बेईमानी करे जाता हूँ अपने से मैं ,
और भ्रम पाले हूँ , बख्शा जाऊंगा !!
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गत साल मृत्यु को भेंट किये मैंने ,
शेष जो जीवन है जी लूं अब !!
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जीत जाता हूँ तो , जीत जाता है अहं मेरा ,
और हार जाता हूँ तो भक्ति में गुज़र होती है !!
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आया है फिर वही मौसम बहलानें को ,
पर दिल है मेरा डूबे जाता है क्षितिज में आज !!
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संभव है झुंडों के झुण्ड गिरें समर में ,
पर समर होगा अमर ना भूल ,
ना भूल जीत किसी की हो ,
नाम लिखा जाएगा तेरा वीरों में ,
भागेगा तो शायद ही रणछोड़ बन पाए तू ,
हर कोई कृष्ण हो नहीं सकता ,
और सब विजेता हों , आवश्यक ये भी नहीं !!
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