Thursday, 16 February 2012

लब  सी  लिए  क्यों  ?  बात  है  कुछ  क्या ?
इस  नाराज़गी  के  चलते , ख़ुदा  को  क्या मनाऊँ !
किस्मतों  को  मेरी  कुछ ज़रूर  हो  गया  है ,
देवता   सारे  हो  गये  हैं ,  अपने मंदिरों  में बंद !
दफ्तर  में  साहेब नाराज़ ,  घर  में  साहिबा  खफा ,
मंदिर  में  देवता  का  कोप ,  स्वयं का  दिल  दिमाग  बंद !
अब  कुछ  बोलो  भी  महाराज ,  कुछ  हो  गया  है  क्या ,
सब्जी  आई  घटिया  या ,  साड़ी  ना  आई  पसंद ? 
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ज़ालिम  को  खूब  आया  , हमको  नशा  कराना ,
भर  भर  के  आँखें शोख़ , मुझपे  उँडेलीं  बस  सब  !! 

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अजब  परेशानी  है  मेरे  दिल   में  आज ,
ना  की  तो  वो  गया ,  हाँ  की  तो  मैं !


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