Tuesday, 1 November 2011

चलते  रहिये  कभी  तैरिये  कभी  डूबिये  , यादों  का  सागर  , जीवन  अथाह  , मिलिए  कभी , बिछुड़ते  रहिये !





सूरज  से  सीधे  आये  तो  धूप , छन के  आये  चाँद  से  तो  चांदनी  है  !

रोशनी  तो  वही है  जहां  में  , खुदा  कह लो  , भगवन  कह लो  या  ईसा !!

खुली  आँख  से  रात  को  सोता  हूँ  , जाम  से  उल्टे  पीता  हूँ  !
जितने  भी  हैं  उल्टे  काम  मेरे  , उनके  सहारे  जीता  हूँ  !!

आ  जाओ  तो  तुम  मन  के  करीब  , हाले  दिल  को  जो  तुमने  सुनना  है  ! 
रास्ता  तो  यहीं  से  जाता  है  , घबराते  हो  क्यों  इन  गलियारों  से  !!

राम  से  है  डरता  रहीम  कहाँ  ? दोनों  में  है  छनती  गाढ़ी  यहाँ  !!

हालात  बेहतर  हों  तो  ,बुलाना  मुझको  , अब  तो  वैसे  भी  तुम  मिलने  से  कतराओगे ! 
चाहो  तो  फिर  भी  , बुलाना  मुझको  , इक  आवाज़  पे  दौड़ा  चला  आऊँगा  !!

मैं  जड़  था  , कोई  फूल  नहीं  खिला  ! तनाव  ग्रस्त  हुआ  , तना  बना  , कोई  फूल  नहीं  खिला  !
सब  भाव  मिटा  दिए  , विभाजित  हो  गया , टहनियां बन  गयीं  , पत्तों  में  नई  जान  आई  ,
पत्ते कलियों  में  बदल  गए  , मन  खिल  गया  ,अब  चारों  तरफ  फूल  ही  फूल  खिल  गए  !
मैं  मस्त  हो  गया  ! नए  नए  मिलन  किये , फल  बना  और फिर  बीज  बन  गया  ,
फिर  धरती  में  चला  गया  , अब  फिर  जड़  हूँ  !!

आज  मैं  चुप  ! तो  उन्हें  खलने  लगा  !
मेरी  बातों  से  तंग , को , मौन  डसने  लगा  !
मेरी  चुप  से  तूफ़ान  न  आये  , इसका  कोई  ढंग  निकलने  लगा  !!

बातों  को  मीठा  करदे  , बदला  है  मुझको  लेना  ! मारा  था  उसने  खंज्जर , जहर  बुझा  , जहर  बुझा  !!

ये  ज़रूरी  तो  नहीं  ,चाँद  ही  मांगो  तुम  ? चांदनी  तो  मुमकिन  है  , मिल  भी  तुम्हें  जाए  !!

सादा  से  जो  कपड़े हैं  , फ़क़त  इनपे  न  जाओ  ! कस्तूरी  सा  महका  हूँ  , दिनभर  के  पसीने  में  !!

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