इक धुवां सा उठ रहा जीवन के अलाव से ,
और मैं उठती गिरती चिगारिओं का , जलना बुझना देखता हूँ !
हो रहा मैं अचंभित , जीवन के विकास से ,
कभी उल्लास , कभी प्रहास , क्षण प्रतिक्षण ,इक विनाश देखता हूँ !
रंग बदल रहे बार बार , अग्नि के श्वास से ,
और मैं बांसुरी के स्वर से बंधे , मृग का , स्वतः सम्मोहन देखता हूँ !!
प्रतिमूरत बनाओ श्याम की घनश्याम की ,
मेरे दिल में आज रंग ही रंग खिल रहे हैं !
मेघ का रंग , भायेगा या नील रंग भायेगा ?
पीत वस्त्र का अंगोछा , कंधे पे आएगा !
हस्त लकुटी बांस की , मोरपंख मुकुट में हो ,
बांसुरी मुंह से लगी , राधा को चिढाएगी !
गले में माल तुलसी की , माथे चन्दन का टीका हो ,
अंगुली में सुदर्शन चक्र ,मन मैल को मिटाएगा !!
और मैं उठती गिरती चिगारिओं का , जलना बुझना देखता हूँ !
हो रहा मैं अचंभित , जीवन के विकास से ,
कभी उल्लास , कभी प्रहास , क्षण प्रतिक्षण ,इक विनाश देखता हूँ !
रंग बदल रहे बार बार , अग्नि के श्वास से ,
और मैं बांसुरी के स्वर से बंधे , मृग का , स्वतः सम्मोहन देखता हूँ !!
प्रतिमूरत बनाओ श्याम की घनश्याम की ,
मेरे दिल में आज रंग ही रंग खिल रहे हैं !
मेघ का रंग , भायेगा या नील रंग भायेगा ?
पीत वस्त्र का अंगोछा , कंधे पे आएगा !
हस्त लकुटी बांस की , मोरपंख मुकुट में हो ,
बांसुरी मुंह से लगी , राधा को चिढाएगी !
गले में माल तुलसी की , माथे चन्दन का टीका हो ,
अंगुली में सुदर्शन चक्र ,मन मैल को मिटाएगा !!
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