कच्छप तो बनना होगा इक बार ,
कष्टों के पर्वत को देना होगा आधार ,
वासुकी सी समस्याओं की रस्सी बना ,
मंदराचल से मन से , मथना होगा संसार ,
देव और दानव का सब बल ,
शाखाओं में धर ले तू ,
फिर मथ सागर , जीवन के सब भोग लगा ,
अमृत पी ,और श्री का करले अंगीकार ,
पर प्रयत्न तो करना होगा ,
कच्छप तो बनना होगा !!
..........................
( शाखाओं :- भुजाएं एवं जंघाएँ )
..............इक युग हो तुम , कोई न माने तो क्या ?
तुम में भी अनगिनत अवतार हुए ,
तुमने नित्य युद्ध लड़ा हर बार ,
तुममे भी सब पैदा हुए और तुम मरे सौ सौ बार !
तुम जीवन हो ,तुम जीवन हो !!
.......
जन से प्रीत भई जीवन को ,
निर्जन को लांघ आया हूँ इक पल में , जो मेरा पल था ,
समय के कष्टावृत पलों का योग ,
अब जीवन के सब पल मेरे ,
सुखावरण में बंधे पड़े से ,
खोलूँगा जीवन संध्या में ,
बीते ,रीते जीवन की स्मृति चिन्ह बना !!
...........
आग मांगता है दिल बार बार ,
धड़कने बुझा देती हैं हौसले इसके !!
.........
जिगर चाहता है वो , जिन्दा शहीदों के ,
मुर्दों के सहारे देश जीता नहीं !!
...........
हिस्स ,....,
वो मांगता ,.....,किस ,
नाग को सर पे चूमे कौन ,.....,
मिस .......!
.........
कष्टों के पर्वत को देना होगा आधार ,
वासुकी सी समस्याओं की रस्सी बना ,
मंदराचल से मन से , मथना होगा संसार ,
देव और दानव का सब बल ,
शाखाओं में धर ले तू ,
फिर मथ सागर , जीवन के सब भोग लगा ,
अमृत पी ,और श्री का करले अंगीकार ,
पर प्रयत्न तो करना होगा ,
कच्छप तो बनना होगा !!
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( शाखाओं :- भुजाएं एवं जंघाएँ )
..............इक युग हो तुम , कोई न माने तो क्या ?
तुम में भी अनगिनत अवतार हुए ,
तुमने नित्य युद्ध लड़ा हर बार ,
तुममे भी सब पैदा हुए और तुम मरे सौ सौ बार !
तुम जीवन हो ,तुम जीवन हो !!
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जन से प्रीत भई जीवन को ,
निर्जन को लांघ आया हूँ इक पल में , जो मेरा पल था ,
समय के कष्टावृत पलों का योग ,
अब जीवन के सब पल मेरे ,
सुखावरण में बंधे पड़े से ,
खोलूँगा जीवन संध्या में ,
बीते ,रीते जीवन की स्मृति चिन्ह बना !!
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आग मांगता है दिल बार बार ,
धड़कने बुझा देती हैं हौसले इसके !!
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जिगर चाहता है वो , जिन्दा शहीदों के ,
मुर्दों के सहारे देश जीता नहीं !!
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हिस्स ,....,
वो मांगता ,.....,किस ,
नाग को सर पे चूमे कौन ,.....,
मिस .......!
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