बदलते रहे इशारे कि , न समझेगा वो इश्क ,
था मालूम क्या , ज़माना , गुज़रा है राहों से अनेकों बार !!
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बिताई तो आधी रात , चन्द्रमा नें ,
तुम तो न आये सारी रात ?
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तुम मेरे बोल थे क्या ? जो फँस गये ज़ुबां में ,
आंसुओं को किसने समझाया , वो वापिस हो नहीं सकते ?
.......................
टूटा , तो सपना मेरा , भरी तो आँखें तेरी ,
मुकद्दर से मुझे , इश्क हो गया यारा !!
ये तू तो नहीं जो , बारम्बार आये ,
मेरे बिगड़े हुए पल , बिगड़े हुए ही रहोगे तुम सदा !!
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था मालूम क्या , ज़माना , गुज़रा है राहों से अनेकों बार !!
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बिताई तो आधी रात , चन्द्रमा नें ,
तुम तो न आये सारी रात ?
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तुम मेरे बोल थे क्या ? जो फँस गये ज़ुबां में ,
आंसुओं को किसने समझाया , वो वापिस हो नहीं सकते ?
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टूटा , तो सपना मेरा , भरी तो आँखें तेरी ,
मुकद्दर से मुझे , इश्क हो गया यारा !!
ये तू तो नहीं जो , बारम्बार आये ,
मेरे बिगड़े हुए पल , बिगड़े हुए ही रहोगे तुम सदा !!
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मेरे जीवन में है है , है ,
कोई ना ना सिखादे ,
बहुत तंग आ गया हूँ ,
स्वीकार की आदत से अपनी मैं ,
कोई मुझको भी प्यार से अस्वीकारना सिखा दे ,
है पता मुझको वो ठग है ठग के जाएगा ,
पर कोई बहाना याद तो आये ,
मेरा संकोच तो जाए ,
या लुटता ही रहूँगा यूं , जीवन में सौ सौ बार ?
और ठगा सा देखता रहूँगा , ठगना स्वयं का हर बार ?
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