Tuesday, 31 January 2012


ना   पूछ   के   हँसते   क्यों   हो   ,
रो   आया   हूँ   राहों   में   बहुत   ,
अब   तो   मंजिल   है   या   ,  पड़ाव  ,
ये   तो   जान   सका   ना   कोई   दुनियाँ   में   !!
…………….
तुमने   जाना   भी   तो   क्या   जाना   ,
तुमने   ना   जाना   भी   तो   क्या   ,
तुमने   खोया   भी   तो   क्या   खोया   ,
तुमने   पाया   भी   तो   क्या   ,
इसमें   हासिल   होगा   क्या   ,
ऐ   मेरे   मन   पागल   ,
तू   तो   बंजारा   बन   ,
बंजारों   की   गति   चलता   जा  !!
………………….
रहनें   दे   सोच   में  ,
जिनको   है   ,  सत्य   की   खोज  ,
रहनें   दे   अफ़सोस   में  ,
जिनको   है   किस्मत   से   गिला  ,
तू   तो   मस्तों   की   टोली   देख  ,
मस्तों    की   मस्ती   का   तज़ा   देख  ,
जो   मज़ा   हासिल   ना   हुआ   शहज़ादों   को  ,
उसकी   ,  रंगत   देख   ,  मदहोशी   देख  ,
………………….
ऐ   मेरे   मन   , छोड़   दे   कश्ती   को  ,  बिन   पतवार   ,
फिर   देख   हवाएं   करती   हैं   क्या   ,
तू   तो   सिर्फ   नज़ारा   कर   ,
किनारे   बैठे   हुओं   का   ,
जो   ज़न्नत   को   ,  या   भगवान्   को   ,
घूरे   जाते   हैं   ,
कर   वो   करतब   जो   कराये   वो  ,
उसके   इशारों   को   मान   ,  बिना    शक   रे   मन  चंचल   !!
………………..
वो   निगाहों   से   है   दूर   तो   क्या  ?
तेरे   मन   को   तो   महसूस   हुआ    करता   है  ,
उसे   ना   मानने   वाले   भी   बहुत   हैं  ,
तू   भी   ना   मानें   तो   क्या   ?
तू   उसे   मजबूरी   की   शक्ल   ना  दे   ,
वो   तेरे   अन्दर   है   ,  और   तू   उसमें    शामिल  ,
तू   ही   कर्ता   है   ,  करतार   भी   है  ,
ऐसा   करके   तो   देख   !!
………………..
ना   पूछ   के   हँसते   क्यों   हो   ,
रो   आया   हूँ   राहों   में   बहुत   ,
अब   तू   मस्ती   का   मज़ा   देख   ,
और   मुझे   ,  मस्ती   ,   मस्ती  , बस   मस्ती   में   जीने   दे   !!

Monday, 30 January 2012


मुझे    दुश्मनों   में   लेके   चलो   ,
दोस्तों   के   अंदाज़   देख   लिए   ,
पीछे   से   ज़ख्म   हज़ार   मिले   ,
अब   सीने   पे   भी   , दो   चार   ले  आऊँ  !
मैंने   समझा   था   सफ़र   दुश्वार   न   हो  ,
दोस्तों   को   साथ ,  ले   के   चलूँ  ,
हर   कदम   पे   रोक   रोक   लिया   ,
दोस्तों    की   चाल  कुछ  थी   ऐसी !
अब   दुश्मनों    को  देता  हूँ  मौका    ,
शायद   चाल   संभल   जाए  मेरी   ,
या   तो   मुझको   जहाँ   से   दौड़ाये   वो   ,
या   उसे   दूरस्त   जहाँ   में   छोड़   आऊँ   !
मुझे   दुश्मनों   में   लेके   चलो  ,
दोस्तों   के   अंदाज़   देख   लिए   ,
पीछे  से   ज़ख्म   हज़ार   मिले  ,
अब   सीने   पे   भी   , दो   चार   ले   आऊँ   !!
बसंत  में  फूलों  को  तरसता  हूँ  ,
और  सावन  में  रिमझिम  को  ,
उसने  नए  कोई  मौसम  , बना  लिए  हैं  शायद !
आज  भी  इंतज़ार  में  हूँ ,
भूले  से ही  सही  याद  आऊँगा  मैं  ,
पर   लगता  है  रिश्ते  नए उसने  बनाए  हैं   शायद  !!  

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हाय  से  तन  की  लगी  को  ,
और  आह  से  मन  की  लगी  को ,
जान  जाते  लोग  ,
इसलिए  हौले  हौले  ,
बिना  अपना  मुंह  खोले  ,
मुस्कुराने  लगा  मैं  !!
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बहे  जाते  हैं  वो  सब  , एक ही  रौ  में  ,
उनसे  अलग  भी  है  सच  , मानते  नहीं  !!
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नीलाम  हो  गया  ईमान  , चाहतों  के  असर  से  ,
चाहतों  की  नीलामियाँ  सर -ऐ -आम  हो  गयीं  !!
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मैं  पत्तियों  में  ढूंढूं  जड़  का  सुराग  ,
और  इश्वर  नहीं  है  , उद्घोष  , कर  आता  हूँ  !!
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विश्लेश  किये  मैंने  , अपने  प्रति  , अपने  ही  कोण  से  ,
जबकि  दिखती  है  मूरत  मेरी  हर  बार  अलग  , अलग  कोण  से  !!
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उदास  है  काएनात  , और  ख़ुदा  भी  उदास  ,
आज  इंसानियत  फिर  गारत  हुयी  ख़ुदा  के  नाम  पे !!

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लगायी  भी  मैंने  बुझाई  भी  मैंने  ,
ये  आग  दिल  की  थी  ही  कुछ  ऐसी  !

Sunday, 29 January 2012


क़त्ल   मेरा   हो   पर   गिला   न   हो   ज़मानें   से   ,
अख्तियार   मेरी   जिंदगी   के   सब   ,  उसने   अपने   नाम   किये   !
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जिंदगी   मेरी   होगी   पर   उसूल   उनके  ,
अजब   दारोमदार   तूने   पैदा   किये   ज़माने   में   !
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शैतानियों   का   सिला   देता   है   तू   ,  क्या   मालूम  ?
हमें   ,  तो   सिर्फ   कैक्टस   ,  बिना   पानी   जिंदा   मिले   !
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जो   पेड़   फल   देता   ,  पत्थर   महज़   उसको   पड़ा   ,
ज़हरीले   कनेर   सदा   हस्ते   मिले   ,  खिलते   मिले  !!
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जवानियाँ   जिस   अंदाज़   में   आती   हैं ,  जाती   भी   हैं  ,
ठहरा   हुवा   बुढ़ापा   तो   बस ,  मौत   का   इंतज़ार   करे   !!
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रोशनियाँ   सर   झुकाए   खड़ी   हैं   अब   ,
उन्होंनें   भी   तो ,  अँधेरे   का   सिर्फ   इंतज़ार   किया   !!
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रौशनी   को   अँधेरे   से   लड़ना   कभी   आया   ही   नहीं   ,
बचा   के   रखती   ,  सवेरा   कभी  , अँधेरे   के   लिए   !!
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भँवरे   को   जिंदगी   में   कभी   सज़ा   न   हुयी   ,
फूल   पे   सदा   आया   इलज़ाम  ,  सर  -ऐ  -आम   , रंग   क्यों   खिलाये   तूने   ?
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चांदियों   के   शहर   में   ,  सोना   टके   में   बिका   ,
कोई   ना   बोला   गवाह   ,  के   सोना   सदा   महंगा   हुआ    !!
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ज़नाज़े   पे   उसके   रो   आया   था   वो   ,
क़र्ज़   सारे   जिंदगी   के ,  से   ,  बरी   हो   आया   था   वो   !!
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किनारों   की   थी   गलतियां   वो   सहारे   बने   ,
अब   मार   जिंदगी   भर   की   है   ,  कटना   हमेशा   का   है   !!
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गम   ना   कर   कटना   जिंदगी   भर   का   है   ,
समंदर   भी   बिन   तेरे   होता   कहाँ   ?
समंदर   में   तो   जाना   घड़ी   भर   का   है   महज़  ,
जिंदगी   तो   बसर   होगी   तेरे   साए   में   !!
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शाम   ओ   सहर   दोनों   को   तेरा   इंतज़ार   है   ,
इक   का   दिन   नहीं   कटता   , दूसरे   की   रात   !!
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तेरा   चेहरा   ग़मज़दा   क्यों   है   ? 
क्यों   परेशान   है   अपनी   गुस्ताख़ियों   से   तू   ?
मैं   तो   शिकायतें   तेरी   करता   नहीं   ,
जानता   हूँ   तेरा   राज़   हूँ   मैं   !!
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विरासतें   भी   हैं   मेरी   ज़मानें   में   ,
पर   हक़   ?  अहसान   फ़रामोश   क्या   जानें   !!
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समंदर   है   गहरा   कितना   ?
जानता   है   तो   सिर्फ   पानी   जो   तल   में   है   ,
लंबा   है   ये   जीवन   कितना   ?
जानता   है   ,  जिया   जिसने   ,  हर   पल   को   है   !!
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साथी   ज़रा   पास   तो   आ   तू   मेरे   ,
बता   उंगलियाँ   कितनी   हाथों   में   ?
ज़रा   छुवन   का   अहसास   तो   दे   ,
आया   बसंत   ,  कोई   गुल   तो   खिले   !!
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चुनावों   की   सरगर्मियां   ,  मेरे   अन्दर   भी   हैं  ,
पर   हर   पल   जो   जिया   है   मैंने   ,  सदियों   का   गुनाहगार   लगे   !!
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सितारे   भी   हैं   ,  पर   सिर्फ   रात   आने   पे   चमकते   हैं   ,
तू   भी   ठहर   ,  रात   आने   दे   ज़रा   ,
फिर   चमक   लेना   ,  मन   की   सुबह   होनें   तक   !!
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न   घबरा   तेरे   तारों   को   भी   आसमान   थामेंगा   ,
बस   पैर   ज़मीं   पर   रख   अपने   !!
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शाम   ही   है   जो   सुकूँ   देती   है   ,
दिन   को   तो   तेरे   नखरे   भी   ,  आसमान   छूते   हैं !!
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समंदर  को  तो  हिला  मैं  भी  देता  ,
पर  मछलियों  की  तरह  बेखटके  नहीं  !
मेरी  जान  तो  है  किनारों  पे  ,
किनारों  से  गिले  मिटाऊँ  ज़रा  !!

Saturday, 28 January 2012

अश्कों  को  ज़ुबां  होती  ,तो  कुछ  राज़  ना  रह  जाता  ,
अश्कों  को  पीना  भी  , गुनाहों  में  आता  !!

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साए  को  भी  हो  महसूस  ,
उस  से  पहले  गुम  हो  जाती  हूँ  ,
नज़र  हूँ  , हूँ  भी  और  नहीं  भी हूँ  !!

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सुख  हो  जाएँ  कम  कोई  बात  नहीं ,
पर  दर्द  न  मिलें मेरे  दुश्मन  को  भी  ,
मेरा  बसंत , तो  तब होगा  बसंत , जब ,
हर  ज़ख्म  को  मरहम मिल  जाएगा  !!


Friday, 27 January 2012

चाँद  सा  फैशन  परस्त  नहीं  देखा  मैंने  ,
हर  रोज़  शक्ल  नयी  इक  लिए  आता  है  !
छुप  जाता  है  अमावस  के  दिन  इक  बार  ,
और चाहने  वालों  को  तरसाता  है  !!

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चीड़  का  जंगल  , घास  की  सरपरस्ती  में  बढ़ा  करते  हैं  ,
और  घास  दोबारा  किसी  और  का  सरपरस्त  बने  ,
ये  सब  मंज़र  ,मंज़ूर   न  उनको  है  ,
हाथ  निकलते  ही  , पर्वत  को  अपना  बना  लेते  हैं  ,
और  अपने  ही  सरपरस्त  का  नामों  निशाँ  मिटा  देते  हैं  !!

मैं   तंग   आ   गया   हूँ  ,  अपने  ही  ज़ेहन   से   ,
मुझे   दागों   से   पैबस्त   चेहरा   दिखाता   है !
क्यों   मुझे   याद   दिलाता   है   ,  शहंशाह   था   मैं  ,
और   लुटा दी   थी   दुनियाँ   ,  वाह   वाही   के   लिए  !
जो   मुझे   ले   आते   थे   घर   कहारों   की   तरह  ,
मैं   भूल   गया   ,  मेरी   अमीरी   को   हवा   देते   हैं  !
उनको    चाहिए   था   इक  शिकार  महज़  ,  खून   से   भरा  ,
जोंकें   हैं   ,  मुर्दों   को   कहाँ   चिपकती   हैं  !
अब   बदहाल   पड़ा   हूँ  ,  घर   के   कोने   में  ,निचुड़ा   हुआ  ,
इतनी   भी  मय  नसीब   नहीं  , के   भूलूँ  ,  ख़ुद   को  !
चले   जाओ   ,  चले   जाओ  ,  मुझे   हमदर्दी   नहीं   माफ़िक  ,
मैं   तंगहाल  में   ख़ुश   हूँ  ,  जी   लूँगा   खूब  !
तुम   कल   भी   नकली   थे   आज   भी   नकली   हो   ,
ना   जय   बोलो   तुम  ,  इसके   हक़दार   नहीं   हो  !
मैं   तो   शहंशाह   हूँ   ,  ख़ुश   था   जो   शहंशाही   में  ,
मुझे   आता   है   बहुत   अच्छे   से   मरना   भी   ,  जंग   के बाद  !
पर   मैं   तंग   आ   गया   हूँ   अपने   ही   ज़ेहन   से   ,
मुझे   दागों   से   पैबस्त   चेहरा   दिखाता   है  !!

Thursday, 26 January 2012


घर   की   दीवारें   हैं   उदास   बहुत   ,
मरना   बाशिंदों  का   रोज़  का  , न   अब   देखा   जाता  !
मुरम्मत   तो   होती   है   बहुत  ,  दीवारों   की  ,
जन्म   से   शादी   से  ,  ख़ुशी   के  , हर   मौके   से  ! 
पर   दिल   की   दीवारों    का   खड़ा   होना  ,
घर   की   दीवारों   को   ,  बढ़ा   देता   है  !
अब   तो   दीवारें   ही   दीवारें   हैं   चारों   तरफ  ,
उनका   सांस   भी  , घर   की   तरह  , घुटता   है   अब  !
हर   रोज़   के   झगड़ों   से  तो   अच्छा   है   ,
इक   बार   का   गिरना   बदहवास  ,  छत    को   लिए  !
ताकि   हर   मालिक   चुने   ज़मीं   नयी   और   ,
नया   घर   दोबारा   बनें  ,  नयी  उम्मीद   की  , दीवारों   को   लिए !!

घूँट   है   आखिरी   और   तिश्नगी   है   बहुत   ,
बड़ी   हसरतों   से   जाम   को   घूरे   जाता   हूँ  !
महसूस  होता   है   जंग   पे   जाना   है   अब  ,
और   माशूक   से   विदा   लेने   की   घड़ी   आई   है  !
सोच ,  चीलों   की   तरह   दिमाग   में   फिरते   हैं  ,
और   मेरे   होश   बाकी   हैं   बहुत   तड़पाने   को  !
हौसला   मेरा   भी   और   साक़ी   का   भी   पस्त   है   अब  ,
मेरी   नज़र   जाम   पे   और   साक़ी   की   गड़ी   मुझपे   है  !
अच्छा  , संगदिलो  ,  अलविदा   कहनें   का   वक्त   आया   है   ,
ए  रूह   मेरी   , घूँट   आखिरी   तर   करनें  को   आता   है  !! 

मेरे   क़दमों  में   न   हो   धमक   सेनानी   की  ,
पर   कदम   मेरे   भी   बढे   जाते   हैं , मंच   की   ओर !
मैं   भी   उत्साहित   हूँ   गणतंत्र   दिवस   पर   विशेष  ,
रक्त  मेरा   भी   बहे  ,  देश   के   झंडे   में   रंग   लाने   को !
मैं   भी   ले   जाऊं   कदम   सर   से   ऊपर   ठन   से  ,
एड़ी   मेरी    भी   लगे  ,  दुश्मन   के   सीने   पे   धमकानें   को  !
मैं   भी   बोलूँ   क़दमों   को  ,  ताल   में   बढ़ना   सीखो  ,
हाथों   की   ऊंचाई   से   कहूं  ,  आकाश   में   चढ़ना   सीखो  !
मेरा   भी   सीना   हो   चौड़ा   ,  गीतों   से   सेनानी   के  ,
मेरी   भी   गर्दन   अकड़े   ,  ध्वज   को   प्रणाम   करते   हुए  !
मैं   भी   एक   स्वर   में   उच्चारूं  ,  देश   की   जय  ,
ध्वज   की   जय   ,  सेनानी   की   जय   ,  भारत   माता   की   जय !
और   हर   वर्ष   गाता   चलूँ   ,  देश   के   सुन्दर   गीत  ,
हर    गणतंत्र   दिवस   पर  , साक्षी   बनूँ  ,देश   के   बढ़ते   क़दमों का !!  

Wednesday, 25 January 2012

घूम  रहा  हूँ  अपने  ही  घर  में  , एक  कमरे  से  दूजे में  ,
ढूंढ  रहा  हूँ  कोई  दबा  खजाना  , मिले  तो  कहीं  ,
और  बन  बैठूं ,  कब्ज़ा  जमा  ,  फिर  वही  नाग  पुराना !!
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घूम  रहा  हूँ  अपने  ही  घर  में  इक  दास्ताँ  बन  ,

सब  कह  रहे  हैं  , शख्स   जो  अब  है  , है  तो  है ,
पर  वो  नहीं  है  ,  जो  हुआ  करता  था  कभी !!
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आज  देखूं  तेरा  अक्स  मैं  , बंद  आँखों  में  मेरी  ,
दुनियां  जहाँ  के  फ़रिश्ते  , तेरी  पनाहगार  में  हैं !!

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होश  उड़ा  दे  मेरे  , जिस्म -ओ -जान  के नखरे तेरे ,
अदाएं तेरी  , मेरी आँखों के  तहखानें  में सिमट  आई  हैं !
मेरी  आँखों  की  रौशनी  के  सब चाँद  और  सूरज ,
तेरी एक  ही  झलक  से ,  मेरी  आँखों  में पलट  आये  हैं !

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वो  चाँद  दोबारा  निकला  है  मुद्दत  बाद ,
जिसकी  चांदनी नगमों  को  जिया करती  है !
वो सरसराती  हवा  जो  बदन सिहराती  है ,
आज  फिर  से  चमन पर  है  मेहरबान  मेरे !
वो  बादल  का  पागल  टुकड़ा  फिर  लहराया ,
चाँद  के  संग  दौड़  लगाने  आया मौसम  बाद !
यादों  की  खुशबू  चली  बागों  को  महकाने ,
जाने  कैसे महबूब की  खबर  फैली मुद्दत  बाद !!    

जिस्म   में   मेरे   रूह   डालो   नयी  ,
मेरी   आज़ादियाँ  अब   बेमानी   हुईं !
सब   सच   अब   नंगे   हुए   ज़माने   के  ,
सिर्फ   दूध   की  ख़ातिर   तू   माँ  बोले  मुझे  !
मेरी   आज़ादी   का  मतलब   महज़ ,  आज़ादी ,  था   तेरी  ,
उनका   ताज   अपने   सर   रखने   के  लिए  !
नुचने   वाली   रियाया   आज   भी   लुटती   है  ,
आज   भी   अस्मत   मेरी   टके   ,  टके   बिकती   है  !
जिस्म   में   मेरे   रूह   डालो   नयी  ,
मेरी   आज़ादियाँ   अब   बेमानी   हुईं  !!
उम्मीद  करूँ  कुछ  क्या  ?  नौजवानों से  आज ?
मिलेंगे  बेटे ,  कुछ नया  खून  लिए ?
जो  माँ  से  बांधेंगे  गर्भ  नाल  दुबारा  ,
जानेंगे  माँ के  अर्थ  हैं  क्या  ?
मुझे  फिर  से  चाहिए  सुभाष ,  भगत  सिंह ,
फिर  से  चाहिए  प्राण  औ  प्रण  तुम्हारा !
पर  पहले करना  होगा गुलामी  का  रक्तमोक्षण  ,
बहाना  होगा  भ्रष्टाचार ,  गंदे नालों  में !
तुम्हें  सुधारना  भी  है  और  सुधरना  भी  है ,
करूँ  उम्मीद क्या  कुछ ?  नहीं  तो  दोहराती  हूँ  !
हा !  मिली  क्यों  आज़ादी मुझे  , क्यों  हाथ  बदले  गये ?
मेरी  आज़ादियाँ  अब  बेमानी  हुईं ,  बेमानी  हुईं  !!


  

Tuesday, 24 January 2012

मैं  तो  इठला  के  चलूंगी  यौवन  में , जी  तेरा  जले  तो  जले ,
आग  हूँ  जंगल  को जलाती  हूँ ,चिंगारी  से ,  बस  तेरा  कोई  न  चले !
उछालूँ  दुपट्टे  को  धुवें  की  तरह ,  हर  पल  शक्ल चिढ़ाए  तेरी ,
क़दमों  में  मेरे  बिछे  तू  सड़क  की  तरह , जिसपे  मेरी  अम्पाला  चले !
हर  इशारे  पे  मेरे , मजनूँ  दौड़ें  इधर  उधर , और  हैराँ  हो  तेरी  नज़र ,
तू  चले  लट्ठ को  हाथों  में  पकड़ , पर  सिवा  झाड़ी , और  पे  बस  न  चले !
तेरी  जायदाद  को जिसको  तू  सिर्फ  अपना  समझे , नचाती  चलूँ ,
और  झुठलाती  रहूँ  सबको  नेताओं  के  वादों  की  तरह , तेरा सांस  चले  न  चले !!      

            
क्यों  न  खोलूँ मैं  गट्ठर  आज ,
क्यों  न  गिराता  चलूँ  ,  आँचल  में  बंधे  ,
आने  ,  दो  आने  ,  चवन्नी , अठन्नी  के  सिक्के  सभी ,
जो  नए  सरोकारों  में  अब  खोटे  हो  गए  हैं ,
बचपन  गिरा  ,  ताम्बे  के  छिदे  सिक्के  कि  तरह , ठन  से  ,
मन  को  गहरी  चोट  लगी , डगमगा  गया  शव  मेरा ,
छूटा  माँ  बाप  का  साया , दादा  दादी  का  स्नेह छितरा  गया ,
बिखर  गया  गिल्ली  डंडे  का  सामान , नाना  नानी  का  दुलार  गया ,
अद्द्यापक  भी भी  दिखे  डंडे  समान  ,  खुल  गयी  किताबें  सारी ,
दूसरी  गाँठ  खोली  तो  , दुअन्नी  गयी , जवानी  की  झंकार  लिए ,
रास्तों   के  ,  कैंटीन  के  कहकहे  ,  गलियों  के  फेरे  ,
उछले ,  चौकोर ,  पांच  पैसे  की  तरह ,  बेआवाज़  आज ,
छेड़खानी  जो  किये  थे  हम ,  बिखरी , खिलखिलाती  चवन्नियों  की  तरह ,
एक  गाँठ  ,  और  खुली  ,
छूटा  मिट्टी  का  घड़ा ,  खस  की  टट्टी  छूटी ,
छूटी  लकड़ी  की  तख्ती  ,  कोयले  की  इस्त्री  छूटी ,
बाण  का  मंज्जा  छूटा  , बांस  का  डंडा  छूटा ,
छूटी  मिट्टी  की  दीवारें  छूटी , घास  का  छप्पर  छूटा ,
प्रयत्न  जो  जीवनयापन  को  थे  ,  छूटे ,
चलो  अच्छा  हुआ ,  खोटा  रुपईया  गया , ठंडा , थोड़ा  शव  और  हुवा ,
अगली  गाँठ  से  घर  परिवार  गया  ,
रेजगारी  की  पहचान  भी  गयी ,
गिरते  सामान  की  पहचान  भी  गयी ,
अब  गांठें  खुल  रहीं  हैं  अपने  आप  ,  बिन  आवाज़ ,
भाग्य  भी  गया  ,  अभाग्य  भी  गया ,  गया  बुढ़ापा  भी  साथ ,
पाप  पुण्य  सब  छूटे  , छूटा  दर्शन  भी  मेरा ,
सब  सिक्के  बिखर  गये  ,  अपनों  ने  प्रदर्शन  को  संजोये  सारे ,
और  शेष  रह  गया  सिर्फ  और  सिर्फ  शव  मेरा !!
छोड़  आया  था  बेकार  समझ  , जिन  गट्ठों  को  मैं  ,
मेरी  गाड़ी  के  बनेंगे  पहिये  वो  , मालूम  , न  था !!
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जहाँ  में  आना  हुआ  , जाना  भी  होगा  इक  दिन  ,
हैराँ  तो  मैं  इसलिए  ,के  मुझे  , घर  का  पता  नहीं !!
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गूंथा  गया  मन  मेरा  ,  तब  कहीं  जा  ग़ुल  खिला ,
भंवरे  को  लगी  जब  भनक  ,  बाग़  को  गुँजा  दिया ,
मैं  उबर  भी  न  सका  था ,  प्रसव  पीड़ा  से  अभी  ,
कि  भगवान  के, चोर  भक्त ने , गला  मेरा  मरोड़  दिया !! 

Monday, 23 January 2012

ख़ुदा  का  बंदा  है  ,
ख़ुदा  को  ना  मानने  वाला  भी  ,
ये  बात  और  है  ,
ख़ुद  से  नाराज़  है  कुछ  ज़्यादा  अभी  !!
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कैसे  कह  दूं  ख़ुदा  से  पत्थर  हूँ  ?
कैसे  कह  दूं  असर  कुछ  नहीं  होता  ?
जब  ख़ुदा  भी  पिघले  सुन  फ़रियाद  ,
मैं  तो  उसकी  बस  क़ुदरत  हूँ  !!
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तेरी  रज़ा  नहीं  जिसमे  ,
उसकी  रज़ा  समझ  ले  तू  !!
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रंग  तो  थे  सब  भगवान्  के  पास  !
पर  श्रृष्टि  रंगी  गयी  सब  कर्मानुसार  !!
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उसकी  रज़ा  का  अफ़सोस  ना  कर  ,
ख़ुद  से  ज़्यादा  वो  तेरा  है  !
अपना  ना  नाम  कोई  उसका  ,
जो  तुझे  पसंद  , वो  उसका है  !!
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मेरी  उम्र  को  इश्क  सिखाये  तू  ,
क्यों  ना  तुझी  पे  डोरे  डालूँ  मैं  !!
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मेरी  ना  सोच  तू  , ना  ज़माने  की  सोच  ,
या  तो  तू  है  , या  ख़ुदा  तेरा  !!

Sunday, 22 January 2012


आवारा   हैं   मेरे   कदम   ,  चलते   हैं  दो  कदम  भटक   जाते   हैं  ,
बदनाम   मोहल्लों   में   जहाँ  , शरीफों   का   जाना   है   मना  ,
घूम   आते   हैं   ,  दुनियाँ   की   नसीहतों   के   ख़िलाफ़  ,
दर्द   की   चीखों   को   महसूस   , करते   हैं  , ठिठक   जाते   हैं  !!
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मंदिरों   की   घंटियाँ   ,  मस्जिद   की   अज़ान  ,  जिनके   लिए   बेमतलब   है  ,
दिल   की   आवाजों   को   ,  ध्यान   से   सुन   ,  समझने   की   शक्ति   है   उन्हें  ,
वो   मेरी   ,  शहद   सी   बोली   में   , छल   है   क्या   ?  जानते   हैं   ,
पर   मेरा   मान   रख   लेते   हैं   , टूटी   कुर्सी  पे   इज्ज़त   से   बिठा   देते   हैं  !!
……………
वो   जानते   हैं  ,  बेमतलब   का   आना   नहीं   होता  ,  उनके   घरों   में   मेरा  ,
या   तो   कोई   सर्वे   सरकारी   होगा   ,  नकली   आंकड़ों   के   लिए   , 
या   चुनाव   की   दस्तक   है   दरवाज़े   पे   ,  बड़े   जोर   से   आई   है   ,
या   कहीं   मर   तो   नहीं   कोई   बच्चा   गया ,  उनकी   गाड़ी   के   नीचे   आकर   ?
………………
हैरानी   से   मुंह   मेरा   वो   ताके   जाते   हैं   ,  उचरुंगा   कुछ  ,
कोई   कहानी   निकलेगी   ,  मुंह   से   मेरे   ?  अंदाज़   लगते   हैं    वो   ,
या   मैं   ही   किसी   कहानी   की   खोज   में   आया   हूँ  ,  बस्ती   में   ,
फिर   से  , शहर   और   सपना   को  फिल्मानें  , जीवंत   बनाने   के  लिए   !!
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या   कोई   चैरिटी   हॉस्पिटल   का   प्रोपोज़ल    है   , या   स्कूल   गरीबों   के   नाम  ?
सब्सिडी   आई  तो   नहीं    है   मशीनों   ,  उपकरणों   के   नाम   ,
या   शहर   का   विस्तारीकरण   होना   है   ,  फ्लाईओवर   बनाना   है  ,  या   पार्क   कोई   ,
अरे   भाई   बोलो   तो   कुछ   क्यों   जान   सुखाते   हो   हमारी   यूं   ही   ,
…………………..
अब   मेरे   आवारा   क़दमों   को   अपनी   आवारगी   महसूस   हुई   ,
क्यों   घुस   आये   पहले   से   डरे   लोगों  को  और  डराने   के  लिए   ?
क्यों   झिंझोड़े   मेरे   क़दमों   नें   उनके   और   मेरे   विचार   ?
अब   मैं   समझा   आवारगी   ये   अच्छी   नहीं   ,  जोड़े   विदा   लेने   को   हाथ  ,
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बड़ी   मुश्किल   से   समझाया   ,  के   राही   भटका   है   ,  राहों   से   ,
मैं   तो   आया   था   मंजिल   का   पता   करने   , बस्ती   में   तुम्हारी   ,
मुझे   दिख   भी   गयी   , और   भटकाव   भी   कम   है   दिल   में   ,
मैं   कल   फिर   आऊँगा   ,  तुम्हें   अक्षर   ज्ञान   देने   ,  और   जीवन   ज्ञान   लेने  !!


जितने   मौसम   हैं   मुझमें   समाये   हैं   ,
हर   दिन   जब   चाहे   ,  जो   चाहे   ,  मेरा   मौसम   बदलता   है  ,
मेरे   अन्दर   भी   ,  गर्मी   सर्दी   का  होता   है  अहसास  ,
बारिशों   से   भीगता   हूँ   , बसंत   के   रंग   खिलते   हैं  ,
मैं   भी   झड़ता   हूँ   कभी   ,  पत्तों   की   तरह  ,  पतझड़   में  ,
मेरे   अन्दर   भी   भावों   का   दबाव   बदलता   है   ,
उठते   हैं   बवंडर   कभी   ,  कभी   लावा   फटता   है  ,
हवाएं   मुझमें   भी   चलती   हैं   कभी   ,  ठंडी  ,  कभी   गर्म  ,
कभी   बर्फ   के   मौसम   में  ,  गर्म   चश्में   में   नहा   आता   हूँ  ,
कभी   ओले   भी   पड़ते   हैं  , मन   पर   पत्थर   की   तरह  ,
कभी   ,  मन  और  बाहर   की   आँखें   बंद   कर   ,
छतरी   की   तरह  तान   बारिश   से   बच   जाता   हूँ   ,
मैं   किसी   सन्यासी   की   तरह  , 
पक्का   घर   बना  ,  भाव   विहीन   नहीं   होता  ,
मैं   तो   कच्चे   गारे   के   मकान   में   रहते   , 
बरसातों   में   बह   जाता   हूँ  !!
  
रास्ते  चारों  तरफ  के  थे  जब  बंद  , ख़ुदा  ने  यकदम  मुझे  आज़ाद  किया  !
बाहर  की  हवा  लगते  ही  , मैंने  फिर  ख़ुदा  की  हस्ती  पे  सवाल  किया  !!

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मैं  परदे  में  हूँ  , तो  ख़ुदा  ने  किये  हैं  परदे  ,
देर  कितनी  है  , चर्चे  में  खबर  आने  को  ?

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मैं  ख़ुद  ही  का  सताया  हूँ  ,
दूजा  मुझे  सता  के  करेगा  भी  क्या  ?
हार  मानना  मेरी  फितरत  में  नहीं  ,
और  इल्ज़ाम  ख़ुदा  को  दिए  जाता  हूँ  !!

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हर  कली  इक  राज़  है  दिल  की  तरह  , 
खिलने  पे  ख़ुशबू  बिखरती  है  और  मुट्ठी  में  आती  नहीं  !
हवाएं  कैसी  फिज़ाओं  में  हैं  , और  कैसे  हैं  कद्रदान  ?
शोहरत  उसी  अंदाज़  में  मिला  करती  है  !!

Saturday, 21 January 2012

ललना को लिवा लाओ अंगना में ,

गोदी में उठा लूं , री माई री !

बधाई तो देदूं छलना को ,

आकाश उछालूँ सुन , री माई री !

आज बलायें उसकी ले लूंगी ,

... तुमको हो बधाई , री माई री !

नज़रें तो उतारूं वार वार ,

झूला तो झुला लूं , री माई री !

आज मैं मालिश कर लूंगी ,

कपड़ा तो कोई वार , री माई री !

आज दर्शन , स्पर्शन को आई हूँ ,

नहला तो लूं , आज , री माई री !

आवाज़ भी सुनते कान हैं क्या ?

ढोल तो बजा लूं , री माई री !

दिखता भी है कुच्छ आँखों से ?

सूरज तो दिखा उसे , री माई री !

नज़र उसे कोई लग न जाए ,

कोई मंतर तो मार , री माई री !

भरपूर बसे तेरा आँगन घर ,

किन्नर को दे तू बधाई , री माई री !!

कुछ  जाम  पिए , कुछ  पीने  को  हैं ,  दर्द  समंदर  बन  आया  है  ,
लड़खड़ायें   कदम , थाम  लेना  यार  , सोचूंगा  दर्द , दवा  लाया  है !
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यूँ  ही  पल  में  कोई  अपना  नहीं  हो  जाता ,
उनके  दिल  को खुल  जाने  दे  धीरे  धीरे ! 
अंदाज़  अलग , देखें  हैं  कई , दुनियां  में ,
किस  तौर  के  हैं  वो , खुल  जाने  दे ,  धीरे  धीरे !!

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जिंदगी  में  बुत  तराशे  हैं  बहुत  , 
जिंदा  बुत  भी  तराशूंगा , सोचा  ना  था !
अब  तो  बुत  भी  नक्काशी , किया  चाहता  है , 
कहता  है , मेरी  शक्ल उभारी  है  उसने !!

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जिंदगी   में   अफ़साना   बन   बैठे   हैं   वो   ,  
मोहब्बत   के   जिनको   आती   नहीं   है  !
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घूमघुमयिया  सा  जीवन  मेरा  , 
सौ जंतर  मंतर  घूम  आया  है ,
दिशा  निर्देश  अभी  कोई  न  मिला  , 
अलबेला  अलबेला लिखा  मिलता  है !!
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लड़खड़ाता  सा जीवन लड़खड़ाती सी दुनियाँ  , 
नयनों   में   नींद   आये   तो   जानूं  !
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Friday, 20 January 2012


तुमको   चाहत   से   जो   चाहा   , इक   गुनाह   कर   लिया   मैंने  ,
अब   सजा   का   डर  , मेरे   दिल   को   तड़पाए    तो   क्या   कीजे  !
तेरी   आँखों   का   काजल   बन  के  , मैं   आँखों   से   लगूँ  ,
अब   अश्कों   से   मिल   के   आँख   से   ढलक   जाऊं   तो   क्या   कीजे !
तेरी   मांग   में   सिन्दूर   सा   सज   ताज   बन   इठला   तो   जाऊं  ,
पर   बारिशों   से   भीग   माथे   पे   फैलूँ   तो   क्या   कीजे  !
सर   पर   चूनर    का   लहराता , फहराता  आँचल   मैं   बनूँ   ,
पर   पागल   पवन   मदहोश   हो   उसको   उड़ाए   तो   क्या   कीजे   !
तुमको   चाहत   से   जो   चाहा   , इक   गुनाह   कर   लिया   मैंने  ,
अब   सजा   का   डर  , मेरे   दिल   को   तड़पाये   तो   क्या   कीजे  !!

कुछ  भी  भीख  में  नहीं  चाहता  ,
इसलिए  चाहता  हूँ  , लौटाऊँ  कुछ  ,खुदा  को  भी  वापस  !
पर  उसकी  दी  नेमतें  गिने  कौन  ,
इसलिए  हर  सांस  में  , सिज़दा  किये  जाता  हूँ !!

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पी  की  यादों  में  बड़बड़ाते  ,
कुछ  बक  भी  आया  हूँ ,
तो  मुझको  माफ़  करना ,
पीने  की  आदत  के  चलते  ,
पी को  कुछ कह भी  आया  हूँ ,
तो  मुझको  माफ़  करना ,
पर  पी  और  पीने  की  आदत  , 
ड्रिंक और  ड्राईव  , की  तरह ,
कब  मिक्स  हो जाए न  मालूम ,
इसलिए  जब  पी  हो  तो  कभी ,
जी  चाहे  तो  भी ,पी  को ,
मत  तुम  पास  रखना !!





कश्तियाँ   ले   चलो   दूर   किनारों   से   चलो   ,
मैं   भी   देखूं    ,  साहिल   का   नज़ारा   समंदर   से  ,
बीच   समंदर   में   हिचकोले   खाते   हुए  ,
मौजों   को   गोदी   में   उठा   पटक   करालूँ   ज़रा  ,
और   देखूं  आकाश   में   परिंदों   की   परवाज़  ,
कैसे   मीलों   से   वो   मछली   पे   झपट   पड़ते   हैं  ,
कैसे   कश्ती   पानी   में   निशाँ   छोड़े   अपने  ,
यादों   की   तरह   मन   से   वक्त   के   साथ   बिसरने   को  ,
और   भाग्य   रेखा   की   तरह   ढूंढूं   सागर   की   हथेली   पे  ,
अनजान   भविष्य   की   खोज   में   ,  अनुवाद   लहरों   का   करूँ ,
सुनूं   मैं   भी   किसी   डोंगी   से   ,  मांझी   के   गाते   स्वर  ,
और   ,  महसूस   करूँ   ,  भूपेन   ,  सचिन   दा   की   धड़कन  ,
मैं   भी   निकलूँ   किसी   सिंदबाद   की   तरह   जाँ   हथेली   पे   लिए  ,
अपने   सारे   रिश्ते   नातों   से   , हमेशा   की   बिछुड़न   का   अहसास   लिए  ,
अंत   समय   की   तरह  ,मुझे   याद   आने   दो  सारे   करम  मेरे   ,
मैं   अब   अपना   ही   नज़ारा   करना   चाहता   हूँ   कहीं  दूर   खड़े  ,
मेरा   चेहरा   साहिल   की   तरह   ,  कैसा   दिखता   है   ,  देह   से   परे !!

Thursday, 19 January 2012


चलो ,   मैं   भाग   जाऊं   आज   सारे   तनावों   से  ,
चलो ,   मैं   भाग   जाऊं   आज   सारे   गुनाहों   से  ,
चलो   ,  चलें   ,  कोई   रंगीन   सपना   बुने  ,
चलो   , चलें   ,  किसी   हसीं   दुनियाँ   में   चलें  ,
तुमको   तो   ,  सिखादूं   दौड़ना   पर्वत   पर  ,
तुमको   तो   ,  दिखादूं   मैं  चाँद   का   घर  ,
हसीं   तारे   नज़ारे   संग   संग   ले   चलूँगा   मैं  ,
विदा   हवाओं   को   कर   ,  बादलों   को  ले   उडूँगा   मैं  ,
ये   मेरा   इन्द्रधनुष   सुन्दर  , खड़ा   है   इंतजार   में   आज  ,
ये   मेरा   दिल   करे   ,  क्यों   न   झूला   डाल   दूं   इसपर  ,
आ   बारिश   में   कीचड़   उछालें   सफ़ेद   धोती   पर  ,
आ   शरारत   करके   बूढ़े   से   ,  भाग   लें   छतपर  ,
खींचें   डगमगाते   विश्वास   की   ज़ंजीर   खुलकर   ,
मन   के   अंधेरों   को   उजालों   से   बदल   लें   चलकर   ,
और   शरद   में   ग्रीष्म   का   एहसास   करलें   क्यों   न   आज  ,
आओ   बंधू   चलो   झांकें   ,  बचपन   के   निश्छल   मन   में   आज  ,
आ   तुमको   भी   छुड़ा दूं     इन   तनावों   से   ,
आ   तुमको   भी   भगादूं     आसमान   में   आज  !!
गाते  हो  तुम  तो  सूरत  तुम्हारी  बिसर  जाती  है  ,
और  नाचते  हो  जब  , दुनियाँ  दिखती  नहीं  ,
कभी  तुम  गायब  कभी  दुनियाँ  ,
लगता  है  पागल  हो  जाऊंगा  मैं !!

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मेरी  परेशानी  गूंजे  वादियों  में  , और  उनकी  चैन  की  बंसी  ,
मनोरंजन  घाटियों  में  , सैलानियों  का  खूब  होता  है  !!

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वो  साधू  हैं  और  हम  लुटेरे  ,
पर  राह  दोनों  की  जहाँ  में  ,काँटों  भरी  है  ,
चूक  हो  जाए  तो  मुझको  कोड़े  ,
और  उनको  दोज़ख  का  डर  सताता  है !!

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मैं  अपने  सोच  सब  ,तुमको  , दे  तो  दूं  , पर  मरुस्थल  में  ,
पानी  की  जगह  , काँटों  का  जंगल  उग  आये  तो  क्या  कीजे  ?
मेरी  गहराई  तो  , हाथों  की  हथेली  से  भी  कम  है  ,
तेरे  मन  के  चेहरे  को  न  ढक  पाए  तो  क्या  कीजे ?
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मुझे  नफरतें  हैं  मेरे  होने  से  , मेरा  होना  ही  इक  जंग  है  ,
ये  जंग  जो  पैदा  खुदा  ने  की  , अब  निपटे  भी  तो  अच्छा  है !!

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शायद  मैं  तेरे  नाम  से  डरता  हूँ  ,
जपता  हूँ  जब  भी  , सुनता  हूँ  तेरा  नाम  !
जाने  क्यों  धुंध  सी  लिपटी  है  , आँखों  पे  मेरी  ,
हटती  है  जब  भी  ,दिखता  तेरा  नाम  !
दिखता  है  असर  औरों  पर  भी  साए  का  तेरे  ,
पूछा  अजनबी  से  ,ले  गया  तेरा  नाम  !!

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Wednesday, 18 January 2012

किताबों  से  निकल  आये  पन्ने  मेरे ,
अर्थ  मुझे  हर  रोज़  नए  समझाते  हैं ,
और  मैं  ठगा  सा  ,  मुंह  बाए  खड़ा ,
अनजान  अपढ़  , महसूस  किया  करता  हूँ !!  

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अभी  तो  कलम  की  स्याही  भर  हूँ  ,
लिख  दोगे  तो  ग़ज़ल  बन जाऊंगा  मैं !
लबों को  हरकत  भर  देना दिल  से अपने ,
हर  होंठ  पे  थिरकता  नज़र  आऊँगा  मैं !
बदन  में बिजली  सी  भर  दो  नज़र  से ,
दुनियां ही  को  टेढ़ा कर  आऊँगा मैं !
घबराओ  न , मेरी  अदाओं  से  तुम ,
गम  तेरा  हूँ  ,  तेरे  ही  काबू  में  आऊँगा  मैं !!  
दुःख  ,
बस  गया  ,
दिल  में  !
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सुख  ,
रच  गया  ,
दिल  में  !
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सुख  दुःख  ,
भिड़े  दोनों  ,
आपस  में  !
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और  ,
दोनों  ने  ,
मैदान  मार  लिया  !!

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गुनाहगार  को  बख्शो  और  सज़ा  दो  इमाँ  के  तलबगार  को  ,
तब्दीलियाँ  कैसी  ये  आई  हैं  जहां  में  मेरे  ?

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खुदाओं  से  कहदो  , हवाओं  से  परहेज़  करें   ,
उल्टी  भी  बहतीं  है  ये  बहुत  बार  !!

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वो  उड़ाना  चाहते  हैं  मछलियों  को  आसमान  में  सीधे  ही  ,
अरे , मेंढक  तो  उन्हें  पहले , बना  लो  मेरे  यार  !!
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वो  मछलियों  को  चाहें  , 
पानी  में  न  तैर  ,  पेड़ों  पे  चढ़ें !
फिर  बोलेंगे ,  नालायक  ,
इतना भी  नहीं  आता ?
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मछलियाँ  , 
पहले भी  उड़ीं  हैं  आसमान में  पंछी  बन ,
पर  जब  चाहा  उन्होंनें खुद  ये ,
जीवन  समंदर  ही  से  तो  आगे  चला है  कभी ,
पर  समझे  कौन ?
इसमें  सदियाँ  हैं  लगीं ,
और  अनंत  जीवन  की  आहुतियाँ  हुयीं !!
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धुनकी  ने  धुनी  कपास  ,
जुलाहे  ने  बुनी ,
रंगरेज़  ने  रंगा  मन  से  कपड़ा ,
ज़रदोज़  ने टांकी  ,  चाँदी  सोने  की  ज़री ,
तब  दुल्हन  की  ज़रीदार साड़ी  बनी ,
और  मुनाफ़ा  सब बाज़ार  में  बंटा ,
लुटे  रह  गये ,धुनकी ,
जुलाहा , रंगरेज़  और  ज़रदोज़  सभी !!   
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Tuesday, 17 January 2012

उनको  हमदर्दियां  भा गयीं  दुनिया  में  इतनी  ,
के  बीमारी  से  बाहिर  आना  हुआ  मुश्किल  उनका  !!

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गम  के  पीछे  , बहुत  दिन  बाद  ख़ुशी  आई  है  ,
जैसे  धूप  खिली  हो  सर्दियों की  बारिश  के  बाद !!

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बहुत  मुश्किल  से  खींचे  हैं  पीछे  कदम  ,
अब  पलट  आवाज़  ना  दो  तुम  मुझको  !
तुम  ग़ैर  नहीं  तो  अपने  भी  नहीं  अब  ,
बहुत  दर्द  है  सीने  में  जो  तूने  है दिया !!

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फैल   तो   जाए   खुशबू   चन्दन   की   हवाओं   में  ,
मगर   गुलाब   , जूही  , चमेली   , खस   और   बाक़ी  सब  ,
बेघर   न   हो   जाएँ   घर   से   मेरे   ख्याल   रखना  !
बिखर   तो   जाने   दे   रंग   गुलाबी   चूनर   में   मेरे  ,
मगर   लाल  ,  नीला  , हरा  ,  पीला   , केसरी    और   बाक़ी  सब  ,
ग़ायब  न   हो   जाएँ   इन्द्रधनुष   से   मेरे   ,  ख्याल   रखना  !
बजने   तो   दे   फ़िल्मी   गाने   देसी   अंग्रेजी   महफ़िलों   में  ,
पर   लोकगीत   ,  ग़ज़ल   ,  क़व्वाली   ,  सूफी   और   बाक़ी   सब  ,
अनजानें   न   बने   कानों   को   मेरे   ख्याल  रखना  !
और   ख्याल   रखना   के   ख्याल   तुमको   रहे   संस्कृति   का   मेरी  ,
जो   सदा    यूँ   ही   बनती   बिगडती   रही   सदियों   से   कालान्तर   में  ,
पर   रूह   जो   मेरी   भारतीयता   की   बाक़ी   रही   ,  अब   भी  रहे  ,  ख्याल   रखना  !! 

Monday, 16 January 2012

फूल  बिन  पत्तियों  के  सजेंगे क्या ?
झरनें बिना  ऊंचाई  के  गिरेंगे  क्या  ?
नदियाँ  बिना  किनारे  बहेंगी  क्या  ?
समंदर  बिना  लहर  जियेगा  क्या  ?
पक्षी  बिना  हवा  के  उडेंगे  क्या  ?
पर्वत  बिना  मैदान  जंचेंगे  क्या   ?
तारे  बिना  आसमान  ठहरेंगे  क्या  ?
दिन  बिना रात  बचेगा  क्या  ?
फिर  हम  ही  दो  बचे  हैं  क्यों  ,  लड़ने  के  लिए  ?
हम  भी  कोई  ऐसा  जोड़ा  ,  बन  जाते  क्यों  नहीं  ?
हम  भी  प्रकृति  से  सीख  लें  जीना  साथ  साथ  ,
फिर  स्वर्ग  चाहिए  किसे , मानव  ,  इस  सृष्टि  में  ?   
बिंदिया  माथे  पे  पहचान  बंधन  की  ,
नाक  में  नथुनी  नुकेल  ,
कानों  में  बुन्दों  की  रोक  ,
गले  में  कंठी  की  लगाम  ,
कमर  में  करघनी  का  बंधन  ,
हाथों  में  चूड़ी  की  गुलामी ,
और  पाँव  में  बेड़ी  पाजेब  की ,
ऐसी  डाल  आये  थे  वो  ,
कि  सदियाँ  गुज़र  गयी ,
मुझे  आज़ाद  होने  में !!
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चंद  रोज़  का  रोज़ा  और  ख़ुदा  ख़ुद  को  कर  लिया  ,
मालूम  क्या था  ख़ुदा  को  , भूख  होती  नहीं  कभी !!
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पचड़े  जितने  सब  अक्ल  के  कारण  ,
अक्ल  बिना  सब  मौज  ही  मौज !!
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आजादियों  को  समझता  रहा  आज़ादियाँ  मेरी  ,
मालूम  क्या  था  हद  से  परे  ज़मीं  किसी  और  की  है  !!
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स्याह  कर  के  मुंह  को  वो  घर  से  बाहर  निकले  ,
क्या  खबर  नाराज़  बैठा  हो  रास्ते  में  कोई  !
मौसम  में  तब्दीलियाँ  बहुत  हैं  , देश  में  मेरे  ,
हाथों  में  जूता  कहीं  , कहीं  स्याही  की  बोतल  है !!

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आँखें  तेरी  ढूँढतीं  थीं  ज़माना  मुझमें  ,
मैं   ही  कहीं  पीछे  छूट  गया  !!

Saturday, 14 January 2012


वो  खरीददार  हैं  मेरे  , रोटी  के  मोल  में  ,
उनको  पता  नहीं  है  , भूख  बाँदी  है  मेरी  !
वो  समझते  हैं  सेठ  खुद  को  , पैसा  बहुत  है  पास  ,
मैं  समझूँ  सेठ  मैं  हूँ  , ज़मीर  बिकता  नहीं  मेरा  !!
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उलझे  हैं  सुलझों  के  हालात  ,  पर  समझाए  कौन  ,
उनको  तो  वहम  है  ,  खुदा , उनके  ही  दम  पर  है खुदा !!
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चिढ़ा  आया  हूँ  मुकद्दर  को  ,  करले  जो  करना  है ,
अब  छिपने  की  जगह  देखूं  ,  मुझे  मिलती  कहाँ  है  !
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मुझे  डर  है  ज़माने  में  अब  वक्त  न  बचा  शेष  ,
जिससे  भी  पूछें  कहे  वक्त  नहीं  है  !!
जिस  गति  से हो  रहा विकास  हैरानी  है  मुझको ,
लगता  है  विकास  होने  को  है  बाकी  बहुत  और  समय  नहीं  है !!
पर  शक  है  मुझे  अबके  घूमेंगा  न चक्कर ,
गिरेगी सीधे  ही  ये रचना  अब  औंधे   मुंह  होकर  !!
जिस  गति  से  हो  रहा  विकास , विनाश  भी  होगा ,
और  जो  होगा  ज़मीं  पर  अब  पलक  झपकते  ही  होगा !! 
जिंदगी  के  हसीं  पल  , जिंदगी  ही  में  हैं  ,
क्यों  ढूँढता  है  मौत  को  , ख़ुशी  के  लिए  !!
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खेलें  जो  हार  के  लिए  , जीत  पक्की  है  ,
हार  के  डर  से  खेलें  जो  कभी  जीतते  नहीं  !!
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ईश्वर दौड़ाता  मुझे  , टांगों  में  आये  जान  ,
हो  जाता  हूँ  थक  के  चूर  तो  , गोदी  में  उठाता  वो  !!
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रौशनी  इतनी  तेरी , आँखें  चौंधिया  गयीं मेरी  ,
अब  देखूं  तो  दिखता  नहीं  , रौशन  जहां  तेरा !!
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खुदा  मुझको  काबिल  बना  सिज़दे  के  लिए  ,
मेहरबानियाँ  इतनी  तेरी  , गर्दन  उठे  नहीं मेरी  !!
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चमचागिरी  का  मज़ा  चमचों  ही  से  पूछ  ,
घूम  आते  हैं  मुंह  में  , और  चाटे  जातें  हैं  जुबां  से  वे  !!
और  मुझे  याद  आ  जाते  हैं  बोल  कुछ  विलक्षण से ,
कुत्ता  काटे  , तो  बुरा  ,  चाटे  , तो   बुरा !!
गगन  सम  विशाल  तुम  हो  और  मैं  इक  उड़ती  चिंगारी ,
पर  बुझने  से  पहले  तम  को  क्षण  भर  को  कम  कर  जाऊंगी ,
अपने  पल  भर  के  जीवन  को  कम  नहीं  आंकती  मैं ,
ज्वाला  का  कण  भर  टुकड़ा  हूँ , पर  तम पर  भारी  हूँ  मैं ,
अपने  क्षण भर  के  जीवन  में  ,  कुछ  सिखला जाऊंगी  , 
दिखला  जाऊंगी  रण  कैसे  जीते  जाते  हैं  ,  जरा  रणभेरी  बजाओ ,
मुझे  नहीं  डर  अँधेरा  छाएगा  फिर  मेरे  बुझने  पर ,
फिर  पैदा  होगा  कोई  कण  अंगार  लिए  , फैलाएगा  जो  जग उजियारा ,
मुझे  मोह  नहीं  अपने  जीवन  से  कुछ , न  डर  प्रलय  के  बाद  होगा  क्या ,
मुझे  तो  कर्म  करना  है  अपना  ,  जिस  कारण  जन्म हुआ  मेरा ,
शेष  तो  मेरी  फिर  कोई  न  कोई  माथे  पर  तिलक  करेगा ,
और  जन  जन  को , राख  हुए  जीवन  से ,  आलोकित  करता  जाएगा !!

Thursday, 12 January 2012

मैं  सोया  हूँ  मानुष शव  की  तरह , तू  चेतनता  दे , हे  गुरुनानक देव ,
मैं खोया हूँ  शव  आसन की  तरह , तू  संवेदन  दे , हे , कृष्ण हे , वासुदेव  ,
कुम्भ करण  की  तरह गहरी  नींद में  हूँ  ,  मेरे  अल्लाह , मेरे  मौला ,
कुछ  चुभती साँसों  को  भर  दे , जो   मुझको  गति  दे ,  मेरे  बुद्ध मेरे गौतम देव ,
मुझे  मानव की  समझ आये  मानव  की  तरह ,  हे  ईशु  मसीह ,  हे  महावीर ,
मानवता  के  रिस्ते  ज़ख्म ,  मेरे  तन  मन  को  झिंझोड़े  ,  कुछ  वर  ऐसा  दे  !!



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भीगी  सी  आँखें  लिए  खड़ी  भिखारन उम्मीद  मेरी ,
और  मैं  केवल  पलकें  झपकाता  जाता  हूँ ,
कोई  आयेगा  और  तोड़ेगा , आसमान  से  तारे  मेरे  लिए ,
यूं  ही  जीवन  भर , चकोर  के  जैसे , चाँद  निहारे  जाता  हूँ ,
मैं  जानता  हूँ  ये  सब  कभी  होता  नहीं , पर आलस्य  में ,
जीवन  में  आये  सब  उत्पादक  क्षण , यूँ हीं  दुत्कारे  जाता  हूँ ,
क्या  हो  सकता  है  पार  समंदर  कभी  बिन  प्रयत्न , मन  मेरे ?
उठ  चेत  समय  रहते  ज़रा ,  नहीं उम्मीद की  आँखें भीगी  ही रह  जायेंगी !!

हमदर्दियां  दिखाने  में  कोई  पीछे  न  रहा  ,
और  छुप  छुप  के  आँख  दबा  के  मज़ा  ले  रहे  थे  सब  !
हमको  गिला  उनसे  नहीं  रहा  कभी  है  कुछ  ,
किस्मतें  ही  कुछ  ऐसी  मेरी  , ज़ख्म  माथे  पे  मिला , नहीं  छुपा  लेता  यार !!
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तेरा  क़ुसूर  क्या  है  , मुझको  खबर  नहीं  ,
पर  सौदेबाजी  पे  उतर  आये  हैं  , शरीफ  पत्रकार  !!
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तेरी  दुनिया  में  हर  चीज़  करिश्मा  है  और हर  चीज़  है  फानी  ,
फिर  मौत  को  इन  सब  में  शामिल  , मैं  क्यों  नहीं  करता  !!
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वो  अंधेरों  के  कहने  से  , उजालों  को  भी  रंग  कर  आ  गये  काला  ,
अब  उनके  चेहरे  पर  भी  , दिन  की  धूप  छाँव  रहती  है  !!
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कोरी  भावुकता  में  हम  बह  जाते  हैं  अक्सर  ,
पल्ले  जो  भी  होता  है  , वाह  वाही  में  लुटाते  हैं  !!
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हर  शै , हर  शै  को  परखती  है  , भोजन , व्यवहार  और  व्यापार  से  पहले  ,
पर  कुत्ता  बदनाम  है  बेचारा  , जो  ये  सब  सर - ए -आम  करता  है  !
चाहते  तो  हैं  हम  परिवर्तन  हर  घड़ी  हर  पल  ,पर  पहल  करे  कौन  ? नज़ारा  देखते  हैं  !
अरे  जो  करना  है  ज़माने  में  ,छाती  ठोक और  करले  ,
ये  ज़िन्दगी  भी  तेरी  है  और  हक  भी  है  तुझको  !
ज़माना  अब  तमाशाई  है  जो  , बाद  में  पीछे  आएगा  ,
दो  चार  गाली  के  बाद  फिर  ,गुणगान  गायेगा  !!
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चाँदी  के  चम्मच  से , आसमान  के  तारे , उनके  मुंह  में  भर  दिए  ,
पर  मिट्टी  खाने  की  बचपन  की  आदत  गयी  नहीं  उनकी  !
यूं  तो  अपनी  पगार  ख़ुद  ही  बढ़ाने  की  ताकत  है  उनके  पास  ,
पर  देश  की  सभाओं  में  प्रश्न  की  कीमत  ,अलग  से  मांगते  हैं  वो !!