Saturday, 4 February 2012

जब  से  विकास  में  तेज़ी  आई  है ,
खिली  हैं  बांछें  गधे  की  आँखों  तक  ,
अब  गधे  का  काम  या  तो  मशीनें  करती  हैं ,
या  करते  हैं  कुछ  गधे  इमानदार !!

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आधे   अधूरे   से   पल   हैं   मेरे   कुछ  ,
पूरा   होना   जिनकी   किस्मत   में   नहीं   है  !
वो   मचल   के   सामने   आते   हैं   कई   बार  ,
पर   बनना   बिगड़ी   बातों   का   ,  इतना   आसाँ   नहीं   है  !!
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दीमक  परेशाँ  है  आजकल  ,
किताबें  ,  कलेवे  से  गायब हो रहीं  हैं ,
अपील  कर  रही  हैं  वो  ,
उन्हें  , एँ
डेंजर्ड स्पीसिज़ , घोषित  किया  जाए !!
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आंसू  की  लड़ी  को  , यूँ  ही  बोल  बैठा ,
के  गिर  के  बिखरना , अच्छा  नहीं  है कुछ !
पलकों  ही  में  ठहरो  ,  मुझे  पीना  आ  गया  है ,
आंसू  शर्माए  ऐसे  , अब  दिखते  भी  नहीं  हैं !!

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हाय   क्यों   उंगलियाँ   करती    हो   बगल   में   मेरी  ,
मेरा   मन   तो   पहले   ही   गुदगुदाता    है   ,  शरद   में   !
हाय   आँखों   के   इशारे   करे    जाती   हो   क्यों  ,
आने   तो   दो   सजन   को   दहलीज़   पे   घर   की  , शरद   में  !
मैं   भी   कर   आऊंगी   बदनाम   जहां भर   में   फिर  ,
तड़पाना   मुझे   भी   आता   है   उंगलिओं   से   ,  शरद   में  !
सखी   छोड़ो   भी ,  छोड़ो   भी   ,  ज़िद   न   करो   ,
कल   आना   फिर   मिल   बैठ   ,  सताना   जी   भर   ,  शरद   में  !!
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गुफ़्तगू   मुझ   से   भी   कर   लेना   ,
अजनबी   ही   सही ,  साया   हूँ   तेरा   !!
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तेरी   उँगलियों   पे   नाचूं   ,  कठपुतली   हूँ   तेरी  ,
साए  की  क्या  बिसात  ,  देवदारों  से  परे  हो  जाए  !!
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साज़   तो   बज   उठता   है   खुद   से   , 
जब   उस्ताद   की   उंगलियाँ   छू   जाती   हैं   !!

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