , चकोर के जैसे , चाँद निहारे जाता हूँ ,
मैं जानता हूँ ये सब कभी होता नहीं , पर आलस्य में ,
जीवन में आये सब उत्पादक क्षण , यूँ हीं दुत्कारे जाता हूँ ,
क्या हो सकता है पार समंदर कभी बिन प्रयत्न , मन मेरे ?
उठ चेत समय रहते ज़रा , नहीं उम्मीद की आँखें भीगी ही रह जायेंगी !!
मैं खोया हूँ शव आसन की तरह , तू संवेदन दे , हे , कृष्ण हे , वासुदेव ,
कुम्भ करण की तरह गहरी नींद में हूँ , मेरे अल्लाह , मेरे मौला ,
कुछ चुभती साँसों को भर दे , जो मुझको गति दे , मेरे बुद्ध मेरे गौतम देव ,
मुझे मानव की समझ आये मानव की तरह , हे ईशु मसीह , हे महावीर ,
मानवता के रिस्ते ज़ख्म , मेरे तन मन को झिंझोड़े , कुछ वर ऐसा दे !!
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भीगी सी आँखें लिए खड़ी भिखारन उम्मीद मेरी ,
और मैं केवल पलकें झपकाता जाता हूँ ,
कोई आयेगा और तोड़ेगा , आसमान से तारे मेरे लिए ,
यूं ही जीवन भर , चकोर के जैसे , चाँद निहारे जाता हूँ ,
मैं जानता हूँ ये सब कभी होता नहीं , पर आलस्य में ,
जीवन में आये सब उत्पादक क्षण , यूँ हीं दुत्कारे जाता हूँ ,
क्या हो सकता है पार समंदर कभी बिन प्रयत्न , मन मेरे ?
उठ चेत समय रहते ज़रा , नहीं उम्मीद की आँखें भीगी ही रह जायेंगी !!
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