Saturday, 25 February 2012

मुट्ठी  भर  कमर  हो  , और  भारी  बदन   ,
कांच  सी  खनक  हो  , मस्त  हो  मदन  ,
नशा  हो  बाम  तक  लबालब  भरा  ,
ऐसे  पैमाने   को  छलकने  न  दूं  ,
गटागट  , गटागट  , पिए  जाऊं  मैं  ,
और  दर्शन  तेरा  फिर  किये  जाऊं  मैं  !!

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चाँद  आमादा  है  फिर  चढ़ने   को  ,
और 
चाँदखुमारी  बीती  शब्  की  ,
मेरी  आँखों  से  उतरी  नहीं  है  !!

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झूम  के  बरसो  रे  बादल  , दिल  मेरा  भी  बरसने  को  है  ,
खुशबू  हवाओं  में  भीनी भीनी  है  , मेरे  यार  की  !

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बियाबान  जंगल  में  सूखे  पत्तों  की  खडखडाहट  ,
देती  है  पता  किसी  जीवन  के  क़दमों  का  ,
और  झट  से  शिकारी  का  निशाना  , बींधे  लक्ष्य  को  ,
फिर  इक  चीख  से  जंगल  दहलता  है  ,
और  सब  प्राण  पंखेरू  बचानें  को  दिशाहीन  भागे  जाते  हैं  ,
जैसे  मैं  भून्चाल  के  आने  पर  ,
भाग  जाता  हूँ  अंधों  की  तरह रात  को  घर  से  बाहर  ,
हा  ! ये  मौत  का  डर  ,जो  पल  पल  डराता  है  जीवन  को  !!

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नाकामी  रही  नींव  मेरी  तरक्की  की  ,
और  कामयाब  रहा  भूकंपरोधी  प्रयोग !!

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तेरी  तस्वीर  गवारा  थी  मुझको ,
दिल  मस्तकलंदर  था  मेरा ,
जाने  क्या  मौसम  बदला  है ,
उखड़े  तुम  और  उखड़े  हम !!

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कोई  मौसम  को  बहलाओ  रूठा  रूठा  लगता  है ,
दोपहरी  में  सिहरन  होती  है  ,  रातों  को  पसीना  आता  है !
इसमें  मौसम  का दोष  है  क्या  ,ये  तो  बीमारी  के  लक्षण  हैं ,
या  तो  बुखार  है  कोई  अंदरूनी , या  दिमाग  का  पुर्जा  ढीला  है !!

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आज  दिल  की  सड़कों  में  बहता  है  सतरंगी  दरिया  ,
जैसे  कुम्भ  का  मेला  लगा  हो  , मन  में  मेरे  !!
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गुजाश्ता  ख्याल  आज  परीशांकुन   है  ,
आँखें  मेरी  फिर  पुरनम  हैं  !
तन्हाई  बस  तन्हाई  , तन्हाई  ,
वक्त  बहुत  है  , और  बेदर्दी  गुम  है  !!

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इम्तियाज़  के  घर  मेला  लगा  है  ,  सौदा  ए  सुखन  ले  लूं  आज  !!
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(  इम्तियाज़  :-  विवेक  ,  - सुखन :- काव्य  लिखने  की  कला )



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