Saturday, 4 February 2012

बदलते  रहे  इशारे  कि  , न  समझेगा  वो  इश्क  ,
था  मालूम  क्या  , ज़माना  , गुज़रा  है  राहों  से  अनेकों  बार  !!
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बिताई  तो  आधी  रात , चन्द्रमा  नें  ,
तुम  तो  न  आये  सारी  रात  ?
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तुम  मेरे  बोल  थे  क्या ? जो  फँस  गये  ज़ुबां  में  ,
आंसुओं  को  किसने  समझाया , वो  वापिस  हो  नहीं  सकते ?
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टूटा  , तो  सपना  मेरा  , भरी  तो  आँखें  तेरी  ,
मुकद्दर  से  मुझे  , इश्क  हो  गया  यारा  !!

ये  तू  तो  नहीं  जो  , बारम्बार  आये  ,
मेरे  बिगड़े  हुए  पल  , बिगड़े  हुए  ही  रहोगे  तुम  सदा  !!

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मेरे   जीवन   में   है   है   ,  है   ,
कोई   ना   ना   सिखादे   ,
बहुत   तंग   आ   गया   हूँ  , 
स्वीकार   की   आदत   से   अपनी   मैं   ,
कोई   मुझको   भी   प्यार   से   अस्वीकारना   सिखा   दे  ,
है   पता   मुझको   वो   ठग   है   ठग   के   जाएगा   ,
पर    कोई   बहाना   याद   तो   आये   ,
मेरा   संकोच   तो   जाए    ,
या   लुटता  ही    रहूँगा   यूं  ,  जीवन   में   सौ   सौ   बार  ?
और   ठगा   सा   देखता   रहूँगा   ,  ठगना   स्वयं   का   हर   बार  ?

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