Friday, 25 November 2011



  • निगाहों  से  रंग  खेला  था  , दामन  तो  भीगा  रंज  से  है  !




  • सागर  तो  उतरा  जाम  में  था  , दिल  में  ज्वार  कैसे  है  !!


  • खुमार  है  चढ़ा  हुआ  , उतरता  जो  कभी  नहीं  !



  • राम  कृष्ण  , हरी  हरी  , बार  बार  पीता  हूँ  !!


  • अंधे  और  अंधे  में  , अंधेपन  का  अंतर  है  !



  • इक  को  बिन  आँखों  के  दिखता है  ,



  • दूजे  को  आँखों  से  भी  सूझे  न  !!


  • मेरी  शामों  को  लौटा  दे  शाम  से  पहले  , मुझे  अगले  पथ  पर  जाना  है  !



  • कुछ  पंथ  अभी  भी  बाक़ी  हैं  , जीवन  रीता  न  रह  जाए  !!


  • जीवन  के  रास्ते  अंधे  नहीं  हैं  , खुलते  हैं  हमेशा  प्रकाश  पुंज  में  !



  • घबरा  मत  तू  इम्तिहान  से  , प्रश्नों  के  , सबके  उत्तर   हैं  !!


  • उजालों  को  नए  रंगरूप  दे दो  , दोपहरी  मुझे  अच्छी लगने  लगी  है  !



  • बादलों  के  आवरण  मन  से  हटने  लगे  हैं  , अवसाद  के  क्षण  घटने  लगे  हैं  !!



  • ज्यों  ज्यों  जीवन  दर्शन  दरस  रहा  है  , अमृत  आसमान  से  बरस  रहा  है !



  • और  भीगी  पलकें  मेरी  हँसने  लगी  हैं  , चूनर गोरी  का  दिखने  लगा  है  !!



  • भर  भर  खुशियाँ  बरसने   लगी   हैं  ,  और  बिछुड़े  साथी  मिलने  लगे है !



  • जीवन  को  समझने  का  अंदाज़  बदला , और  जीवन  मौत  पे  हँसने  लगा  है  !!


  • तुम  गुल  खिलाओ  , मैं  दूं  शाबाशियाँ  , गुलों  से  खुशबू  आएगी  !



  • तू  करेगा  कमाल  नए  नए  , और  बरसेंगी  मुबारकबादियाँ  !!

    मेरी  मजबूरियों  को  समझ  लेना  ,  मैं  यूँ  ही  नहीं  हैराँ  ,
    कुछ कुछ  तो  ज़माना  भी  ,  चाहेगा  ना  सनम  मेरे   !
    तेरी  कीमत  तो  हमेशा  ,   मेरी  जान  से  ज़्यादा  है  ,
    तेरे  कारण  हूँ  मैं  , मेरी  दुनिया  की  मालिक  हो  तुम !
    पर  तेरे  ही  कारण  को  ,  दुनिया  को  अता  करदूं   ,
    दुनिया  के  जो  कर्जे  हैं  ,  और  हमको  चुकानें  हैं  !!

    तुमको  अगर  चाहिए  ,  मेरी  वफ़ा  का  सबूत ,
    मैं  दुनिया  को  दिखाने  को  हनुमान  ना  बनूँगा !
    मेरे  दिल  में , तेरी  है , कीमत  क्या क्या और  क्यों ,
    जीवन   कोई  बाज़ार  नहीं  है , कि नुमाईश  लगादूं  !!

    तू  चाहे  अगर  मुझसे  , मैं  जान  भी  दे  दूँ  ,
    पर  जान  से  कम  में  क्या , काम  ना चलेगा  ?
    जान  मेरी  के  तो  ,  दुश्मन  भी  हैं  ग्राहक ,
    शामिल  है  क्या  तू  भी  उनके  हुज़ूम  में  ?

    दुनिया  मेरे  ख्वाबों  की  ,  तूने  बसाई  है , वर्ना  यहाँ  सब  कुछ  सुनसान  ही  सुनसान  है ,
    घबरा  के  बहक  जाता  ,  और  रातों  को  रोता  मैं ,  पर  तूने  कितनी  तकलीफें  उठायी  हैं  !!

     देती  मुझे  सब  कुछ  ये  ज़मीं , मेरी  माँ  है  ,
    और  रोता  हूँ  अम्बर  को , न्याय   कहाँ  है  ! 























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