Friday, 4 November 2011


अरे  इतना  न  इतराओ  तुम  जाने  जाना  , तारीफ़  के  काबिल  हो  ये  हमने  माना  !
पर  सर  चढ़  के  बोले  , ये  बोतल  वही है  , सुबह  फिर  लगोगी  गुज़रा  ज़माना  !!
मैं  शामिल  हूँ  तेरे  ,बड़े  कद्रदानो  में  , पर  सच  है  के  , कद  मेरा  , ऊंचा  नहीं  है  !!
सुभानअल्लाह  से    तेरा  हुस्न  हमने  सराहा   , और  तू  है  के  देने  को , सज़ा , अब  उतारू  है  !!
महफ़िल  में  चर्चा  बहुत  था  तेरा  , पर  गुनाहों  पे  तेरे  , मैंने  पर्दा  किया  !!

नवाज़ा  है  तुमने  , खुदा  खैर  हो  !
रुतबा  हो  आधा  ,खुदा  खैर  हो  !
उनको  जहां  सारा  , खुदा  बख्श  दो  ,
और  गुनाहों  को  मेरे  , ज़रा  बख्श  दो  !!

चूल्हे  पे  चढ़ाया  है  , सिर्फ  खाली  पानी  ! और  इंतज़ार  है  के  , खिचड़ी  बनेगी  !!

जिन्हें  हम  जानते  हैं  , बरसों  बरस  से  , वो  अचानक  अजनबी  से  हो  गए  हैं  !
शायद  लुटना गैर  से  , अखर गया  है  , वे  तो , मानते  थे  हमें ,  जायदाद  अपनी  !!

जिधर  देखूं  उधर  तू  ,  तू  ही  तू  बस  , दिख  रहा  है  !
और  दुनियां  है  ये  कहती  , मचला  है  , और  होश  में  है  !!

ख़ाली  ख़ाली सा  है  , आज  महफ़िल  का  रंग  ! शायर  कोई  , गम घर  भूल  आया  है  !!

पहाड़ों  का  छलनी  कलेजा  हुआ  , कोई  आज  उनकी  सुनता  नहीं  !
लग  रही  नित  फैक्ट्री सीमेंट   की  है  , और  प्रतिध्वनि  पहाड़ों  से  आती  नहीं  !!
तू  रख  इसका  ख्याल  , या  के  झूठ  मान  ले  ,शामिल  हुआ  हूँ  , तेरे  गुनाह  में  !!
मंजिल  को  दिखाया  तेरा  रास्ता  , और  मंजिल  को  तूने , बेघर  किया  !!
गुलिस्तां  पे  पहरे  जो  बिठाए  थे  तुमने  , भँवरे  ने  सब  वो  , नेस्तनाबूद  किये !
 भंवरे  को  पसंद  था  एक  ख़ास  फूल  , माली  ने  उसको  ,नुमाईश  बनाया  !!
नुमाईश  के  चलते  तू  परेशान  थी  , और  परेशानी  के  तेरे  , कई  कद्रदान  थे  !!
सुबह  से  तो  तेरा  था  इंतज़ार  , पर  अब  रात  मेरे  सिरहाने  खड़ी है  !!

साधो  ये  मिट्टी  , है  उस  जहां  की  , जो  भी  बनाना  , संभल  के  बनाना  !
बस  एक  दिल  में  , रखना  उस  की  मूरत  , उस  से  जुडूं मैं  , ऐसा  मन  बनाना  !!

तेरा  नूर  है  सब  ,ज़माने  में  है  जो  ! तेरे  नूर  से  है  , रोशन  ज़माना  !!
मगर  ऐ गुलिस्तान  के  , सिर्फ  एक  मालिक  , मेरे  तक  जो  पहुंचे  , सीधे  ही  पहुंचे  !!
न  उसे  रोक  पाएं  , ज़न्नत  की  हूरें  , न  उसे  नम  कर  दें  ,शबनम  की  बूँदें  !!
न  घुमा  पाए  उसको  , ज़माने  की  रौनक  , न  बहला  पाएं  ये  रंगीन  नज़ारे  !!
तू  बस  अब  मुझको  पनाहों  मैं  लेले  ,और  नूर  अपना  महफूज़  करले  !!

महबूब  से  मेरी  , मुलाक़ात  होगी  , ऐसा  तो  मैंने  सोचा  नहीं  था  !
मैं  तो  उसे  , देखा  करता  था  सपनों  में  , खुदा  होगा  करीब  , ऐसा  सोचा  नहीं  था  !!

युग  बदले  और  ज़माने  बीते  , पर  हमें  गर्व  है  सभी  संस्कृतियों  पर  ,
चाहे  जितनी  मर्जी  खुशहाली  का  साम्राज्य  रहा  , हमने  गरीबी  को  , कभी  मरने  नहीं  दिया  !!





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