ये जीवन मदिरा ,धीरे धीरे से , हलके हलके से , चुस्की ले ले के पी !
जीवन के तू , कड़वे घूंट भी , मजे मजे से , बिना तनाव के पी !
हो जाए न छलनी , दिल दिमाग और , ये कलेजा , इसे एक घूंट में न पी !!
आओ समझौता करलें हम तुम ,
कुछ सीमाएं तुमने लांघी , कुछ सीमाएं मैंने लांघी ,
आओ झगड़ा निपटाएं हम तुम !!
मेरा भी कुछ सपना था , तेरा भी कुछ सपना होगा ?
बीच में कहीं टकराए , हम तुम !
आओ कुछ समझौता करलें , कुछ तो नियमों में हम बंधलें ,
राम कही को कुछ तो समझें , क्यों अकड़े हैं अब बस हम तुम ,
आओ झगड़ा निपटाएं हम तुम ,और इक समझौता करलें हम तुम !!
मैं शाह का रुपया हूँ , बाकी रुपयिओं से भारी ,
कबड्डी में लाता हूँ दूसरे पाले से उठा रुपईए चार ,
हर बार ! न हो विश्वास तो आया मैं ,
कबड्डी ,कबड्डी ,कबड्डी ........................
हमें न सताओ पिया होरी के बहाने , सब अखियाँ हमें निहार रहीं !हमें ....
तुम करते हो हंसी और ठिठोली ,श्याम पिया ,तुम करो बरजोरी , मेरी चुनरिया छूटी जाए रे ! हमें .....
रंग तो छोड़ो न , पानी वाले कृष्ण ,तन के कपडे भीगे सब जाएँ ,मेरी सास ननदिया धाये रे ! हमें .......
यूं जहां में क्यों मरिये , तरस तरस ज़मानें को ? तेरे हाथों में खज़ाना है , सोच लीजे और जी जाइए !!
जहां से पूछिए मेरा हाल , जिधर घूमा रास्ता घूमा उधर !!
संगदिल हैं वो तो क्या , हमने भी , संग से बुत तराशे हैं !!
हम हैं तन्हाई के आलम में , और वो हैं के अपनी सुनाये जाते हैं !!
मेरा भी उन तक सलाम क्यों पंहुंचे ? हम भी हैं ख़ार खाए हुए !!
मेरा है खाना ख़राब उनकी वजह , और वो मुर्ग मुसल्लम खाएं ?
जुलूस निकला है वज़ीरे आला का , शामिल चार जन जो हैं , उधारी के हैं !!
तू चला चल जिधर भी चला चल , तेरा नसीब हूँ पीछे आऊँगा !!
मेरा मौला है आला मालिक , जब भी बख्शे , खुल के , बख्शे खजाने है !!
देख मुखड़ा , ज़रा आइने में देख , जितना मेकप है ,सब उधारी का है !!
मौज मस्ती का ज़माना बदला , खेल मैदानों के अब आइनों में हैं !!
राम जाने बदलेगा क्या क्या नक्शा , मैं तो हर पल साइंसदानों की खबर रखता हूँ !!
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