Sunday, 5 February 2012

कटेगा  फिर  मेरा  वक्त  सुनहरे  किनारों  की  तरह ,
ऐ नदी  बहती  जा  बहती  जा , सुरमई धारे  बन !
संगीत  के  झूले  पे  झूले  जाए  मेरा  मन तरंगित  हो ,
तू  मेरा  सुर  बन  जा , तू  मेरा  ताल  कहरवा  बन !
ये  जीवन   के  झमेले  ,  मेले  बन लगेंगे  हर  बरस ,
तू  बस  झेलता  जा  झेलता  जा ,  इक  बच्चा बन  !
गुब्बारा  फूटेगा  तो  बचपन  तड़पेगा  ही  पल  भर ,
फिर  बहल  जाएगा , लहराएगा , मन , पतंग इक  बन !
शाम  आयेगी  थका  होगा  परिश्रम  से  जब  तन  मन ,
देखना  तुम , स्वप्न सुनहले  पूर्ण  हो ,  दुलारेंगे  प्रेयसी  बन !!     

No comments:

Post a Comment