वो नगमा जिसे समझा था बेअसर मैंने ,
नाचा मेरे आगे तितलियों की तरह !
अब तो पछताने के सिवा हासिल क्या ,
ग़ज़ल बन वो अब हर लब पे है !!
................
जाने क्यों मेरे देश को , जागीर समझते हैं लोग ,
जो आता है , लूटे चला जाता है !!
.............
आज तट पर खड़े ना पेड़ , कोई प्रहरी बन ,
मयूराक्षी सुनसान बहे जाती है , पर शांत है वो ,
इक वादा लिए जाती है , शांत रहोगे तुम भी ,
ये जो क्षण क्षुब्ध किये जाते हैं ,
अमृत बरसाते हैं वक्त आने पर ,
बस इंतजार तुम भी करो थोड़ा ,
किनारे उग आयेंगे जंगल घनेरे ,
फिर लदे होंगे वो सब्र के मीठे फल से ,
खिला होगा मन भी तेरा , मेरे तट की तरह ,
और तुम भी , लह्लहाओगे जीवन बन !!
नाचा मेरे आगे तितलियों की तरह !
अब तो पछताने के सिवा हासिल क्या ,
ग़ज़ल बन वो अब हर लब पे है !!
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जाने क्यों मेरे देश को , जागीर समझते हैं लोग ,
जो आता है , लूटे चला जाता है !!
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आज तट पर खड़े ना पेड़ , कोई प्रहरी बन ,
मयूराक्षी सुनसान बहे जाती है , पर शांत है वो ,
इक वादा लिए जाती है , शांत रहोगे तुम भी ,
ये जो क्षण क्षुब्ध किये जाते हैं ,
अमृत बरसाते हैं वक्त आने पर ,
बस इंतजार तुम भी करो थोड़ा ,
किनारे उग आयेंगे जंगल घनेरे ,
फिर लदे होंगे वो सब्र के मीठे फल से ,
खिला होगा मन भी तेरा , मेरे तट की तरह ,
और तुम भी , लह्लहाओगे जीवन बन !!
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