Thursday, 9 February 2012

पैमाना  ए  दिल  छल्का  है  पहली  बार ,
नूरे  सहर  ऐसा  ही  होता  है  क्या  ?
नूरे  माह  ऐसी  ही  होती  है  क्या ?
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महज़  कालिख  देखी  दिल  की  मेरी  ,
जलाया  किसने  ? ना  पूछा  इक  बार  !!
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दिल  खाली  है  उनका  , ना  बोल  ,
खाली  इक  बद्दुआ  और  दिल  की  तबाही  है !!
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लाज़िम  नहीं  लहजा  अंगूरी  हो  तेरा  ,
पर  तुर्श  हो  जाए  जिगर  लाज़िम  है  क्या  ?
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लफ़्ज़ों  को  उसने  देदी  तरज़ीह  ,
ना  देखा  उसने  अश्कों  का  सैलाब  !
गिला  उसने  किया  मेरे  गिले  का  ,
ना  देखा  उसने  , बर्बादी  है  क्या  !!
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हर्फ़  दिख  जाएँ  तेरे  काफी  है  ,
कागज़  में  मज़मून  लिख  ,मैं  नहीं  कहता  !
इक  नज़र  ही  काफी  है  पैमाने  पे  तेरी  ,
हाथों  में  मेरे  दे दे  , मैं  नहीं  कहता  !!

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कर  आये  मेरे  खवाबों  का क़त्ल वो , वस्ल से  पहले ,
इक  कब्र  में  ख्वाब  हैं  ,और   इक  कब्र में  हूँ  मैं  अब !!

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