Thursday, 23 February 2012

मेरे  फायदे  से  नुक्सान  ना   हो  ज़माने  का  ,
तो  घाटे  में  चलता  हूँ  यारो  !
पर  ये  ज़माना  ही  कहता  है  मुझे  ,
मूर्ख  है  साला  , पहले  दर्जे  का  !!

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देख  के  मेरा  लहज़ा  औ  लज्ज़त  जुबां  की  ,
यार  को  शक  है  की  मैं  , मैं  ना  रहा  !!

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आंसू  बोले  तो  हैं  , पर  रो  रो  ,
और  पोंछ  के  मातम  मना  लिया  उसने  !!

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खुदा  के  घर  रिंद  का  जाना  ना  हुआ  ,
अपना  समझ  लौट  आया  बार  बार  !!

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ख़ुदा  की  मेहरबानी  से  ,
ख़ुदा  को  वो  ख़ुदा  नहीं  कहते  ,
और  ख़ुदा  बख्शता  उन्हें  भी  है  ,
जो  ख़ुदा  नहीं  कहते  ,
ख़ुदा  की  बख्शिशें  बरसती  हैं  बन्दों  पर  , बराबर  ,
ख़ुदा  है  वो  आखिर  ख़ुदा  ,
कोई  उसको  यूँ  ही  ख़ुदा  नहीं  कहते  !!

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जुबां  के  तीर , हुए  जिगर  के  पार  ,
खूँ  सूख  गया  , बस  धुंआ  निकला  !!

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जुबां  के  तीर , हुए  जिगर  के  पार  ,
खूँ  सूख  गया  , बस  धुआँ  निकला  !!

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मुहब्बत  है  ज़मानें  से  मुझे  ,
पर  इतनी  नहीं  कि  मर  जाऊं  मैं  !

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