Tuesday, 7 February 2012


हा  ! भाग्य   मेरा  !
ललचाये   बच्चे   चाँद   को   , मुख   धरा   का   छोड़  ,
आँख   उनकी   दूध   तक ,  बस   दूध   तक ,  है   मेरे   !
मैं   भी  लटकी   अधर   में ,  चाँद   जैसी   ,  चाँद   से   पहले  ,
पर   गगन   में   छटा   मेरी  , कैसी   सुन्दर ,  जाने   कौन  ?
मेरा   ठाठें   मारता   समंदर   , नीला   नीला   आभा   युक्त  ,
मेरे   मटमैले   ,  हरे ,  पीले  ,  मैदान   पर्वत   सब   चमकते   ,
पर  , ललचाये   बच्चों   को   सिर्फ   ,  आसमान   का  चाँद   चाहिए   ,
सूरज   दिखता   , दिवस   में   , निशा   में  , तारे   ,  निहारिकायें  ,
पर   बच्चे   केवल   चाँद   ,  चाँद   की   रट   लगाए   ,  मचलते  ,
खून   और   दूध   से   सिंचित   ,  मेरे   तल   ,  पर   पलते   , निखरते  ,
हा ! ये   कैसे   बच्चे   हैं   जिन्हें   माँ   न   दिखती   ,  चाँद   दिखता   ,
पर   मैं   अकेली   नहीं  ,  इक   माँ घर  में  और   भी   है   , परित्यक्त   मेरे   जैसी  ,
कहीं   दिखती   तुम्हें   हो   , उसी   से ,  मेरा   दुःख   बाँट   लेना   तुम   ,
उसी   से   नेह   लग   जाए   तुम्हारा   , समझ  लूंगी   उद्धार   अपना    हो   गया  !!

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