वाये किस्मत ! शिकायत थी तो कहा होता ,
मैं अंजुमन से उठ जाता तभी ,
मुझे मालूम क्या था , ख़ुदा मेरे !
ठहरे पानी में कंक्कर गिराया था मैंने !
मुझे क्या मालूम था महफ़िल के बदले हैं उसूल ,
मुझे तो सागर ओ मीना की सूरत देखनी थी बस ,
मुझे मालूम था , जेब ख़ाली है मेरी ,
पर ना साक़ी , ना मयखाना , ना सागर ओ मीना की सूरत ?
वाये किस्मत ! क्यों रिंद को बेघर बेआस कर दिया तूने ?
कल फिर मेरी जेब खनकेगी , और खनकेगा पैमाना ,
ख़ुदा होगा मेहरबान तो पूछूंगा तुझे ,
क्यों तू अपने चाहने वालों को , बेईज्ज़त करता है साक़ी !!
( वाये किस्मत :- हाय री किस्मत )
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