Thursday, 17 November 2011


  • व्यथा  कथा  अकुलाती  मन  में  , मन  मसोस  रह  जाता  है  !

  • जग  में  बांटो  जग  हंसाई  , अपनों  में  शोषण  , दोषण  हो  जाता  है  !!


  • काटोगे  तुम  बंधन  मेरे  ? कहा  कही  ये  तुने  भी  ?

  • बंधन  अपने  तुम  काटोगे  , और  अपने  काटूँगा  मैं  ही  !

  • ये  बंधन  बंधे  नहीं  खूंटे  से  , के  इक  दूजे  के  काटेंगे  !

  • मैं  बंधा  हूँ  , मेरे  बंधन  मैं  , मैं  ही  छोडूं  तब  छुटता है  !!


  • संतन के  घर  चलो  चलें  , संत  जनन  की  सत्य  समाधी  ,

  • सत्य  विकिरण  से  नहा  देगी  , विकिरण  करेगा  अंत  मोह  का  ,

  • दर्शन  स्वयं  करा  देगी  , आत्म जुड़ेगा  परमात्म से  , परमानन्द  करा  देगी  !!


  • गंध  पुष्प  बिखरे  बालों  में , संयोजन  कर  जाते  ,

  • बदन  से  कस्तूरी  कस्तूरी  लगती , गति  है  मंथर  मंथर  ,

  • धरती  हिले , हिले  अम्बर  भी  , सावन  सा  तुम  बरसो  ,

  • मेरा  मन  झूमें  मौसम  सा  , पल  पल  बदले  जाए  ,

  • वन सुंदरी  नाम  धरूँ मैं  ,सब  के  मन  बस  जाओ  !!



  • पतझड़  त्यक्त  खड़ी  धरती  पर  विधवा  सी  लगती  है  ,

  • श्रृंगार  रहित  सूनी  डाली  , धवला  सी  कम्पती है  ,

  • फल  विहीन  हो  ,पुष्प  विहीन  हो  ,पत्ते  भी  त्यजति  है  ,

  • न  गान  करे  कवि  कोई  उसका  , न  गायें  चारण  गीत  कोई  ,

  • ऐसी  त्यक्ता  को  मैं  वरता हूँ  ,और  कसम  आज मैं  धरता हूँ  ,

  • तेरे  गुण  बतलाऊँगा  , तेरी  तपस्या  को  सफल  सुफल  कर  जाऊंगा  !

  • तू  करती  शक्ति  का  संवर्धन  , और  देती  ऊर्जा  को  संरक्षण  ,

  • बसंत  नहीं  हो  सकती  तुझ  बिन  ,सब  मौसम  झड़ झड़  जायेंगे  ,

  • और  हर  मौसम  में  पतझड़  पायेंगे  , पर  तू  अपने  को  कर  सीमित  ,

  • बाकी  सबको  फलने  देती  ,ये  तू  जाने  या  मैं  जानू  !

    जलते  बुझते  से  कुछ पल  हैं  , जीवन  प्रश्न  का  हर   हल  हैं !
    जी  जी  कर  जीवन  साधो  तुम  ,  मृत्यु  का  तो  बस  इक  पल  है  !!






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