Wednesday, 22 February 2012

सातों  दिन  और  बारहों  मॉस  ,  रहो  ना   उदास  तुम ,
इसलिए  मौसम  कई  रंग  के  रच  दिए  मैंने  ,  पर  ,
तुम ,  फिर  भी  गिला  करते  हो  ,  शरद  में  सर्दी  का ,
ग्रीष्म  में  गर्मी  का ,  बरसात  में  बारिश  का  , 
पतझड़  में  आँधियों  का  ,  और  बसंत  में  अलर्जी  का ,
अब  मौसम  प्यार  का  लाया  हूँ ,  जिसमें  सावन  के  अंधे  को ,
हरा  ही  हरा  नज़र  आता  है  ,  शायद  खुश  रह  सको  तुम  अब !!  

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सुर्ख़ियों  में  रहना  सीख  गये  हैं  वो  अब ,
जब  भी  करते  हैं  , बात  उल्टी  करते  हैं ज़मानें से  !!
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मैं  ना  ज़मानें  का  हूँ , ना  ज़मानें  के  बाहर  का ,
दर्द  हूँ  दिल  जिगर  का , जिसका  होता  हूँ  छुपा  लेता  है  मुझे !!
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दिल  को  तोड़  आये  तुम  मेरे क्यों कर ,
बोले ,  बस देखना  था , खिलौना  चलता है कैसे !! 
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मुद्दत  से  तलाश  में  था  , आज  मिल  भी गये  अचानक  वो ,
ना  पूछो  हुआ  क्या  क्या , लब  सिले , बस  सिले ही  रहे !!
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सीधे  सीधे  बता  दे  यारा  ,  अब  कोई  बात  नई  होती  नहीं ,
ना  तो  दिल  टूटे  गम  में  , ना  ख़ुशी  में  पगलाता  हूँ !!
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खूँ  ही  था  जो  दिल  में  था , पर  जम  गया ना  डर  से  क्यों ?
अरे  जलाया  हमदर्दों  ने  था  , जब  देखो  उबलता  है अब !!
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सही  को  सही  और  गलत  को  गलत कहता , तो  हूँ ,
पर  सहता  भी  हूँ  ख़ामियाज़ा  बहुत ,  नुक्ताचीनियों  का !!  
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चाँद  उतर  आया  था  मेरे  पास ,
लौटा  मैनें  दिया  , तारों  की  उदासी  जान !!
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महफ़िलों  में  रंग  नये  थे  पर , सरसराहट  थी  बहुत मेरे  आने  से ,
यार  इस   बेरंग  बेनूर  ,  बुढ़ऊ  का  कोई  नगमा  ग़ुम  तो  नहीं ?
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सिद्ध हस्तों  के  हाथों  से  भी कांच टूटे  हैं  कई  बार ,
जाम  टूटा  है  हाथों  से  मेरे , कोई  बात  नहीं , मदहोश  था  मैं !!
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आज  कोई बात  है ,  छलका  है  जो  पैमाना  दिल  का ,
पर  जाहिर  ही  करो  महफ़िल  में , मैंने ना कहा !!

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