है चाँदनी पसरी जहाँ में , शबनम को न्योता देके आया हूँ !
देखता हूँ मेरा मान रखती है , या चांदनी बदनाम होती है ?
मौसम को मैं धूप दिखला बहला आया हूँ ,
अभी शरद है दूर बतला के आया हूँ ,
देखता हूँ बादल अभी पिछवाड़े रुक जाए तो अच्छा है ,
मेरा मन मस्त है बहले हुए मौसम की रंगत बदले न अच्छा है ,
पर है ख़तरा मुझे उस भोले भंडारी से ,
खड़ा है खेत में हल जुंगडा और बैल लेकर जो ,
उसकी सच्ची पुकार सब भेद खोलेगी ,
और मेरी ये योजना धरी की धरी ही रह जायेगी !!
समय ने वक्त तो काफी दिया , पर मैं ही राग और रंग में खोया रहा ,
अब चिड़ियाँ भी नहीं हैं खेत चुगने को ,मगर फिर भी पछताना तो पड़ता है !!
ए जिंदगी तू रुक तो जा , तू ठहर तो जा , तू मौत के पीछे भागे क्यों ,
हर क्षण का मज़ा तू लेने दे , यूँ ही दौड़ती चली जा रही ,
जैसे मौत हो जायेगी गुम कहीं , उसे भी तेरा इंतज़ार है ,
वो देखती तुझे मुड़ मुड़ के है , क्यों मिलन को तू बेकरार है ,
मुझे तू लगे हसीं परी , चाहे दर्द दे या ख़ुशी ,मुझे रंग सारे दिखादे तू ,
तुझे जीने दुबारा फिर मैं आऊँगा , ज़रा दम तो ले ले दो घड़ी ,
तेरा साथ मुझको भा रहा , तेरा साथ मुझको भा रहा !!
समझा है किसी ने क्या मुझको ? जो नाम किसी का गाता फिरूं ?
और पहचान मेरी किसी नाम से हो , तो जय ही नाम तो काफी है !
अरे आओ तो आओ जान ज़रा , मेरे पास तो बैठो जान ज़रा ,
बतियाओ तो कुछ कुछ जान ज़रा , मेरे कानो में घुलती मिश्री है ,
तेरे आने की आहट मिलते ही , तेरी खुशबू के झोंके चलते ही ,
मेरी अधखुली आँखें खुलती हैं , और बंसी कन्हईया सी बजती है !
तेरी मदभरी अखियों का मिलना है क्या ? तेरी पतली कमर का हिलना है क्या ?
तेरी सर से चुनरिया ढलके जब ,तू क्या जाने ये क्या ढाए गज़ब ?
अरे शाम से पहले जाओगे तुम ,घर से ही सोच के आये हो तुम ,
अब मिलना जुलना भारी है ,घर पे भी पहरे जारी हैं ?
तो क्या कर सकता है याड़ी बालम ,अरे जाओ जी जाओ अब घर तुम !
अरे बांके पिया मोरे बांके पिया !!
हर कली फूल बनेगी ,ऐसा मालूम तो था ,
पर मौसम यूँ निखरेगा , ऐसा ख्यालों में न था !
जाम खनके हैं तो क्या , घंटी से कम तो नहीं ,
इक मंदिर को जगाती है , तो इक मयखाने को !
शाम -ओ -शहर होता है , दोनों में , आना जाना ,
और दोनों में मदहोशियाँ मिलती हैं बख्शीशों में !!
मेरी बदली है नज़र , अब पहले सी नहीं ,
खूब जानता हूँ ,इक अदद , खुदा बनाने का राज़ !
वो हैं हैरान मेरी हरकत से , झूठ से मैनें बहलाया न कभी ,
चाहता तो मैं भी था , होकर वो मेरे ही रहे ,
पर मरूँगा उनके लिए ,ये तो जतलाया न कभी !!
मेरे मरने पर हों चर्चे मेरे , ऐसी कोई रंगत तो नजारों में नहीं !
हाँ रोयेंगे तो कुछ लोग ज़रूर , रस्म पुरानी है , निभानी तो है !!
हर शेर गुलाबी हो , हो सकता क्या ?
हर शख्श शराबी हो , हो सकता क्या ?
ये तो नूर है रौशन का , न जाने किसपे आये ?
मैं तो बैठा हूँ फ़कीरी में , जब आये तब आये !!
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