मिल जायेंगे तुम्हें भी बहुत से नज़र बट्टू ,
ख़ुद को बचानें को , दुनियाँ की नज़र से ,
नज़र जो तुम्हें लगता है , तुम्हें लगती है ,
और तुम हो जाते हो लगातार असफल , या परेशान ,
है कोई ज़मानें में जो , तुम्हें बढ़नें नहीं देता ,
और खुश रहता है तुम्हारी , परेशानी में ,
उसका सारा ध्यान ख़ुद से अधिक , रहता है ऊपर तुम्हारे ,
वो अपनें विकास को उपेक्षित कर , तुम्हें गिराता है ,
पर क्या ये सब होता है हमेशा , क्या ये है केवल सच ?
कहीं तुम छुपते तो नहीं हो , मन से अपने ?
जो जानता है सब कारण , तुम्हारी असफलताओं के ,
तुम उसे रखते तो नहीं नज़र बट्टू के पीछे ,
ताकि ज़माने से छुप जाएँ वो और असल कारण ? और तुम भी ,
ज़रा निकलो इन ढकोंसलों से बाहर तुम ,
और जानों सत्य कारण , तुम्हारी , सफलता असफलता का ,
अगर दुश्मन भी है बीच , तो पहचानों उसे ,
और जीतो उसे प्यार से , व्यवहार से या युद्ध से ,
पर न लटकाओ नज़र बट्टू ये घर बाहर ,
और दिखाओ न के तुम भी हो अन्धविश्वास का हिस्सा ,
जो स्वयं के सफल होने को ,
अपनी अबोध संतान तक की बलि देते हैं ,
या दण्डित करते हैं स्वयं को ,
या किसी की हत्या तक हैं कर देते ,
या बलि देते भगवान् को तुष्ट करने को ,
या फिर फेंक आते हो ग्रहों का टाला चौबाटे में ,
उन स्वस्थ मन अबोधों को भी , अपनी लप्पेट में लेने को ,
क्या करूँ अपेक्षा टूटेंगे नज़र बट्टू ये सब ,
और घर लगेगा घर , घर बाहर , सब ओर ?
और लौटोगे तुम भी सत्य की ओर , और करोगे स्वयं का ,
बिना परदे के अंगीकार ? अगर हाँ , बधाई हो तुम्हें ,
अगर ना तो लटकाओ तुम भी नज़र बट्टू दो चार ,
और भले चंगे घर को राक्षस रूप देदो ,
और धकेलो देश को फिर गुलामी की ओर ,
स्वयं को , रख भुलावों में !!
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