Sunday, 12 February 2012


चलो   जिंदगी   का   कबाड़   बेच   आऊँ  आज  ,
बहुत   दिन   हुए   घर   के ,  भण्डार ,  में   घुसे   हुए   ,
धूल    भी   है   बहुत   ,  जाले   मकड़ी   के  ,
पाँव   धरने   को   भी   जगह   ना   बची   कुछ  ,
कुछ   तो   फेंकना   होगा   ,
नया   बेकार   सामान   रखने   को  !
सबसे   पहले   तो   किताबें   रद्दी   हैं   ,
छेड़ता   हूँ   उनको   मैं  ,
हिसाब   बरकत   राम  का  ,
अपने   ज़माने   की   सबसे   अच्छी   किताब  , 
हिसाब   की  ,
अब   सिलेबस   से   बाहर   हुयी   ,
व्यवहार   गणित   अब   व्यवहार   में   नहीं   आता  ,
ठीक   है   बेच   दो   अब  !
दादाजी   की   डायरी  ,
चीफ   वैक्सिनेटिंग    स्टाफ   पंजाब  ,
1919  ,  वार्ड    वार   2  ,
दज़ला   फ़रात   ,  कुछ   संस्मरण   ,
कुछ   फार्मूले   ,  आम   रोगों   की   दवाओं   के   ,
बेकार   अब  ,
ठीक   है   ,  फेंको   अब  ,
दादाजी   की   आत्मकथा   ,
कितना   पढ़े   ,
कैसे   पहुंचे   पैदल   लाहौर   ,
कैसे   बारह   वर्ष   के   हिन्दू   बच्चे    को   ,
उसका   बिगाड़ते   हुए  ना  धर्मं     ,
एक   मुसलमान   ने   जीवन   के  कैसे   दिए  गुर  ,
कैसे   वो   मुस्लिम   बूढ़ा   ,
बैठ   दरवाज़े   पे   देता   निर्देश  ,
बेटा   ,  चूल्हे   पे   पानी   धर   ,
निकल   जाओ   जंगल   पानी   को   ,
आते ही   पानी  गर्म  होगा   ,  नहा   लेना   ,
खाना   तक   बनाना   ,  दरवाज़े   के   बाहर   बैठ   ,
सिखाया   सब  , 
ताकि    ब्राह्मन   बच्चे    का   धर्म   बर्बाद   ना   हो  ,
दिल   छलक   आया   , 
बड़े   दर्द   से   कहानी   को   कबाड़   बनाया   ,
पिताजी   की   कुच्छ   पुरानी   किताबें   ,
तीर्थ   यात्राओं   के   संस्मरण   ,
और   भी   बहुत   सी  अनछुई   ,  अनपढ़ी   किताबें  ,
सब   कबाड़   ,  फेंको   भाई   !
दादाजी   का   लाहौर   से   लाया   ,
शीशम   का   फर्नीचर   ,
अब   तक   दीमक   से   सुरक्षित   ,
पर   पुराना  , 
घर   के   लोगों   की   आँखों   को   खटकता   ,
ठीक   है   तुम   खुश   तो   मैं   खुश   ,
फेंको   ,
दादाजी   का   हुक्का   कांसे   का   ,
जिसको   कोई   हाथ   तक   नहीं   लगा   सकता   था  , इक  दिन  ,
और   इसके   साथ   जुड़ी   यादें   ,  सब   फेंको   सब   बेकार   हैं   अब  ,
जिगर   कट   गया   मेरा   ,
पर   कबाड़   को   घर   में   जगह   नहीं   अब   ,
घर   में   बहू   बेटों   का   सामान   भी   ज़रूरी   है   अब  ,
फेंको   सब   यादें   भी   फ़ेंक   दो   ,
जो   जुड़ी   हुई   हैं   जीवन   से   मेरे   ,  उफ़   भी   ना   करूंगा   मैं   ,
पर   मुझे   जाने   दो   ,
और   मुझसे   पूछना   भी   मत   ,
टूट   जाऊंगा   ,  इजाज़त   है   तुम्हें   ,
चलो   जिंदगी   का   कबाड़   बेच   दो   सब   ,
बुजुर्गों   की   , सब   तस्वीरों   और   ,  यादों   के   साथ  !!




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