Wednesday, 2 November 2011


मैं   बैठा   हूँ   मौन   ,  एक   कोने   में   ,
मैले   चीथड़ों   में   लिप्त   हुआ   ,
सुन   रहा   हूँ   निर्लेप   भाव   से   ,  लोगों   का   बडबडाना   ,
देखो   बच्चे   ,  उसके   पास   मत   जाना   ,  वो   पागल   है   ,
कब   तुम्हें   पत्थर   मार   दे   कुछ   पता   नहीं  ,
मेरा   मौन   रहना   ,  मेरी   मौन   स्वीकृति   है   उनके   लिए   !
एक   और   उत्सुक   बच्चा   ,  बात   नहीं   सुनता   ,
मुझे   घूरता    हुआ    और   पास   आ   जाता   है   ,  जांचने  , मैं   कहीं  
मरा  तो   नहीं   ?  मेरी   आँखें   खुली   ,  फिर   बंद   हो   गयीं  ,
बच्चा   निश्चिन्त   हुआ   ,  मैं   जिन्दा   हूँ   !
मेरा   मौन   उन्हें   अनबूझ   लग   रहा   था   , 
मौन   की   भाषा   से   अनजान   जो   थे   !
अब   मेरी   सहनशक्ति   की   जांच   होने   लगी   ,  दूर   से   ,
डंडे   से   हिला   डुलाकर   ,  फिर   भी   प्रतिक्रिया   नहीं   हुई   !
अचानक   बच्चे   ने   पत्थर   मेरे   सर   पर   दे   मारा   !
मेरा   मौन   टूट   गया   ,  बहुत   दिनों   से   कुछ    बोला   नहीं   था   ,
शब्द   एक   धारा  में   बहने   लगे   ,  बिना   किसी   जुड़ाव   के   ,
बाँध   जो   टूटा  था   !  अर्थ   न   मेरी   समझ   में   आ   रहे   थे   ,
न   उनकी   डिक्शनरी   उनका   साथ   दे   पा  रही   थी   ! 
अब   वो   निश्चिन्त   हो   गए   !  सच   में   पागल   है   , घोषणा   कर   गए   !
और   मैं   फिर   मौन   हो   गया   ,  विश्लेषण   करने   के   लिए   ,
मैं   पागल   हूँ   या   जग   पागल   है   ?  जिसने   नया   कुछ   सोचने   वालों   को   भी
पागल   माना   ,  समाज   के   नियमों   को   निभाने   के   लिए   जान   पर   खेलने  
वालों   को   भी   पागल   माना   ,  और   समाज   को   बदलने   की   चेष्टा   करने  
वालों   को    भी   पागल    माना    ,  मेरी   तरह   निश्चेष्ट   पड़े   रहने   वालों   को
भी   पागल    मना  !  शायद  जग  का  अपना  एक  अलग  मापदंड  है    !! 

No comments:

Post a Comment