Wednesday, 30 November 2011


मेरी   सांसों   का   बंधन    बन   जाओ   तुम  ,  मौत   दोनों   के   मरने   तक   रुक   जायेगी   ,
फिर   कल   जो   मरें   चाहे   मर   जाएँ   अब  , तसल्ली   तो   होगी   साथ   रहेंगे   और   हैं  !
तेरी   चाहत   सदा   से   है   दिल   में   मेरे   , मेरी   साँसों   में   माला   है   तेरे   नाम   की  ,
ज़न्नत    मेरी   है  सिर्फ  तेरी   बाहों   में  , और   बाहों   का  घेरा  बस   समाता   मुझे   !
चाँद   सूरज   और   तारों   को   छू   न   सका   पर ,  हम   तुम   तो   अपनी   किरणों  से   बंधे  ,
तेरा   बसना   मेरे   संग ,  ग्रसना   सही   ,  पर   राहू  केतू  सा   राहों   में   डराता  नहीं   !!
मेरी   सांसों   का   बंधन    बन   जाओ   तुम  ,  मौत   दोनों   के   मरने   तक   रुक   जायेगी   ,
फिर कल   जो   मरें   चाहे    मर   जाएँ   अब  , तसल्ली   तो   होगी     साथ   रहेंगे   और   हैं  !!
चलूँ  अब  चलूँ  रात  काफी  हुई  , तुम  परेशां  न  हो  ,  बस  आखरी  है  ये  जाम ,
जितनी  रातें  कटी  सब   ,तेरी   याद  में , घोल  दे  जाम  में ,  रात  कट  जायेगी !! 

जाम  भर   भर   के   देता   है   साक़ी   बना   ,  आज   नीयत   में   उसकी   कोई   खोट   है  ,
या   तो  दुश्मन   का   साया   है   उसके   साथ  ,  या   तो   बहला   के   जानेगा   राज़  मेरे  !
पर   मैं   ही   कहाँ   हूँ   अपना   यार   ,  कफ़न   बाँध   दुनियाँ  का   नज़ारा   करूँ,
मेरी   रंगीनियाँ   मेरी   दुश्मन   नहीं  ,  पर खामोशियों   से   हैं   डरते   कई   !
बंद   मुट्ठी   न   खुल   जाए   मेरी   कहीं   , दुश्मनों   की   हैं   रातों   की   नींदें   हराम ,
और   मैं   हूँ   इन   सब   साजिशों   से   परे  ,  मरूँगा   भी   तो   जुबां   चुग्लेगी   नहीं  !
यार   तो   मेरे   कोई   संग   चलते   नहीं   ,  दुश्मनों   से   दुश्मनायी   का   अहसास   है  ,
पर   दुश्मनों   से   भी   सीधे   ही   लड़ता   हूँ   मैं  , पीठ   पीछे   छुरा   घोंपता   मैं  नहीं  !!

  • डाली  समझती  है  झुका  क्यों  जाता  है  ,

  • फलों  का  बोझ  ज़्यादा हो  तो  दे  के  उतरता  है  ,

  • और  हम  झुकते  हैं  लेने  के  लिए  , देते  हुए  हम  और  अकड़ते  हैं  !

  • डाली  देके  अकड़ती  है  और  हम  लेके  अकड़ते  हैं  ,

  •  हैं  न  हम  इंसान  , सारी दुनियाँ  से  महान  !!


  • मुझसे  चाहिए  क्या  ज़माने  को  ? जो  देता  है  खुदा  देता  है  !

  • मैं  काम  भी  किसी  के  आता  हूँ  , तो  मुझपे  वो  मेहरबान  ज़्यादा  है  !

  • मेरी  मिटटी  भी  उसकी  है  , तेरी  मिटटी  भी  उसकी  है  ,

  • जान  देता  है  वो  मिटटी  को  , और  सलाम  आपस  में  हम  करते  हैं  !!

    श्री राधे  श्री राधे ,  राधे  राधे बोल , जग  में  खुल  जाएँ अगर  तेरे  मेरे पोल ,
    जग  बाहर  ज़ाहिर  जो  मेरे तेरे  चेहरे  हैं ,  सब  झूठे  हैं , पहने  हैं  हम खोल !
    बतलाते  दुनियां  को   हम  हैं  , प्यारी  सच्ची  बातें , और  खूब  बजाते  ढोल ,
    पैदा हों ईमानदार ,  क्रान्तिकारी  हो  जाए  दुनियाँ , पर  मेरे  घर ? न  बोल !!

    सीधा  चलूँ  तो  जले  ज़माना ,  उल्टा  चलूँ  तो  मैं  गिरता  हूँ  ,
    खड़ा रहूँ तो रह न सकूं मैं , दौडूँ  तो बिन कारण दौड़ाए ज़माना !!

    अजीब  सी  हवा भर गया  कोई  , गुब्बारा बना गया , कुप्पा  बना  गया ,
    मेरे  जैसा  नहीं  कोई  दूजा ,  सरे  बाज़ार  ,  हर  महफ़िल  में  सुना  गया !
    छाया  अजीब  सा  नशा ,  दिमागी  पतंग  चढ़ी  आसमान , सब  घुमा  गया ,
    दूर  अकेला  हसे  फिरंगी , पिन काफी मेरे  मरने को ,  बैरी को  बता  गया !! 


    है शाम  से  बात  मेरी  हुई  ,  अफ़साने  न  अब  वो  सुना  पाएगी ,
    न  दादी  न  दादा  ,न  नानी  न  नाना  बचे अब  माँ के  घर  में , 
    मौसी  बुआ रिश्ते  सभी  ,बिज़ी  हो गए हैं , और माँ बाप को अब फुर्सत ?
    अरे  तौबा  तौबा , किस  बला का  ये  नाम  ले  दिया  है , अरे मेरी तौबा !
    कहा  मैंने  जाओ  नहीं  रोक  सकता ,  झूठे  दिलासे  मैं  देता  नहीं  हूँ ,पर ,
    सुधरें  अगर  हालात  घर  के ,  कल  को , लोरी  मुझे  इक  ज़रूर  सुना  देना !! 
     






  • Monday, 28 November 2011

    वैज्ञानिक  ढूंढ  रहे  कारण  हैं , ये नींद  आती  क्यों  है ?  और  आती  क्यों  नहीं ?
    और  मैं  चिंतित  हूँ  नींद  न  आएगी  तो  सपने  कहाँ  जायेंगे , और  आएगी  तो  कहाँ  जायेंगे !!
    वैज्ञानिक  कोशिश  में  हैं  ,  रात  में  भी  दिन  हो  जाए  ,  सूरज  किरणें   निश  दिन  आयें ,
    मैं  चिंतित  हूँ  ,  रात  कहाँ  जायेगी  ?  चाँद  और  तारे  कब  चमकेंगे ?  राहू  केतु  कब  ग्रसेंगे ?
    क्या  सत्य  का  जानना  इतना  आवश्यक  है ? और  क्या  पूर्ण  सत्य  इतना  क्षुद्र  है ? मिल  जाएगा ?






  • शाम  ढल  जाए  तो  ये  इशारा  समझ  , वक्त  आने  का  तेरा , हो  चला  है  प्रिये  !

  • यूँ  सन्देश  भेजूंगा  , जानेंगे  लोग  , और  शोर  सा  इक  उठेगा  प्रिये  !!

  • सम्बन्ध  चर्चा  में  आये  ये  क्यों  ? कुछ  ज़माने  से  हमने  लेना  नहीं  !

  • ज़ख्म  देने  का  शौक  ज़माने  को  है  ,घर  में  आके  भी  वो , ज़ख्म  दे  जायेंगे  !!


  • सावन  जला  मेरे  मन  में  कहीं  , धुंध  ही  धुंध  छा  रही , लंग्ज़  में  है  मेरे  !

  • सांस  लेना  भी  मेरा  दुश्वार  है  , दिल  है  के  मरने  से  बाज़  आता  नहीं  !!

  • जहां  देखी  लड़की  दिल  लड़के  का  मरा , जहां  देखा  लड़का  , मरे  लड़की  का  दिल  !

  • ये  दिल  न  हुआ  कोई  खिलौना  हुआ  , झट  निकाल  सीने  से  बाहिर  किया  !!



  • देख तो  आया  हूँ  समुन्दर  में  गहरा  पानी , पर  मन  है  डूब  ही  जाऊं ,
    शायद  उथला  है  संचेतन  मन ,  गहराई  मांगे  जीवन  से , बंधने के  लिए ,
    उड़ना  चाहूँ  पर  पंख  कटे ,  कश्ती  में  पतवार  नहीं ,  चेतन  में विचार  नहीं ,
    जो  भी  हाथ  में  शस्त्र चढ़ा ,अनाड़ीपन  में ध्वस्त रहा ,कुंद  रही उसकी धार कहीं ,
    ऐसे  में  लड़ना  क्या  और  तरना  क्या और बंधना ,अधचेतन का  संचेतन से क्या ,
    हार  गया  मैं  मन  से  भी  और  तन  से  भी , पर कुछ  है  अंतर  में जो लड़ता  है ,
    गिरता  है  पर  फिर  उठता  है , फिर  उठता  है  दृढ़ता  से और  चेतनता  है , 
    नाम  भला  क्या  दूं  उसको ? इच्छाशक्ति ?  भगवान् मेरा ? ईश खुदा ?  या  पैगम्बर ?
    इससे  पड़ेगा अंतर क्या ? फिर  झगडा क्या और  क्यों होता  है ? 
    समझ  में  आये  तो  बतलाना , सांझ  ढले  घर  आऊँगा ,  सागर  में  तर  जाऊंगा !!
    देख तो  आया  हूँ  समुन्दर  में  गहरा  पानी , पर  मन  है  डूब  ही  जाऊं ,
    शायद  उथला  है  संचेतन  मन ,  गहराई  मांगे  जीवन  से , बंधने के  लिए ,
    उड़ना  चाहूँ  पर  पंख  कटे ,  कश्ती  में  पतवार  नहीं ,  चेतन  में विचार  नहीं ,
    जो  भी  हाथ  में  शस्त्र चढ़ा ,अनाड़ीपन  में ध्वस्त रहा ,कुंद  रही उसकी धार कहीं ,
    ऐसे  में  लड़ना  क्या  और  तरना  क्या और बंधना ,अधचेतन का  संचेतन से क्या ,
    हार  गया  मैं  मन  से  भी  और  तन  से  भी , पर कुछ  है  अंतर  में जो लड़ता  है ,
    गिरता  है  पर  फिर  उठता  है , फिर  उठता  है  दृढ़ता  से और  चेतनता  है , 
    नाम  भला  क्या  दूं  उसको ? इच्छाशक्ति ?  भगवान् मेरा ? ईश खुदा ?  या  पैगम्बर ?
    इससे  पड़ेगा अंतर क्या ? फिर  झगडा क्या और  क्यों होता  है ? 
    समझ  में  आये  तो  बतलाना , सांझ  ढले  घर  आऊँगा ,  सागर  में  तर  जाऊंगा !!
    गज़ब  है  आज  वादे  के  मुताबिक़  आये  हैं  वो ,
    देख  ले , कुछ  भूला  तो  नहीं ,  सब  ठीक  तो  है ?
    ऐसा  तो  नहीं  देने  के  बजाये  लेना  हो  उसने ,
    साहूकार  की  आमद  ठीक  नहीं  जच रही  है  !!





    मेरी  दुनियाँ  में  अचानक  घटा अनहोना  है  कुछ ,  सर्दी  में  गर्म विस्फोट  हुआ ,
    कान  गर्म , आँख  गर्म , नाक  गर्म ,  हाथ  गर्म , चेहरे  पे पसीना छलक आया  है ,
    हाय ! कहीं  रिश्ता  मेरी  माँ  को कोई  भाया  तो  नहीं ?  क्यों  भूचाल  सा  आया  है ?
    पहले  ही  सपनों  का  समंदर  बसता  दिल  में , क्यों  मेरी  नींद  का  दुश्मन आया  है !!

     

       
    रेत  उड़ा  रही  हैं  हवाएं , आँधियों  का  सजना  बाकी  है ,
    पेड़ों  ने  तो , मरुथल से , पहले से वाकाउट  किया  हुआ  है ,
    पानियों  का  निशाँ  कहीं  है  ही  नहीं , बारात सजी  अच्छी  है ,
    ऊंट सेहरा  सजाये ,  तैयार  खड़ा  मैदान  में , बवंडर  तैयार  है ,
    कालबेलिओं  ने  गिद्धों  को  न्योता  दिया हुआ  है , आजा !
    आजा  भई  मेरे  शेर  पुत्तर  ,  चलो  वोट  मांग  आयें ,
    फिर  एक  बार  जनता  की  आँखों  में  धूल  झोंक  आयें ,
    जनता  क्या  कर  सकती  है  ,  हमारे  पास हर  बहाना  तैयार  है ,
    मास्टर प्लान  बन  गया  हैं ,  मार्केटिंग  हमें  आती  है  ,
    डर कहे  का  ? जो  विरोध  में  खड़ा  होगा  ,  उसी  को  फंसा  देंगे ,
    आज  भारत  में  दस  ईमानदार  भी  शोकेश  में  नहीं  बचे  ,
    जो  आगे  आएगा  उसी  की  फ़ाइल  खुलवा  देंगे ,
    बाकियों  की  कोई  चिंता  नहीं ,  उन्हें  भी  थोड़ा  खा  लेना  दो ,
    ज्यादा  खायेगा  तो  अपना  हिस्सा  भी  पहुँच  जाएगा ,
    हम  सब  चोर  चोर मौसेरे  भाई  हैं ,  जनता  के  पास  विकल्प
    तो  कोई  नहीं , यूँ  ही  चिल्लाती है  ,  जो  जीतेगा  उसी  से  गठबंधन !
    क्यों  ठीक  है  न  ?  अबे  चल , दुल्हन  जीत  इंतज़ार  में  है ,  थक  जायेगी !!
    रेत  उड़ा  रही  हैं  हवाएं , आँधियों  का  सजना  बाकी  है ,
    पेड़ों  ने  तो , मरुथल से , पहले से वाकाउट  किया  हुआ  है ,
    पानियों  का  निशाँ  कहीं  है  ही  नहीं , बारात सजी  अच्छी  है ,
    ऊंट सेहरा  सजाये ,  तैयार  खड़ा  मैदान  में , बवंडर  तैयार  है ,
    कालबेलिओं  ने  गिद्धों  को  न्योता  दिया हुआ  है , आजा !
    आजा  भई  मेरे  शेर  पुत्तर  ,  चलो  वोट  मांग  आयें ,
    फिर  एक  बार  जनता  की  आँखों  में  धूल  झोंक  आयें ,
    जनता  क्या  कर  सकती  है  ,  हमारे  पास हर  बहाना  तैयार  है ,
    मास्टर प्लान  बन  गया  हैं ,  मार्केटिंग  हमें  आती  है  ,
    डर कहे  का  ? जो  विरोध  में  खड़ा  होगा  ,  उसी  को  फंसा  देंगे ,
    आज  भारत  में  दस  ईमानदार  भी  शोकेश  में  नहीं  बचे  ,
    जो  आगे  आएगा  उसी  की  फ़ाइल  खुलवा  देंगे ,
    बाकियों  की  कोई  चिंता  नहीं ,  उन्हें  भी  थोड़ा  खा  लेना  दो ,
    ज्यादा  खायेगा  तो  अपना  हिस्सा  भी  पहुँच  जाएगा ,
    हम  सब  चोर  चोर मौसेरे  भाई  हैं ,  जनता  के  पास  विकल्प
    तो  कोई  नहीं , यूँ  ही  चिल्लाती है  ,  जो  जीतेगा  उसी  से  गठबंधन !
    क्यों  ठीक  है  न  ?  अबे  चल , दुल्हन  जीत  इंतज़ार  में  है ,  थक  जायेगी !!
    शेर  से  पूछो  के  तन्हाई  क्या  है  , लोग  डरते  हैं  लाइक करने  से  !
    सोचते  हैं  जुड़ेंगे  तो  खा  जाएगा  , मांसाहारी  है  न  !
    पर  मांसाहारी  तो  बहुत  हैं  ? ओहो  ताकतवर  है  न  !
    पर  शेर  शौक  के  लिए  तो  शिकार  नहीं  करता  ? भूख  लगती  है  तभी  खाता  है  !
    बस  यहीं  तो  मात  खाते  हो  और  तन्हा  रह  जाते  हो  !
    इंसानों  की  तरह  बिना  कारन  मारो  न  !
    सब  याद  करेंगे  और  नवाज़ेंगे  अलग  से  ,पालतू  बन  जाते  हैं  न  !!
    अलविदा से  पह्ले सोचियेगा  ज़रूर ,  सुनाने  को  कुछ  बचा  तो  नहीं  ?  वो  भी  सुन  लूँगा !
    हसरत  बाकी  रहेगी  दिल  में  तो  परेशानियाँ होंगी , फिर  आना  पड़ेगा  तसल्लियों  के  लिए !!
    ज़मानतें  काफी  हैं  मेरी  ,  या कोई  और  भी  चाहिए ?
    मेरा  तो  नहीं  ,पर  तेरा  तो  होगा  कोई  चाहने  वाला ?


    सुरूर  तो  काफी  है  , चल , पाँव  उठ  रहे  हैं  ,  नाचने के  लिए ,
    यार  न  सही  ,  किसी  और  की  बारात  में  आज नाच  आते  हैं !
    हॉस्टल में फिर  वही रूटीन का  खाना  है , खाना  भी  खा  के  आयेंगे ,
    चलती  तो  होंगी  कुछ फुलझड़ियाँ  भी , और पटाखे भी  देख  आयेंगे !!  

    Sunday, 27 November 2011

    बरगद  तले  रात  गुजारूं  कोई ,  रात  को  चाँद  निहारूं ,  और  साथ  हो  तुम ,
    फड़फड़ाये  परिंदा  , उड़  बैठे  नयी  दाल  पे  और  तुम  डर  के मेरे  करीब  आओ  ज़रा ,
    देखूं  डर की  रेखाएं  चेहरे  पर तेरे ,  उभर  आई  पसीने  की  बूँदें  माथे  पर  देखूं ,
    और  इक  ढाढस   की  आस  लिए , एक  नज़र खाली  सी  देखूं , सर  पे  हाथ फिराऊँ ,
    प्यार  भरा ,  बिन  बोले  समझाऊँ ,  कुछ नहीं  हुआ  बस परिंदा  था ,  अब  शांत  हुआ ,
    आश्वस्त  हो  जाती  तुम  और  सर  रखती  कंधे  पर  और  फिर  खो जाते  चाँद में ,
    रात  तो  लम्बी  होती  ,  पर  बातें  करती  उसकी  लम्बाई  को  ख़तम  ,  और  ,
    भोर  भये  लगता ,  क्यों  रात  कटी , क्यों  डूबा  चाँद ,  क्यों  पंछी  बोले ,  और ,
    क्यों  मैं  न  बोला  ,  क्यों  तुम  न  बोली  ,  क्यों  ख़ामोशी  ही  बनी  बातों  का माध्यम ,
    और  क्यों ,  पसरता  जीवन  में  मेरे  ,  पर  यथार्थ  में तुम  न  आई  और  मैं चाँद भोगता  रहा !! 

    Saturday, 26 November 2011

    मेहमान  समझ  आईयेगा  तो  मेहमान  समझ  जाईयेगा  भी  ,
    मेरे  सब्र  का  इम्तिहान  न  लेना  ,  मेरे  मासु  नासु  मामू  जान !
    इन  इम्तिहानों  से  मैं ,  डरता  हूँ  दसवीं  भी  नहीं  पास  हुआ ,
    पर  बलाओं  से  छुटकारा  पाने  की साजिश  में  मुझे डाक्टर जान !!



    घेर  चली  मुझको  आशा   निराशा की  लड़ी ,  इक  पल  को  उबरता  हूँ ,  डूबता  हूँ  दूसरे  पल !
    ये मोती  है  गोल  मटोल  ,  लुढ़कता ही  रहता  है  ,  थकता  नहीं  ,  और  मैं यकदम  थक  जाता  हूँ !!
    है  मुझको  भी  पता  विपदा  तो  आनी  जानी  है , रुकता  है  कहीं  मन ? दिल  तो  धड़कता  जाता  है !
    पर  सोचता  हूँ  वक्त  अगर  ठहर  जाता ,  और  चुनना होता , तो  निराशा  को  निराश  ही  लौटा  देता ?





    कुछ  तो  परदे  में  रहने  दो ,  खुल  ही  गए  हैं तो  क्या  तौबा  करलूं ,
    वाजिब  है  प्यार  तुम्हारा , पर  चर्चे  दुनियाँ  जहाँ  में  हों  ज़रूरी  है  ?



    जाम  पे  नाम  लिखोगे  ?  क्या  फायदा  ?  जिस  से  भी  पियूँगा ,  मेरा  होगा !
    जाम  में  जो  डालोगे  ,  हलक  में  उतरेगी  ज़रूर , पर  ज़हन  में  नशा  तेरा  होगा !! 



    ज़न्नत  में  भी  नाम  तेरा  चलता  होगा  , ये  जान  तसल्ली  हुयी ,
    मेरा  जाना  जहन्नुम  में  पक्का  है ,  इस  ज्ञान  से  खिलीं  बांछें  मेरी !! 



    तू  बावस्ता  है  मेरी  तकलीफ  से  इससे  फायदा  क्या ,
    तू  तो  ज़ख्म  कुरेदेगा  और  तड्पाएगा  मज़ा  ले लेके !



    हिचकी तेरी  खतरे  से  खाली  नहीं  है , मरते  हैं  जितने  भी  गरीब , नाम  हैं  तेरे ,
    जो  करे  याद  और  हिचकाये  तुझे , मौत  तो  आनी  है  उसे  और  मर  के  रहेगा !!



    मैं  चला  जाऊं  कहीं , गम  नहीं , जाने  जहाँ , 
    बस  इक  मेरी  याद  को  न  गुम  होने  देना !
    मैं तो  मरता  ही  हूँ , इस  बार  भी  मर जाऊंगा , 
    याद  रह  जायेगी  तो  नाम  भी  रह  जाएगा !
    है  ये  भी  ज़रूरी  नहीं , इच्छा  पर  मयस्सर है ,
    ज़ज्बात  हैं  मेरे , न कहूँ तो  मर  भी न पाउँगा !!





    मैं  घबरा  गया  वक्त  को  तन्हा  देखा , और  तन्हाई  का  आलम क्या ? जानता  हूँ  मैं !
    सोचा  वक्त  को  शायरी  दूं  , या  गीत  कोई  ,  या  रौनक  दूं  ? तन्हाई  ही  अच्छी  है उसने  कहा !!
    यूँ  ही  बर्बाद  करोगे ,  बन  कुछ  न  सकेगा , शब्दों  को  तोड़ोगे  मरोड़ोगे , और  सुना  दोगे ?
    थोड़ी  देर  बैठो  ज़रा , समझो  ज़रा , भोगो   ज़रा , तड़प  दिल  तक  आने  दो , फिर  सुन  लूँगा !!
    अभी  तो  देख  रहा  हूँ  जहाँ  को , जहाँ  की  हरकत  को , हाल  देखा  तो  ठहर  थोड़ा  गया ,
    पर  चलता  हूँ  महसूस  न  हो  ज़मानें   को , भूचाल  था  आया  बहला  देना , कह  के  रवाना हुआ !!
    सुना  है  तेरे  गालों  की  लाली  उतार  दी  तैनें ,
    चलो  अच्छा  हुआ , वक्त  का  सच  वक्त रहते ,  मान  लिया !
    मेरे  भी  काले  बालों  का  सच  उजागर  हुआ  ज़मानें  में ,
    पर  मैं  चूक  गया  , कालिख  के  प्रभाव  से  गंजा  हुआ  ,  जान  लिया  !!



    गिरगिटों के  नित  बदलते  रंगों  ने  ,  मेरा मन  कुछ  उदास  किया  ,
    आता  अगर  ये  फन  मुझको  भी  ,  मैं  भी  गर्दन  झटक  रहा  होता  !! 



     
    मेरा  मन  ये  बैरी  मन , सोचता  है  कभी , ये  शाम  ही  रंगीन  क्यों  होती  , 
    बदनाम  रात  ही  क्यों  होती ,  क्या  दिन  के  उजाले  में  वो  सब नहीं  होता !!





      पगडंडियाँ  हैरान  हैं ,  करती  हैं  सवाल , क्यों  मचाते  हो  बवाल  जब ,  ऊपर  ले  जाती  मैं  ?
    चोटी   पे  पहुँच ,  मज़ा  लेते  जब  ,  देखते  दुनिया  के  नज़ारे  हो ,  क्यों  अच्छा  लगता  है  न ?
    फिर  चार  बूँद  पसीने  की  मेरी , जो  मेरी  ही  कमाई  है  ,  क्यों  देने  से  कतरा  जाते  हो  ,  है  न ?
    दौड़ते  जब  उतराई  में  ,  प्रयत्न   बिना  ,  हँसते  मुस्कुराते  ,  वो  तो  ईनाम  भी  देती  हूँ  न  ?
    फिर  क्यों  भला  कोसते  हो  चढ़ाई  को , हर  कदम चढ़ते  हुए  देते  हो  गाली  ,  क्यों  है  न  ?  
    भले मानुस  प्रयत्न   तो  अवश्य  ही  कुछ  करना  होगा ,  बिना  प्रयत्न तो  बस  मरना  
    होगा  !!




    हमें  यूँ  न  जाईये  दरस  दिखला  के  रंगीन , सदियों  से  इंतज़ार  में  था सपना  मेरा !
    कामयाबी  तो  यूँ  ही  नहीं  नाम  दिया था  मैंने  , मेरे  सपने ,  है  तू  अपना  मेरा !!
    बरसों , मेहनत  की  ,  झाड़  सुनी  ,  माँ  बापू  , गुरुजन ,  और  सत्य  स्नेहियों की !
    अब  कहीं  जाके  झांकी  तू  , देख  तो  लूं  जी  भर  के  मैं , मेरी  किस्मत  की  जनी !!
    सुना  है  तेरे  गालों  की  लाली  उतार  दी  तैनें ,
    चलो  अच्छा  हुआ , वक्त  का  सच  वक्त रहते ,  मान  लिया !
    मेरे  भी  काले  बालों  का  सच  उजागर  हुआ  ज़मानें  में ,
    पर  मैं  चूक  गया  , कालिख  के  प्रभाव  से  गंजा  हुआ  ,  जान  लिया  !!



    गिरगिटों के  नित  बदलते  रंगों  ने  ,  मेरा मन  कुछ  उदास  किया  ,
    आता  अगर  ये  फन  मुझको  भी  ,  मैं  भी  गर्दन  झटक  रहा  होता  !! 



     
    मेरा  मन  ये  बैरी  मन , सोचता  है  कभी , ये  शाम  ही  रंगीन  क्यों  होती  , 
    बदनाम  रात  ही  क्यों  होती ,  क्या  दिन  के  उजाले  में  वो  सब नहीं  होता !!





      पगडंडियाँ  हैरान  हैं ,  करती  हैं  सवाल , क्यों  मचाते  हो  बवाल  जब ,  ऊपर  ले  जाती  मैं  ?
    चोटी   पे  पहुँच ,  मज़ा  लेते  जब  ,  देखते  दुनिया  के  नज़ारे  हो ,  क्यों  अच्छा  लगता  है  न ?
    फिर  चार  बूँद  पसीने  की  मेरी , जो  मेरी  ही  कमाई  है  ,  क्यों  देने  से  कतरा  जाते  हो  ,  है  न ?
    दौड़ते  जब  उतराई  में  ,  प्रयत्न   बिना  ,  हँसते  मुस्कुराते  ,  वो  तो  ईनाम  भी  देती  हूँ  न  ?
    फिर  क्यों  भला  कोसते  हो  चढ़ाई  को , हर  कदम चढ़ते  हुए  देते  हो  गाली  ,  क्यों  है  न  ?  
    भले मानुस  प्रयत्न   तो  अवश्य  ही  कुछ  करना  होगा ,  बिना  प्रयत्न तो  बस  मरना  होगा !! 



    हमें  यूँ  न  जाईये  दरस  दिखला  के ,  सदियों  से  इंतज़ार  में  था सपना  मेरा 
    सुना  है  तेरे  गालों  की  लाली  उतार  दी  तैनें ,
    चलो  अच्छा  हुआ , वक्त  का  सच  वक्त रहते ,  मान  लिया !
    मेरे  भी  काले  बालों  का  सच  उजागर  हुआ  ज़मानें  में ,
    पर  मैं  चूक  गया  , कालिख  के  प्रभाव  से  गंजा  हुआ  ,  जान  लिया  !!



    गिरगिटों के  नित  बदलते  रंगों  ने  ,  मेरा मन  कुछ  उदास  किया  ,
    आता  अगर  ये  फन  मुझको  भी  ,  मैं  भी  गर्दन  झटक  रहा  होता  !! 



     
    मेरा  मन  ये  बैरी  मन , सोचता  है  कभी , ये  शाम  ही  रंगीन  क्यों  होती  , 
    बदनाम  रात  ही  क्यों  होती ,  क्या  दिन  के  उजाले  में  वो  सब नहीं  होता !!





      पगडंडियाँ  हैरान  हैं ,  करती  हैं  सवाल , क्यों  मचाते  हो  बवाल  जब ,  ऊपर  ले  जाती  मैं  ?
    चोटी   पे  पहुँच ,  मज़ा  लेते  जब  ,  देखते  दुनिया  के  नज़ारे  हो ,  क्यों  अच्छा  लगता  है  न ?
    फिर  चार  बूँद  पसीने  की  मेरी , जो  मेरी  ही  कमाई  है  ,  क्यों  देने  से  कतरा  जाते  हो  ,  है  न ?
    दौड़ते  जब  उतराई  में  ,  प्रयत्न   बिना  ,  हँसते  मुस्कुराते  ,  वो  तो  ईनाम  भी  देती  हूँ  न  ?
    फिर  क्यों  भला  कोसते  हो  चढ़ाई  को , हर  कदम चढ़ते  हुए  देते  हो  गाली  ,  क्यों  है  न  ?  
    भले मानुस  प्रयत्न   तो  अवश्य  ही  कुछ  करना  होगा ,  बिना  प्रयत्न तो  बस  मरना  होगा !! 



    हमें  यूँ  न  जाईये  दरस  दिखला  के ,  सदियों  से  इंतज़ार  में  था सपना  मेरा 

  • रोज  सागर  में  डूबता  जब  सूरज  , मस्ती  में  झूमता  सागर  है  !

  • चाँद  छूने  की  चाह  लिए  , ज्वार  में  झूलता  सागर  है  !!

  • पर  टिटिहरी  रोज  जताती  , किती  पियूँ , किती  पियूँ  ,

  • खारा  पानी  ? और  फिर  चुल्लू  में  , रोज  डूबता  सागर  है  !!

  • ...........................................किती  पियूँ  ,(  कहाँ  पियूँ )





  •    हसीं  था  वक्त और  मैं  , चलता  चला  , चलता  चला  !

  • बेहोश  सा  हर  कदम  , जिधर  चला  , चलता  चला  , चलता  चला  !!

  • रास्ते  में  कुछ  न  देखा  , कुछ  न  जाना  ,

  • जो  कुछ  मिला  सब  बटोरा ,गफलत  हुयी  !

  • अब  वक्त  बदला  ,घर  में  देखा  , कचरा  ही  कचरा  ,

  • बिखरा  पड़ा  है  हर  किनारे ,  नफरत  हुई  !! 

  • संभलता  वक्त  रहते  , वक्त  की  करता  कदर  ,

  • और  सब  छाँट  लेता  गर्दो ग़ुबार !

  • हीरे  मोती  न  सही  ,और  न  सही  ज़मीं  और  मकान  ,

  • इक  अदद  साथी  तो  होता  मन  की  बातों  के  लिए  !!


  • ज़माने  भर  से  आ  रही  हैं  सदायें  , और  मैं  मगरूर सुनता  ही  नहीं  , मशगूल  हूँ  !

  • कितने  लाख  , कितने  करोड़  , कितने  अरब  ,कितने  खरब  डालर  हुए  ,

  • और  कितने  बचे  आने  के  लिए  !!


  • तेरे  चेहरे  की  रंगत  खुशनुमां  है  ? कहीं  दुनियां  से  मेरा  जाना  , तय  तो  नहीं  है  ?

  • कभी  खिलते  हों  फूल  पतझड़  में  ?देखा  नहीं  है  ! अज  मेरी  रुखसती  की  शब्  तो  नहीं  है  ?


  • क्या  कहती  हो  ? चाँद  तारों  को  तेरा  चेहरा  दिखा  दूं  ?

  • अरे  कुछ  है  भी  खबर  वो  सारे  क्यों  लटके  हुए  हैं  ?

  • तेरा  रिश्ता  कोई  लेके  गया  था  खुदा  के  पास  ,

  • ये  सारे  भगौड़े  हैं  ,खुदा  का  घर  छोड़  आये  हैं  !!


  • मौला  मेरे  , मेरे  चेहरे  पे  कुछ  तो  रहम  किया  होता  ,

  • छिपाने  के  लिए  fb पे , तरीके  सब  आजमा  लिए  मैंने  !!


  • अग्नि  के  आवेश  में  , पानी  दिल  का  जला  !

  • और  रिहाईडरेशन  के  लिए  मदिरालय  जाना  पड़ा  !!


  • संघर्षों  से  ख़तम  होता  है  जीवन  का  संघर्ष  ,

  • एक  का  जीतना  और  दूसरे  का  हारना  , संघर्ष  !!

  • चला  रहता  है  जीवन  भर  , और  ठहरता  मात्र  मरने   पर  ,

  • न  डरना  मित्र  मेरे  इस  बला  से  ,पर  करना  सदा  सत्य  के  लिए  संघर्ष  !!


  • वो  सोचते  हैं  मैं  करिश्मा  हूँ  , और  मैं  सोचता  हूँ  वो  करिश्मा  हैं  !

  • खुदा  सोचता  है  मेरा  करिश्मा  है  , और  मैं  सोचता  हूँ  खुदा  करिश्मा  है  !!


  • वो  बोलते  हैं  मैं  खुदा  से  जुड़  गया  , मैं  बोलता  हूँ  तू  उड़  गया  ,

  • या  तो  तू  खुदा  से  मिल  गया  ,

  • या  खड्डे  में  गया  और  ज़मीं  खुदा ( खोदना ) के  जुड़  गया  !!


  • तू  गिरवी  न  रख  जुबान  को  , दिल  बहक  जाएगा  ,

  • मौत  तो  दोनों  तरफ  है  , अपना  तो  हो  के  जी  !

  • और  मरते  तो  वो  भी  हैं  , बेची  या  खरीदी  जुबान   जिसने  ,

  • पर  वो  मरते  हैं  , और  तुम  आजाद  होते  हो  !


  • दीवानों  की  हद  क्या  है  और  है  दीवानगी  क्या  , बतायेगा  खुदा  क्या  , खुद  भी  दीवाना  है  !

  • मुझसे  न  पूछ  , दीवाना  हूँ  मैं  क्या  ? पागल  तो  हूँ  पर  , खुदा  जैसा  नहीं  हूँ  !!


  • पेड़ों  के  झुरमुट  से  झांके  वो  शर्माकर  ,और  मैं  स्तब्ध  खड़ा  निहारूं  ईश्वर  की  अदा  को  !

  • मोहित  हूँ , अचंभित  हूँ  , क्या  क्या  हैं  करिश्में  , और  हैरान  हूँ  मैं  उनपे  भी  , जो  कलियाँ  तोडें , मरोड़ें !!



  • जहन्नुम  में  तुम  जाओ  मेरी  बला से  , मेरा  तो  खुदा  गुम है  , और  मैं  ढूंढ  के  पागल  हूँ  !

  • मिले  तो  बताना  तुम  , होश  में  आ  लूँगा  , और  तुमको  भी  जन्नत  की  दुवा  मैं  दूंगा  !!


  • तेरे  कानों  के  बुन्द्दे , तेरी  माथे  की  बिंदिया  , आते  हैं  सबकी  कविताओं  के  घेरे  में  !

  • पर  बूँद  पसीने  की  जो  गालों  पे  चमके  , मेरी  कविताओं  में  टांक  के  रखना  !!