Thursday, 12 January 2012

मैं  सोया  हूँ  मानुष शव  की  तरह , तू  चेतनता  दे , हे  गुरुनानक देव ,
मैं खोया हूँ  शव  आसन की  तरह , तू  संवेदन  दे , हे , कृष्ण हे , वासुदेव  ,
कुम्भ करण  की  तरह गहरी  नींद में  हूँ  ,  मेरे  अल्लाह , मेरे  मौला ,
कुछ  चुभती साँसों  को  भर  दे , जो   मुझको  गति  दे ,  मेरे  बुद्ध मेरे गौतम देव ,
मुझे  मानव की  समझ आये  मानव  की  तरह ,  हे  ईशु  मसीह ,  हे  महावीर ,
मानवता  के  रिस्ते  ज़ख्म ,  मेरे  तन  मन  को  झिंझोड़े  ,  कुछ  वर  ऐसा  दे  !!



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भीगी  सी  आँखें  लिए  खड़ी  भिखारन उम्मीद  मेरी ,
और  मैं  केवल  पलकें  झपकाता  जाता  हूँ ,
कोई  आयेगा  और  तोड़ेगा , आसमान  से  तारे  मेरे  लिए ,
यूं  ही  जीवन  भर , चकोर  के  जैसे , चाँद  निहारे  जाता  हूँ ,
मैं  जानता  हूँ  ये  सब  कभी  होता  नहीं , पर आलस्य  में ,
जीवन  में  आये  सब  उत्पादक  क्षण , यूँ हीं  दुत्कारे  जाता  हूँ ,
क्या  हो  सकता  है  पार  समंदर  कभी  बिन  प्रयत्न , मन  मेरे ?
उठ  चेत  समय  रहते  ज़रा ,  नहीं उम्मीद की  आँखें भीगी  ही रह  जायेंगी !!

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