Sunday, 6 November 2011


जाने  जाना  हो  , फिर  भी  शक  सा  है  आँखों  में  ?
कहीं  मैं  भी  कोई  , फलसफा  तो  नहीं  !!
अब  दिल  तो  दिल  है  , दिखाऊँ  कैसे  ?
मैं  कोई  हनुमान  तो  नहीं  !!

आइना  सच  तो  बोले  है  ,पर  बोले  है  कुछ  घुमा   फिरा  करके  !
दायें  को  बायाँ  ,  और  बायें  को  दायाँ  बताता  है  ,  पूछा  क्यों  ?
तो  बोला  यूँ  ,  क्या  मुझको तोड़ोगे ?  बताऊँ  अगर  सच  पूरा  ?
नहीं ! मैं  बोला  जब ,  बोला , पत्रकार  हूँ  , मुझको  भी  तो  घर  चाहिए  !!

सदा  जीता  जो  सिकंदर  हुआ  ,  हारने  वाला  चाहे  सच्चा   था  ,
क्योंकि  शेष  जो  जीवन  रहा  ,  आत्मसमर्पण  ही  नाम  था  उसका !!
जो  था  सब  जल  के  ख़ाक  हुआ  , अब  सिर्फ  रोशनी  है  वहां  !!

हाइड्रोजन  जले  तो  पानी  बनता  है  , कैमिस्ट्री  बताती  ये  नाज़  से  है  ?
और  जो  जल  को  , जलना  और  पानी  , सदियों  से  बताते  हम  ,वो  सिर्फ  फानी  है  ?
तुम  भी  जल  के  इक  बार  देखो  तो  , कैसा  झरना  सा  फूटे  दिल  में  है  !!



जाने  क्या  क्या  कमाल  करता  हूँ  , जो  न  मेरे  , उनका  मलाल  करता  हूँ  !!

अब  तो  मिलने  पे  भी  तोहमत  बरपी   , पहले  आला  हज़रत हमें  वो  कहते  थे  !!

सर  मेरा  है  , ताज   उसका  है  ! देखता  है  वो  नज़ारे  दुनिया  के  !!

जुगनुओं  को  साथ  ले  के  चल  ,  सिखायेंगे  वो  रौशनी  का  हुनर  ,
कुछ  आग  तो  दिल  में  रख  ,  तुझको  जहां  से  अँधेरा  हटाना  है  !!

जब  जड़  भी  जीवन  का  दाता  है  , और  सब  यहीं  से  आता  है  ,
तो  तुम  क्यों  कंजूस  कहाते  हो  , माया  नहीं  तो  मन  ही  दे दो !!

 बादल  बहुत  दिन  हुए  नहीं  आया  ,  न  आया  उनका  कोई  सन्देश !
खाली  अम्बर  से  बिजली  गिरती  है  ,  है  किसी  किसी  को  ये  मालूम !!




है  दिल  तुम्हारे  सीने  में  तो  दर्द  बाँट ले  ,  माँ  को  दे  रहे  ज़ख्म  नित  नए  , कुछ   कुपूत  हैं  !
उठा  रहे  हैं  भद्दी  नज़र  ,  पड़ोसी  घायल  जान  ,  ताल  ठोंक  ,  घोषित  करो  अभी  जिंदा  सुपूत  हैं  !!


आधी  अधूरी  बात  करता  हूँ  ,तुम  छोडो  मैं  पकड़ता  हूँ  ! छोड़ने  पकड़ने  में  जो  मज़ा  है  , पूरी  करने  में  कहाँ  है  ?
मैं  जानता  हूँ  राज़ , कई  वक्त  के , करना  ख्याल  उसका , काल  की  तरह  !
या  तो  करोगे  तुम , इस्तेमाल  उसे  , या  वो  पसरता  जाएगा  नाग  की  तरह !! 

बरसो  रे  ,  नयन  से  ,  आँख  के  सुपूत  ,  
दिख  रहे  हैं  पलकों  में  ,  समंदर  रुके  हुए !
बरसों  से  बंधे  हुए  हूँ  ,  साए  की  तरह ,
सुनते   नहीं  है  श्याम  ,  हैं  गले  रुंधे  हुए !
तुम्हारे  कारण  चलना  भी  मुश्किल  हो  रहा  ,
और  श्याम  जान  जायेंगे  ,  बंधन  बंधे  हुए !

  

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