Wednesday, 2 November 2011

सूरज  निकल  भी   आये  पश्चिम  से  ,  पर  झूठ  मुझे  है  रास  नहीं  !

समझो  तो  इशारा  काफी  है  , पर्वत  का  गिराना  ठीक  नहीं  !
अड़चन  है  हमारे  मिलने  में  ,  दुश्मन  है  ज़माना  सारा  यहाँ  !!

आया  तो  पकड़  में  था  चाँद  मेरे  , पर  पलक  झपकते  फिसल  गया  !
सूरत  जो  तुम्हारी  दिखती  है  ,  सब  उल्टा  पुल्टा  होता  है  !!



पपीहा    बोल  ,    बोल , जियरा  जले  मोरा , पीहू  , पीहू  !
कोयलिया    बोल    बोल , हियरा  धडके  मोराकुहू , कुहू  !!
घन  गर्जत  बरजोरडरावे   बिजुरी  ,  तड़  तड़ , तड़   तड़ !
बरसे  घटा  घनघोर  ,  चहुँ  ओरझरावे , झर  झर , झर ,  झर !! 
चिढावे  नकटी  पड़ोसन  , दिखावे  नखरे , बन  ठन , बन  ठन  !
पियरवा काहे  बसो  परदेस  ,  ज़रा  सा  , हम भी  रहते  तन  तन  !!

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