अरे इतना न इतराओ तुम जाने जाना , तारीफ़ के काबिल हो ये हमने माना !
पर सर चढ़ के बोले , ये बोतल वही है , सुबह फिर लगोगी गुज़रा ज़माना !!
मैं शामिल हूँ तेरे ,बड़े कद्रदानो में , पर सच है के , कद मेरा , ऊंचा नहीं है !!
सुभानअल्लाह से तेरा हुस्न हमने सराहा , और तू है के देने को , सज़ा , अब उतारू है !!
महफ़िल में चर्चा बहुत था तेरा , पर गुनाहों पे तेरे , मैंने पर्दा किया !!
नवाज़ा है तुमने , खुदा खैर हो !
रुतबा हो आधा ,खुदा खैर हो !
उनको जहां सारा , खुदा बख्श दो ,
और गुनाहों को मेरे , ज़रा बख्श दो !!
चूल्हे पे चढ़ाया है , सिर्फ खाली पानी ! और इंतज़ार है के , खिचड़ी बनेगी !!
जिन्हें हम जानते हैं , बरसों बरस से , वो अचानक अजनबी से हो गए हैं !
शायद लुटना गैर से , अखर गया है , वे तो , मानते थे हमें , जायदाद अपनी !!
जिधर देखूं उधर तू , तू ही तू बस , दिख रहा है !
और दुनियां है ये कहती , मचला है , और होश में है !!
ख़ाली ख़ाली सा है , आज महफ़िल का रंग ! शायर कोई , गम घर भूल आया है !!
पहाड़ों का छलनी कलेजा हुआ , कोई आज उनकी सुनता नहीं !
लग रही नित फैक्ट्री सीमेंट की है , और प्रतिध्वनि पहाड़ों से आती नहीं !!
तू रख इसका ख्याल , या के झूठ मान ले ,शामिल हुआ हूँ , तेरे गुनाह में !!
मंजिल को दिखाया तेरा रास्ता , और मंजिल को तूने , बेघर किया !!
गुलिस्तां पे पहरे जो बिठाए थे तुमने , भँवरे ने सब वो , नेस्तनाबूद किये !
भंवरे को पसंद था एक ख़ास फूल , माली ने उसको ,नुमाईश बनाया !!
नुमाईश के चलते तू परेशान थी , और परेशानी के तेरे , कई कद्रदान थे !!
सुबह से तो तेरा था इंतज़ार , पर अब रात मेरे सिरहाने खड़ी है !!
साधो ये मिट्टी , है उस जहां की , जो भी बनाना , संभल के बनाना !
बस एक दिल में , रखना उस की मूरत , उस से जुडूं मैं , ऐसा मन बनाना !!
तेरा नूर है सब ,ज़माने में है जो ! तेरे नूर से है , रोशन ज़माना !!
मगर ऐ गुलिस्तान के , सिर्फ एक मालिक , मेरे तक जो पहुंचे , सीधे ही पहुंचे !!
न उसे रोक पाएं , ज़न्नत की हूरें , न उसे नम कर दें ,शबनम की बूँदें !!
न घुमा पाए उसको , ज़माने की रौनक , न बहला पाएं ये रंगीन नज़ारे !!
तू बस अब मुझको पनाहों मैं लेले ,और नूर अपना महफूज़ करले !!
महबूब से मेरी , मुलाक़ात होगी , ऐसा तो मैंने सोचा नहीं था !
मैं तो उसे , देखा करता था सपनों में , खुदा होगा करीब , ऐसा सोचा नहीं था !!
युग बदले और ज़माने बीते , पर हमें गर्व है सभी संस्कृतियों पर ,
चाहे जितनी मर्जी खुशहाली का साम्राज्य रहा , हमने गरीबी को , कभी मरने नहीं दिया !!
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