Saturday, 11 February 2012

बंद  थी  पलकें  मेरी  और  सोच  में  डूबी  थी  में  ,
जाने  क्यों  एहसास  तेरे  होने  का  हो  आया  यूँ  ,
जैसे  चौंका  दिया  हो  , गुंजार  ने  भंवरे  की  ,
अधखिली  कली  को  , इक  फूल  बनाया  हो  ज्यों !!
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मेरी  आँख  भर  आई  , ज़माने  बाद  ,
तेरे  जिक्र  के  बाद  , महफ़िल  में  मेरा  नाम  आया  !
किस्मत  को  मेरी  कहिये  क्या  ,
मुद्दत  बाद  साक़ी  का  पयाम  मेरे  नाम  आया  !!

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प्रीत  थी  अपनों  से  तो ,  कड़वे  बोल  बोल  आया ,
मालूम  नहीं  दवा  समझेंगे वो , या  समझेंगे  रोग ,
मुझे  तो  जहर  और  अमृत  दोनों  में  भेद  नहीं ,
मैंने  तो  मिटाए  हैं , दोनों  से  असाध्य  माने  गये  रोग !!

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