इंतज़ार !!
इंतज़ार , नयन बिछाए ,
एक बच्चे का ,
भाई स्कुल गया आएगा ,
दिन में दस बार निकलता घर से ,
ढूंढें सामने पहाड़ी ढलान पर ,
कहीं दिखे निशाँ भाई के ,
अभी नहीं आया कोई ,
माँ अपने काम में व्यस्त ,
बच्चा अकेला तरसे , साथी ढूंढें ,
अचानक ऊंचाई पे निशाँ दिखे भाई आया ,
बच्चा भागा इक कुर्ते में ,
धूल सना , नंगा नीचे से , पुल लांघ ,
पाँव भी नंगे थे ,
पत्थर चुभते , कांटे चुभते , कोई खबर नहीं ,
चढ़ाई फांद गया इक झटके में ,
भाई , अपने संगी साथियों के था साथ ,
पर वो भी अभी बच्चा ही था ,
पढ़ नहीं पाया भाई को ,
उसके दिन भर के सूनेपन को ,
जैसे ही छोटा भाई टांगों से लिपटा ,
उसे अच्छा तो लगा , पर कुछ लज्जा महसूस हुई ,
दोस्तों के सामने , उसे लगा वह नंगा हो गया ,
क्यों आया नंगा ? ये छोटा , पाँव भी नंगे ?
कपड़े भी धूल सने ?
दे उसने थप्पड़ किया रसीद , छोटे भाई को ,
सन्न रह गया वो छोटा बच्चा ,
समझ नहीं आया ये क्या हुआ ?
मैं तो बड़े प्यार से , आया भाई को मिलने ?
अचानक ये क्या हुआ , भाई को गुस्सा क्यों आया ?
कुछ समझ नहीं आया ,
समझने के चक्कर में रोना भी नहीं आया ,
अब दोनों चुपचाप , बाकी बच्चों के साथ ,
घर चले आये , वापिस अपने घर ,
बड़े भाई ने घर आते ही , बस्ता खोला ,
बस्ते से जैसे खजाना , निकला , कच्चे आम ,
पक्के बेर , करोंदे सब उल्टे उसने ,
कंच्चे भी बिखरे कुछ रंग बिरंगे ,
दोनों भाई , फिर मस्त हो गए खाने , खेलने में ,
छोटा भूल गया सब , पर बड़े को सब याद है ,
वो आज भी मन मसोसता है क्यों मारा ,
मैंने क्यों मारा छोटे को ?
उसने दोबारा वो गलती नहीं की ,
और दूसरे दिन , शुरू हुआ फिर ,
वही इंतज़ार , दरवाजे में खड़े होकर ,
अधनंगे ही !!
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