जंगल बौराया है आज ,
शेर पे चढ़ माँ दुर्गा निकली है ,
वन विहार को ,
सब जंगल प्राणी मुग्ध हुए से ,
राजा को ,
शक्ति की सवारी बने , देख रहे हैं ,
और खुश हैं , अहंकारी की गत देख ,
अब जंगल , फल से लदा ,
जीवन दाता बन झुक आया है !!
…………
बसंत ने फूलों का मुंह रंग दिया ,
सतरंगी बासंती !
अब हँसते हैं तो मधु बरसता है , और ,
केसर उड़ता है मीलों तक !!
…………….
होरी की रुत में , गगन भरा पानी से ,
और फाग उड़ाए हैं चीड़ के जंगल ने ,
अब तो मन बरसने को है ,
तन भीगा बारिश से पहले ही !!
………………
झनझना गया है अंतर्मन ,
मौसम है उदास ,
और वो देहरी पे खड़े आस में हैं ,
मेरे क़दमों की आहट की ,
और मुझे जल्दी नहीं कोई आज ,
बदले की रुत आई है तरसाने की ,
मनभावन को झुलसाने की !!
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