मैं बैठा हूँ मौन , एक कोने में ,
मैले चीथड़ों में लिप्त हुआ ,
सुन रहा हूँ निर्लेप भाव से , लोगों का बडबडाना ,
देखो बच्चे , उसके पास मत जाना , वो पागल है ,
कब तुम्हें पत्थर मार दे कुछ पता नहीं ,
मेरा मौन रहना , मेरी मौन स्वीकृति है उनके लिए !
एक और उत्सुक बच्चा , बात नहीं सुनता ,
मुझे घूरता हुआ और पास आ जाता है , जांचने , मैं कहीं
मरा तो नहीं ? मेरी आँखें खुली , फिर बंद हो गयीं ,
बच्चा निश्चिन्त हुआ , मैं जिन्दा हूँ !
मेरा मौन उन्हें अनबूझ लग रहा था ,
मौन की भाषा से अनजान जो थे !
अब मेरी सहनशक्ति की जांच होने लगी , दूर से ,
डंडे से हिला डुलाकर , फिर भी प्रतिक्रिया नहीं हुई !
अचानक बच्चे ने पत्थर मेरे सर पर दे मारा !
मेरा मौन टूट गया , बहुत दिनों से कुछ बोला नहीं था ,
शब्द एक धारा में बहने लगे , बिना किसी जुड़ाव के ,
बाँध जो टूटा था ! अर्थ न मेरी समझ में आ रहे थे ,
न उनकी डिक्शनरी उनका साथ दे पा रही थी !
अब वो निश्चिन्त हो गए ! सच में पागल है , घोषणा कर गए !
और मैं फिर मौन हो गया , विश्लेषण करने के लिए ,
मैं पागल हूँ या जग पागल है ? जिसने नया कुछ सोचने वालों को भी
पागल माना , समाज के नियमों को निभाने के लिए जान पर खेलने
वालों को भी पागल माना , और समाज को बदलने की चेष्टा करने
वालों को भी पागल माना , मेरी तरह निश्चेष्ट पड़े रहने वालों को
भी पागल मना ! शायद जग का अपना एक अलग मापदंड है !!
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