Sunday, 12 February 2012

कुछ  तो  था  मेरा  क़ुसूर  , कुछ  लगाई  ज़माने  ने  ,
आग  में  झुलसता  घर  , अब  उंगलिओं  के  इशारों  पे  है !!
............
ना  तो  भूल  पाऊंगा  ज़माने  में  , ना  भूल  पाऊंगा  ज़माने  बाद  ,
वो  तल्ख़  तल्ख़  नज़रें  तेरी  , एहसान  मुझपे  कर  गयीं  आज  !!
............
बहुत  रात  बीते  , इक  ख्याल  के  ,
मैं  हूँ  अकेला  , दगा  दे  गया  ,
मुझे  सपनों  की  दुनियां  से  अलग  ले  गया  ,
मेरी  नींदों  को  ले  गया  , उड़ा  आसमान  ,
और  यादों  का  गट्ठर  मुझे  दे  गया  !!
............
खामियां  तुम  देखो  तो  हैं  ,
और  ना  देखो  तो  भी  हैं  मुझमें  ,
मेरा  अंतर  जानता  है  सब  ,
पर  तुम  बताओ  तो  अच्छा  ,
और  ना  बताओ  तो  और  भी  अच्छा  !!
..............
नूरे  माह  फिर  उतरी  है  शरारा  बनकर  ,
जाने  किस  महफ़िल  को  जलना  है  आज  !!

No comments:

Post a Comment