Tuesday, 22 November 2011

दलदलों  से  निकल  जाना  माहिरों  का  काम  था ,
मैं  तो  था  मरने  को  हाज़िर  , तुने  देखा  निकल  गया !!



तू  रौशन , तेरा  नाम  रौशन ,  रौशन  तमाम दुनिया तेरी ,
मैं  भला  था  चीज़  क्या ,  तेरी  रौशनी ने  जगा   दिया !! 





लौ  दिए  की ,रात  भर  टिमटिमाती  रही , 
और  अँधेरा  कंपकंपाता  रहा  कोने  में सारी  रात !
चाँद  सूरज  हैरान  हैं , इस  तमाशे  से ,
तारों  को  कर  इकठ्ठा  सुना  रहे  ज़ज्बात !
जो  हम से  न  हो  सका सारी  उमर ,
कर  दिखाई इस  दिए  ने  वो  करामात !!

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