लट उलझी है तो उलझी रहे , मेरे यार की ,
लगते हैं परेशानी में शम्ये बज़्म वो !!
फिरने तो दो कूचे में दो चार बार यूं ,
के जैसे गुम आज हो गया हो दिल दिमाग यार का !!
इन्हीं हालातों से गुज़रा हूँ मैं भी यार ,
समझे तो कोई दिल की बात , जब दिल से दूर हो !!
चंद ख्वाब उनके हैं और चंद हैं मेरे ,
मालूम तो हो यार को , मिल बैठ हों पूरे !!
लट उलझी है तो उलझी रहे , मेरे यार की ,
लगते हैं परेशानी में शम्ये बज़्म वो !!
………………..
शम्ये बज़्म ( महफ़िल में जलने वाला चिराग़ )
No comments:
Post a Comment