लब सी लिए क्यों ? बात है कुछ क्या ?
इस नाराज़गी के चलते , ख़ुदा को क्या मनाऊँ !
किस्मतों को मेरी कुछ ज़रूर हो गया है ,
देवता सारे हो गये हैं , अपने मंदिरों में बंद !
दफ्तर में साहेब नाराज़ , घर में साहिबा खफा ,
मंदिर में देवता का कोप , स्वयं का दिल दिमाग बंद !
अब कुछ बोलो भी महाराज , कुछ हो गया है क्या ,
सब्जी आई घटिया या , साड़ी ना आई पसंद ?
..............
ज़ालिम को खूब आया , हमको नशा कराना ,
भर भर के आँखें शोख़ , मुझपे उँडेलीं बस सब !!
............
अजब परेशानी है मेरे दिल में आज ,
ना की तो वो गया , हाँ की तो मैं !
इस नाराज़गी के चलते , ख़ुदा को क्या मनाऊँ !
किस्मतों को मेरी कुछ ज़रूर हो गया है ,
देवता सारे हो गये हैं , अपने मंदिरों में बंद !
दफ्तर में साहेब नाराज़ , घर में साहिबा खफा ,
मंदिर में देवता का कोप , स्वयं का दिल दिमाग बंद !
अब कुछ बोलो भी महाराज , कुछ हो गया है क्या ,
सब्जी आई घटिया या , साड़ी ना आई पसंद ?
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ज़ालिम को खूब आया , हमको नशा कराना ,
भर भर के आँखें शोख़ , मुझपे उँडेलीं बस सब !!
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अजब परेशानी है मेरे दिल में आज ,
ना की तो वो गया , हाँ की तो मैं !
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