सुनो समुन्दर क्या कहता है ?
मैं गहरा हूँ , मैं विशाल हूँ ,
देखी है मेरी गर्जन क्या ?
मैं लक्ष्मीपिता हूँ , अमृत दाता हूँ ,
जीवन आरम्भ हुआ कोख से मेरी ,
मृत्युदाता हूँ , सेतु हूँ महाद्वीपों का ,
शान्ति दाता हूँ , असंख्यों को बोध हुआ आत्म का ,
पर टूटा है अहम् मेरा भी कई बार ,
और रोता हूँ , अथाह जल का भंडार हुआ बेकार ,
प्यास नहीं बुझा पाया इन्सां की , न मन की न तन की ,
सोचता हूँ क्या इन्सान भी है मेरा प्रतिरूप ,
पल प्रतिपल रूप बदलता, विशाल भी है , और है क्षुद्र भी !!
मैं गहरा हूँ , मैं विशाल हूँ ,
देखी है मेरी गर्जन क्या ?
मैं लक्ष्मीपिता हूँ , अमृत दाता हूँ ,
जीवन आरम्भ हुआ कोख से मेरी ,
मृत्युदाता हूँ , सेतु हूँ महाद्वीपों का ,
शान्ति दाता हूँ , असंख्यों को बोध हुआ आत्म का ,
पर टूटा है अहम् मेरा भी कई बार ,
और रोता हूँ , अथाह जल का भंडार हुआ बेकार ,
प्यास नहीं बुझा पाया इन्सां की , न मन की न तन की ,
सोचता हूँ क्या इन्सान भी है मेरा प्रतिरूप ,
पल प्रतिपल रूप बदलता, विशाल भी है , और है क्षुद्र भी !!
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