Saturday, 5 November 2011

मेरा  सपना  रोज़  बिखरता  है  ,  सच  के  करीब  हो  तो  तो  कोई  !
जाने  बनते  हैं  किस  के  हाथों  ,  मेरा  सपना  भी  सच  बनाये  कोई !!

तेरी  महफ़िल  में  मेरा  यूँ  आना  ,  किसी  स्वागत  के  काबिल  था  ही  नहीं  !
पर तेरी  तहज़ीब  तो  समंदर  है  ,  खुले  दिल  से  बिठाया ,  सर  आँखों  पर  !!

जाम  छलके  हैं  ,  और  छलके  हैं  कुछ  कायदे  से  ,
सब  हैं  मदहोश  ,  और  होश  में  भी  हैं  !!

तेरी  यादों  को  किनारे  रख  आया  ,  डूबता  उनमें  तो  भीग  ही  जाता  !!

मुझे  कारवां  मिलता  है  ,  मेरी  मंजिल  पर  पहुँचने  के  बाद !
शायद   ये  सोच  है  के  ,  मैं  भी किसी  कारवां  का  रहनुमाँ  रहूँ   !!

सदाबहार  है  संगीत  ,  बांसुरी  श्याम  की  मचाये  शोर  ,
वीणा  सरस्वती  की  सजती  है  ,  डमरू   शंकर  का  घोर ,
नारद  बजाये  इकतारा  ,  और  मैं  बजाऊं  मन  की  डोर  !!

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