Thursday, 24 November 2011


  • गिला  न  कर  तू  रकीब  से  , जो  मिला  तेरा  नसीब  है  !

  • शुक्र  कर  तेरे  जुबां  है  , नहीं  होता  तू  ,बेजुबानों  में  !!


  • यहीं  तो  है  मेरी  मंजिल  , ज़रा  आगोश  में  लो  ,

  • बहकाया  है  राहों  ने  बहुत  , ज़रा  आगोश  में  लो  ,

  • सूखा  है  हलक  मेरा  अभी  , ज़रा  आगोश  में  लो  ,

  • मर  जाऊं  ख़ुशी  से  ना  अब  , ज़रा  आगोश  में  लो  !!

    गरम  गरम  छाए  की  चुस्कियों  में , चीनी  महंगी  है  बोल  न  तू  !
    यहाँ  सस्ता  बिकता  सिर्फ  ज़मीर  है ,  महंगे  सौदे  हैं  बाक़ी  सब !!

    साथी  मेरे  समाज  के  ,  समाज  के  सब्र का  इम्तहान लेते  हैं ,
    और  प्रश्न  करे  समाज  जब  , उसकी  आवाज़  से  डर  जाते  हैं !!
    कहते  हैं  गलत  हुआ , गलत  हुआ , गलत  हुआ  ,गीदड़ की  भाषा  में ,
    और  समाज  के  इस  प्रश्न  का , गला  दबाने  को ,उमड़  उमड़  आते हैं !! 


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