सुना है तेरे गालों की लाली उतार दी तैनें ,
चलो अच्छा हुआ , वक्त का सच वक्त रहते , मान लिया !
मेरे भी काले बालों का सच उजागर हुआ ज़मानें में ,
पर मैं चूक गया , कालिख के प्रभाव से गंजा हुआ , जान लिया !!
गिरगिटों के नित बदलते रंगों ने , मेरा मन कुछ उदास किया ,
आता अगर ये फन मुझको भी , मैं भी गर्दन झटक रहा होता !!
मेरा मन ये बैरी मन , सोचता है कभी , ये शाम ही रंगीन क्यों होती ,
बदनाम रात ही क्यों होती , क्या दिन के उजाले में वो सब नहीं होता !!
पगडंडियाँ हैरान हैं , करती हैं सवाल , क्यों मचाते हो बवाल जब , ऊपर ले जाती मैं ?
चोटी पे पहुँच , मज़ा लेते जब , देखते दुनिया के नज़ारे हो , क्यों अच्छा लगता है न ?
फिर चार बूँद पसीने की मेरी , जो मेरी ही कमाई है , क्यों देने से कतरा जाते हो , है न ?
दौड़ते जब उतराई में , प्रयत्न बिना , हँसते मुस्कुराते , वो तो ईनाम भी देती हूँ न ?
फिर क्यों भला कोसते हो चढ़ाई को , हर कदम चढ़ते हुए देते हो गाली , क्यों है न ?
भले मानुस प्रयत्न तो अवश्य ही कुछ करना होगा , बिना प्रयत्न तो बस मरना होगा !!
हमें यूँ न जाईये दरस दिखला के , सदियों से इंतज़ार में था सपना मेरा
चलो अच्छा हुआ , वक्त का सच वक्त रहते , मान लिया !
मेरे भी काले बालों का सच उजागर हुआ ज़मानें में ,
पर मैं चूक गया , कालिख के प्रभाव से गंजा हुआ , जान लिया !!
गिरगिटों के नित बदलते रंगों ने , मेरा मन कुछ उदास किया ,
आता अगर ये फन मुझको भी , मैं भी गर्दन झटक रहा होता !!
मेरा मन ये बैरी मन , सोचता है कभी , ये शाम ही रंगीन क्यों होती ,
बदनाम रात ही क्यों होती , क्या दिन के उजाले में वो सब नहीं होता !!
पगडंडियाँ हैरान हैं , करती हैं सवाल , क्यों मचाते हो बवाल जब , ऊपर ले जाती मैं ?
चोटी पे पहुँच , मज़ा लेते जब , देखते दुनिया के नज़ारे हो , क्यों अच्छा लगता है न ?
फिर चार बूँद पसीने की मेरी , जो मेरी ही कमाई है , क्यों देने से कतरा जाते हो , है न ?
दौड़ते जब उतराई में , प्रयत्न बिना , हँसते मुस्कुराते , वो तो ईनाम भी देती हूँ न ?
फिर क्यों भला कोसते हो चढ़ाई को , हर कदम चढ़ते हुए देते हो गाली , क्यों है न ?
भले मानुस प्रयत्न तो अवश्य ही कुछ करना होगा , बिना प्रयत्न तो बस मरना होगा !!
हमें यूँ न जाईये दरस दिखला के , सदियों से इंतज़ार में था सपना मेरा
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