मुट्ठी भर कमर हो , और भारी बदन ,
कांच सी खनक हो , मस्त हो मदन ,
नशा हो बाम तक लबालब भरा ,
ऐसे पैमाने को छलकने न दूं ,
गटागट , गटागट , पिए जाऊं मैं ,
और दर्शन तेरा फिर किये जाऊं मैं !!
............
चाँद आमादा है फिर चढ़ने को ,
और चाँदखुमारी बीती शब् की ,
मेरी आँखों से उतरी नहीं है !!
...........
झूम के बरसो रे बादल , दिल मेरा भी बरसने को है ,
खुशबू हवाओं में भीनी भीनी है , मेरे यार की !
...........
बियाबान जंगल में सूखे पत्तों की खडखडाहट ,
देती है पता किसी जीवन के क़दमों का ,
और झट से शिकारी का निशाना , बींधे लक्ष्य को ,
फिर इक चीख से जंगल दहलता है ,
और सब प्राण पंखेरू बचानें को दिशाहीन भागे जाते हैं ,
जैसे मैं भून्चाल के आने पर ,
भाग जाता हूँ अंधों की तरह रात को घर से बाहर ,
हा ! ये मौत का डर ,जो पल पल डराता है जीवन को !!
............
नाकामी रही नींव मेरी तरक्की की ,
और कामयाब रहा भूकंपरोधी प्रयोग !!
.............
तेरी तस्वीर गवारा थी मुझको ,
दिल मस्तकलंदर था मेरा ,
जाने क्या मौसम बदला है ,
उखड़े तुम और उखड़े हम !!
.............
कोई मौसम को बहलाओ रूठा रूठा लगता है ,
दोपहरी में सिहरन होती है , रातों को पसीना आता है !
इसमें मौसम का दोष है क्या ,ये तो बीमारी के लक्षण हैं ,
या तो बुखार है कोई अंदरूनी , या दिमाग का पुर्जा ढीला है !!
कांच सी खनक हो , मस्त हो मदन ,
नशा हो बाम तक लबालब भरा ,
ऐसे पैमाने को छलकने न दूं ,
गटागट , गटागट , पिए जाऊं मैं ,
और दर्शन तेरा फिर किये जाऊं मैं !!
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चाँद आमादा है फिर चढ़ने को ,
और चाँदखुमारी बीती शब् की ,
मेरी आँखों से उतरी नहीं है !!
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झूम के बरसो रे बादल , दिल मेरा भी बरसने को है ,
खुशबू हवाओं में भीनी भीनी है , मेरे यार की !
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बियाबान जंगल में सूखे पत्तों की खडखडाहट ,
देती है पता किसी जीवन के क़दमों का ,
और झट से शिकारी का निशाना , बींधे लक्ष्य को ,
फिर इक चीख से जंगल दहलता है ,
और सब प्राण पंखेरू बचानें को दिशाहीन भागे जाते हैं ,
जैसे मैं भून्चाल के आने पर ,
भाग जाता हूँ अंधों की तरह रात को घर से बाहर ,
हा ! ये मौत का डर ,जो पल पल डराता है जीवन को !!
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नाकामी रही नींव मेरी तरक्की की ,
और कामयाब रहा भूकंपरोधी प्रयोग !!
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तेरी तस्वीर गवारा थी मुझको ,
दिल मस्तकलंदर था मेरा ,
जाने क्या मौसम बदला है ,
उखड़े तुम और उखड़े हम !!
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कोई मौसम को बहलाओ रूठा रूठा लगता है ,
दोपहरी में सिहरन होती है , रातों को पसीना आता है !
इसमें मौसम का दोष है क्या ,ये तो बीमारी के लक्षण हैं ,
या तो बुखार है कोई अंदरूनी , या दिमाग का पुर्जा ढीला है !!
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आज दिल की सड़कों में बहता है सतरंगी दरिया ,
जैसे कुम्भ का मेला लगा हो , मन में मेरे !!
जैसे कुम्भ का मेला लगा हो , मन में मेरे !!
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गुजाश्ता ख्याल आज परीशांकुन है ,
आँखें मेरी फिर पुरनम हैं !
तन्हाई बस तन्हाई , तन्हाई ,
वक्त बहुत है , और बेदर्दी गुम है !!
...........
इम्तियाज़ के घर मेला लगा है , सौदा ए सुखन ले लूं आज !!
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( इम्तियाज़ :- विवेक , - सुखन :- काव्य लिखने की कला )
आँखें मेरी फिर पुरनम हैं !
तन्हाई बस तन्हाई , तन्हाई ,
वक्त बहुत है , और बेदर्दी गुम है !!
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इम्तियाज़ के घर मेला लगा है , सौदा ए सुखन ले लूं आज !!
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( इम्तियाज़ :- विवेक , - सुखन :- काव्य लिखने की कला )
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