Friday, 10 February 2012

नजदीकियां  कुछ  भी  नहीं  बीच , है  मालूम  ,
पर  पीठ  ही  फेरो  ज़रूरी  तो  नहीं  !!
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ख़ाली  हैं  मेरे  हाथ  तो  उठते  हैं  दुआ  में  ,
ख़ाली  ही  रहने  दे  , आज़ाद  हूँ  अब  !!
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कितना  जानते  हैं  तुम्हें  ?
सात  ही  तो  जन्म  हुए  अभी  साथ  !!
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कुछ  बोलें  तो  गिला  हो  जाता  क्यों  ?
ये  चुप  सी  तो  मुझसे  होती  नहीं !!
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चौतरफा  चर्चे  हैं  , गुनाह  कुछ  हो  तो  सही  ,
दरमियाँ  हमारे  कुछ  है  , तो  परेशां  दुनियां  क्यों  ?
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रूठेंगे  तो  मना  भी  लेंगे  , इस  उम्मीद  में  रूठा  ही  रहा  मैं  ,
अब  सिवा  मान  जाने  के  चारा  क्या  है !! ..,........
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हमारे  हिमाचल  में  मशहूर  है  ,
रुस्सी  घुग्गी  किने  मनाई  , फत  फत  करदी  अप्पू  आई  !
अर्थात  , रूठे  हुओं  को  किसने  मनाया  ,
हार  कर  वो  अपने  आप  मान  जाते  हैं  !!
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पैमाना  ए  दिल  छल्का  है  पहली  बार , 
नूरे  सहर  ऐसा  ही  होता  है  क्या  ? 
नूरे  माह  ऐसी  ही  होती  है  क्या ?
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"इक  तू  ही  जवान  न  हुआ   दुनियाँ  में  ,
नूरे  सहर  भी  वही  है  , नूरे  माह  भी  वही  ,
फिर  क्यों  दीवाना  हुआ   जाता  है  तू  !!"

(  नूरे  सहर  :-  सुबह  का  उजाला  ,  नूरे  माह :-  चांदनी )
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"करार  आ  जाए  तो  अच्छा  , न  आये  तो  भी  अच्छा  ,
दिल  के  बहकने  की  गुंजाईश  नहीं  अब  !!"

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