हा ! भाग्य मेरा !
ललचाये बच्चे चाँद को , मुख धरा का छोड़ ,
आँख उनकी दूध तक , बस दूध तक , है मेरे !
मैं भी लटकी अधर में , चाँद जैसी , चाँद से पहले ,
पर गगन में छटा मेरी , कैसी सुन्दर , जाने कौन ?
मेरा ठाठें मारता समंदर , नीला नीला आभा युक्त ,
मेरे मटमैले , हरे , पीले , मैदान पर्वत सब चमकते ,
पर , ललचाये बच्चों को सिर्फ , आसमान का चाँद चाहिए ,
सूरज दिखता , दिवस में , निशा में , तारे , निहारिकायें ,
पर बच्चे केवल चाँद , चाँद की रट लगाए , मचलते ,
खून और दूध से सिंचित , मेरे तल , पर पलते , निखरते ,
हा ! ये कैसे बच्चे हैं जिन्हें माँ न दिखती , चाँद दिखता ,
पर मैं अकेली नहीं , इक माँ घर में और भी है , परित्यक्त मेरे जैसी ,
कहीं दिखती तुम्हें हो , उसी से , मेरा दुःख बाँट लेना तुम ,
उसी से नेह लग जाए तुम्हारा , समझ लूंगी उद्धार अपना हो गया !!
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