देख तो आया हूँ समुन्दर में गहरा पानी , पर मन है डूब ही जाऊं ,
शायद उथला है संचेतन मन , गहराई मांगे जीवन से , बंधने के लिए ,
उड़ना चाहूँ पर पंख कटे , कश्ती में पतवार नहीं , चेतन में विचार नहीं ,
जो भी हाथ में शस्त्र चढ़ा ,अनाड़ीपन में ध्वस्त रहा ,कुंद रही उसकी धार कहीं ,
ऐसे में लड़ना क्या और तरना क्या और बंधना ,अधचेतन का संचेतन से क्या ,
हार गया मैं मन से भी और तन से भी , पर कुछ है अंतर में जो लड़ता है ,
गिरता है पर फिर उठता है , फिर उठता है दृढ़ता से और चेतनता है ,
नाम भला क्या दूं उसको ? इच्छाशक्ति ? भगवान् मेरा ? ईश खुदा ? या पैगम्बर ?
इससे पड़ेगा अंतर क्या ? फिर झगडा क्या और क्यों होता है ?
समझ में आये तो बतलाना , सांझ ढले घर आऊँगा , सागर में तर जाऊंगा !!
शायद उथला है संचेतन मन , गहराई मांगे जीवन से , बंधने के लिए ,
उड़ना चाहूँ पर पंख कटे , कश्ती में पतवार नहीं , चेतन में विचार नहीं ,
जो भी हाथ में शस्त्र चढ़ा ,अनाड़ीपन में ध्वस्त रहा ,कुंद रही उसकी धार कहीं ,
ऐसे में लड़ना क्या और तरना क्या और बंधना ,अधचेतन का संचेतन से क्या ,
हार गया मैं मन से भी और तन से भी , पर कुछ है अंतर में जो लड़ता है ,
गिरता है पर फिर उठता है , फिर उठता है दृढ़ता से और चेतनता है ,
नाम भला क्या दूं उसको ? इच्छाशक्ति ? भगवान् मेरा ? ईश खुदा ? या पैगम्बर ?
इससे पड़ेगा अंतर क्या ? फिर झगडा क्या और क्यों होता है ?
समझ में आये तो बतलाना , सांझ ढले घर आऊँगा , सागर में तर जाऊंगा !!
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