समझ लो तुम कहानियां मैं गढ़ा करता नहीं ,
पर जीवन जो , संवेदना से हैं परे , पढ़ा करता नहीं ,
यहाँ सब लगे हुए हैं , अपने अपने सत्य के पीछे ,
पर जीवन तो जीना है , इसी पल में , समझौता , हो ही जाता है ,
नहीं कहता तुम गंगाजल बनों , पर कीचड़ भी तो बनना सही है क्या ?
तुम कीचड़ में फँस भी जाते हो तो ,
कमल बन के निकल आओ तो , बेहतर है ,
यहाँ सब हैं कांच के घर में , पत्थर कौन मारेगा ?
पर जाना तो सबको है इक दिन भगवान् के घर में ,
न दो भिक्षा तुम , पर अलख तो जगाने दो ,
न जाने किस घड़ी , मेरा जीवन , सुधर जाए वाल्मिक सा !!
.......................
हलाहल पी तो लूँगा गटागट मैं ,
पर शिव तो हूँ नहीं बन जाऊंगा नीलकंठ पल में मैं ,
मुझे हल्के हल्के से सत्य के पास आने दो ,
निचुड़नें दो विष को मुझसे , पीते पीते , छलनी की तरह ,
हो सकता है कुछ विष निर्विश बन निकल जाए ,
धरा का कुछ कल्याण हो जाए , मुझमें गुण आधान हो जाए ,
सुना है सब्र का फल मीठा , कुछ धीरज धरो तुम ,
तुम भी मेरे साथ फल खाना , जब थोड़ा ज्ञान हो जाए !!
......................
उद्वेग में ज़माना है , पिछड़ जाएँ न कुछ पल हम ,
और इसी चिता में जल जल , पल सारे जला डाले !
बचपन सब जला डाले , जवानी सब मिटा डाली ,
बचा कुछ शेष चिंता की चिता से , तो राख बस ख़ाली !!
पर जीवन जो , संवेदना से हैं परे , पढ़ा करता नहीं ,
यहाँ सब लगे हुए हैं , अपने अपने सत्य के पीछे ,
पर जीवन तो जीना है , इसी पल में , समझौता , हो ही जाता है ,
नहीं कहता तुम गंगाजल बनों , पर कीचड़ भी तो बनना सही है क्या ?
तुम कीचड़ में फँस भी जाते हो तो ,
कमल बन के निकल आओ तो , बेहतर है ,
यहाँ सब हैं कांच के घर में , पत्थर कौन मारेगा ?
पर जाना तो सबको है इक दिन भगवान् के घर में ,
न दो भिक्षा तुम , पर अलख तो जगाने दो ,
न जाने किस घड़ी , मेरा जीवन , सुधर जाए वाल्मिक सा !!
.......................
हलाहल पी तो लूँगा गटागट मैं ,
पर शिव तो हूँ नहीं बन जाऊंगा नीलकंठ पल में मैं ,
मुझे हल्के हल्के से सत्य के पास आने दो ,
निचुड़नें दो विष को मुझसे , पीते पीते , छलनी की तरह ,
हो सकता है कुछ विष निर्विश बन निकल जाए ,
धरा का कुछ कल्याण हो जाए , मुझमें गुण आधान हो जाए ,
सुना है सब्र का फल मीठा , कुछ धीरज धरो तुम ,
तुम भी मेरे साथ फल खाना , जब थोड़ा ज्ञान हो जाए !!
......................
उद्वेग में ज़माना है , पिछड़ जाएँ न कुछ पल हम ,
और इसी चिता में जल जल , पल सारे जला डाले !
बचपन सब जला डाले , जवानी सब मिटा डाली ,
बचा कुछ शेष चिंता की चिता से , तो राख बस ख़ाली !!
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