Tuesday, 21 February 2012


जंगल   बौराया   है   आज   ,
शेर   पे   चढ़   माँ  दुर्गा   निकली   है  ,
वन   विहार   को  ,
सब   जंगल   प्राणी   मुग्ध   हुए   से   ,
राजा   को  ,
शक्ति   की   सवारी   बने   ,  देख   रहे   हैं  ,
और   खुश   हैं   ,  अहंकारी   की   गत   देख   ,
अब   जंगल   ,  फल   से   लदा   ,
जीवन   दाता   बन   झुक   आया   है   !!
…………
बसंत   ने   फूलों   का   मुंह   रंग   दिया   , 
सतरंगी   बासंती   !
अब   हँसते   हैं   तो   मधु   बरसता    है   ,  और   ,
केसर   उड़ता   है   मीलों    तक   !!
…………….
होरी   की   रुत   में  ,  गगन   भरा   पानी   से   ,
और   फाग   उड़ाए   हैं   चीड़   के   जंगल   ने   ,
अब   तो   मन   बरसने   को   है   ,
तन   भीगा   बारिश   से   पहले   ही   !!
………………
झनझना   गया   है   अंतर्मन   ,
मौसम   है   उदास   ,
और   वो   देहरी   पे   खड़े   आस   में   हैं   ,
मेरे   क़दमों   की   आहट   की   ,
और   मुझे   जल्दी   नहीं   कोई   आज  ,
बदले   की   रुत   आई   है   तरसाने   की  ,
मनभावन   को   झुलसाने   की  !!

No comments:

Post a Comment