Monday, 21 November 2011

आज  मैं  चंचल   मकड़े  के ,  शिकारी  मन  में फँस  गया  अचानक ,
बन  बैठा  मकड़ा  ,  दुबक  रहा  ,  केंद्र  में  घात  लगाए  ,
सब  तारों  का  स्पंदन , स्पर्शाये ,  ध्यान  जमाये  ,  हर  हलचल  पर ,
रूं  रूं , रीं  रीं  ,  भिन  भिन ,  हूँ ,  हूँ ,  जितने  हैं  ,  सब  प्रिय  स्वर , सुनता  हूँ ,
जाला  बुनना  कहाँ  है  काम  आसान  ?  रेशा  रेशा  , छोड़ छोड़ , 
नए  नए , इंजीनियरिंग डिजाईन ,  बना  बना  ,बड़ा  हुआ  ,  शिकार  फंसा  फंसा ,
ठहरो  ,  कुछ  हिला  ?  हाँ  ,  अब  आया  मज़ा  ,  फंसा  ,  पतंगा  बड़ा  ,
अभी  पास  नहीं  जाऊंगा  ,  थकने  दो  थोड़ा  ,  हाँ  अब  ठीक  है  ,
आ  बच्चू  ,  बड़ा  फड़फड़ा   रहा  है  ,  ठहर   तेरी  टांगें  जकडूँ  पहले  ,
आ  अब  तेरा  सिग्नल  बाँधूं  ,  पंक्खों  को  डालूँ  फंदा  ,  ठहर  ठहर ,
तेरी  गर्दन  पर  पाँव  मेरा  अभी  आता  है  ,  ठहर  ज़रा  , 
इंजेक्शन ज़हर  भरा  ,तेरी  नस  में अब  जाता  है  , हा  !  अब  थोड़ा  चैन  हुआ  ,
हलचल  थमी  थोड़ी  सी  ,  आ  पुच्कारूं  तुझे  ,  तेरी  मौत  आसान  बना  दूं   ,
हाँ  अब  शांत  हुआ  ,  ठहरो  बाँधूं  अब  गट्ठड़ ,  डालूँ  कंधे  पे  , 
चलूँ  अब  आराम  से  खाऊंगा ,  रात  को  ,  हो ! हो ! हो !  फिर  कोई  हलचल  हुई , 
रुको  आता  हूँ  ..........  और  मुझे  मकड़ी  के  मकड़  जाल  से  भागने  का  मौका  मिल गया !!

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