Monday, 7 November 2011

इक  धुवां  सा  उठ  रहा  जीवन  के  अलाव  से  ,
और  मैं  उठती गिरती  चिगारिओं  का , जलना  बुझना  देखता  हूँ !
हो  रहा  मैं  अचंभित , जीवन  के  विकास  से  ,
कभी  उल्लास , कभी  प्रहास , क्षण  प्रतिक्षण ,इक विनाश देखता  हूँ !
रंग बदल  रहे  बार बार  ,  अग्नि  के  श्वास  से ,
और  मैं  बांसुरी के  स्वर  से  बंधे , मृग  का  , स्वतः सम्मोहन  देखता  हूँ !!





प्रतिमूरत   बनाओ  श्याम  की  घनश्याम  की  ,
मेरे  दिल  में  आज  रंग  ही  रंग   खिल  रहे  हैं  !
मेघ  का  रंग  ,  भायेगा  या  नील  रंग  भायेगा  ?
पीत  वस्त्र  का अंगोछा  ,  कंधे  पे  आएगा  !
हस्त  लकुटी  बांस  की , मोरपंख  मुकुट  में  हो  ,
बांसुरी  मुंह  से  लगी  ,  राधा  को  चिढाएगी !
गले  में  माल  तुलसी  की  , माथे  चन्दन का टीका हो ,
अंगुली  में  सुदर्शन  चक्र  ,मन मैल  को  मिटाएगा  !!
    
   

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