Tuesday, 7 February 2012

कच्छप   तो  बनना  होगा  इक  बार  ,
कष्टों  के  पर्वत  को  देना  होगा  आधार  ,
वासुकी  सी  समस्याओं  की  रस्सी  बना  ,
मंदराचल  से  मन  से , मथना  होगा  संसार  ,
देव  और  दानव  का  सब  बल  ,
शाखाओं  में  धर  ले  तू  ,
फिर  मथ  सागर  , जीवन  के  सब  भोग  लगा  ,
अमृत  पी  ,और  श्री  का  करले  अंगीकार  ,
पर  प्रयत्न  तो  करना  होगा  ,
कच्छप  तो  बनना  होगा  !!
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(  शाखाओं :-  भुजाएं  एवं   जंघाएँ )

..............इक  युग  हो  तुम  , कोई  न  माने  तो  क्या  ? 
तुम  में  भी  अनगिनत  अवतार  हुए  ,
तुमने  नित्य  युद्ध  लड़ा  हर  बार  ,
तुममे  भी  सब  पैदा  हुए  और  तुम  मरे  सौ  सौ  बार !
तुम  जीवन  हो  ,तुम  जीवन  हो  !!
.......
जन  से  प्रीत  भई  जीवन  को  ,
निर्जन  को  लांघ  आया  हूँ  इक  पल  में  , जो  मेरा  पल  था  ,
समय  के  कष्टावृत  पलों  का  योग  ,
अब  जीवन  के  सब  पल  मेरे  ,
सुखावरण  में  बंधे  पड़े   से  ,
खोलूँगा  जीवन  संध्या  में  ,
बीते  ,रीते  जीवन  की  स्मृति  चिन्ह  बना !!
...........
आग  मांगता  है  दिल  बार  बार  ,
धड़कने  बुझा  देती  हैं  हौसले  इसके  !!
.........
जिगर  चाहता  है  वो  , जिन्दा  शहीदों  के  ,
मुर्दों  के  सहारे  देश  जीता  नहीं  !!
...........
हिस्स  ,....,
वो  मांगता  ,.....,किस  ,
नाग  को  सर  पे  चूमे  कौन  ,.....,
मिस .......!
.........
मुक्तिबोध  हुआ  बहुत  बार  मुझे  ,
पर  जीवन  सम्मोहित  कर ,
फिर  निगल  जाता  मुझे  !!
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परिपेक्ष्य  बदलते  रहे  और  बदलता  रहा  मैं  ,
गति  में  जीवन  ,
और  जीवन  में  गति  , लाता  रहा  मैं  !!



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