Saturday, 25 February 2012

मैं  अब  ५७  का  हूँ  ,
पर  दिल  कभी  बचपन  का  ,
कभी  जवानी  का  ,
और  कभी  बुढ़ापे  का  है ,
यूँ  तो  शरीर  भी  मेरा ,
और  दिल  भी  मेरा  है ,
पर  दिल  की  अधिक  सुनता  हूँ  मैं !!  
मुट्ठी  भर  कमर  हो  , और  भारी  बदन   ,
कांच  सी  खनक  हो  , मस्त  हो  मदन  ,
नशा  हो  बाम  तक  लबालब  भरा  ,
ऐसे  पैमाने   को  छलकने  न  दूं  ,
गटागट  , गटागट  , पिए  जाऊं  मैं  ,
और  दर्शन  तेरा  फिर  किये  जाऊं  मैं  !!

............
चाँद  आमादा  है  फिर  चढ़ने   को  ,
और 
चाँदखुमारी  बीती  शब्  की  ,
मेरी  आँखों  से  उतरी  नहीं  है  !!

...........
झूम  के  बरसो  रे  बादल  , दिल  मेरा  भी  बरसने  को  है  ,
खुशबू  हवाओं  में  भीनी भीनी  है  , मेरे  यार  की  !

...........
बियाबान  जंगल  में  सूखे  पत्तों  की  खडखडाहट  ,
देती  है  पता  किसी  जीवन  के  क़दमों  का  ,
और  झट  से  शिकारी  का  निशाना  , बींधे  लक्ष्य  को  ,
फिर  इक  चीख  से  जंगल  दहलता  है  ,
और  सब  प्राण  पंखेरू  बचानें  को  दिशाहीन  भागे  जाते  हैं  ,
जैसे  मैं  भून्चाल  के  आने  पर  ,
भाग  जाता  हूँ  अंधों  की  तरह रात  को  घर  से  बाहर  ,
हा  ! ये  मौत  का  डर  ,जो  पल  पल  डराता  है  जीवन  को  !!

............
नाकामी  रही  नींव  मेरी  तरक्की  की  ,
और  कामयाब  रहा  भूकंपरोधी  प्रयोग !!

.............
तेरी  तस्वीर  गवारा  थी  मुझको ,
दिल  मस्तकलंदर  था  मेरा ,
जाने  क्या  मौसम  बदला  है ,
उखड़े  तुम  और  उखड़े  हम !!

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कोई  मौसम  को  बहलाओ  रूठा  रूठा  लगता  है ,
दोपहरी  में  सिहरन  होती  है  ,  रातों  को  पसीना  आता  है !
इसमें  मौसम  का दोष  है  क्या  ,ये  तो  बीमारी  के  लक्षण  हैं ,
या  तो  बुखार  है  कोई  अंदरूनी , या  दिमाग  का  पुर्जा  ढीला  है !!

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आज  दिल  की  सड़कों  में  बहता  है  सतरंगी  दरिया  ,
जैसे  कुम्भ  का  मेला  लगा  हो  , मन  में  मेरे  !!
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गुजाश्ता  ख्याल  आज  परीशांकुन   है  ,
आँखें  मेरी  फिर  पुरनम  हैं  !
तन्हाई  बस  तन्हाई  , तन्हाई  ,
वक्त  बहुत  है  , और  बेदर्दी  गुम  है  !!

...........
इम्तियाज़  के  घर  मेला  लगा  है  ,  सौदा  ए  सुखन  ले  लूं  आज  !!
........
(  इम्तियाज़  :-  विवेक  ,  - सुखन :- काव्य  लिखने  की  कला )



Thursday, 23 February 2012

तेरी  निगाहों  से  पिया  मैंने समंदर  सा  सुकूँ ,
अब  तो  मंदिर , मस्जिद ,  बेमानी  हैं  मेरे  लिए ,
और  फ़ानी  है  क़ुदरत  का  नज़ारा  आदम  को ,
बस  बेख़ौफ़  मुहब्बत किये  जाता  हूँ  अब !!
मेरे  फायदे  से  नुक्सान  ना   हो  ज़माने  का  ,
तो  घाटे  में  चलता  हूँ  यारो  !
पर  ये  ज़माना  ही  कहता  है  मुझे  ,
मूर्ख  है  साला  , पहले  दर्जे  का  !!

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देख  के  मेरा  लहज़ा  औ  लज्ज़त  जुबां  की  ,
यार  को  शक  है  की  मैं  , मैं  ना  रहा  !!

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आंसू  बोले  तो  हैं  , पर  रो  रो  ,
और  पोंछ  के  मातम  मना  लिया  उसने  !!

..........
खुदा  के  घर  रिंद  का  जाना  ना  हुआ  ,
अपना  समझ  लौट  आया  बार  बार  !!

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ख़ुदा  की  मेहरबानी  से  ,
ख़ुदा  को  वो  ख़ुदा  नहीं  कहते  ,
और  ख़ुदा  बख्शता  उन्हें  भी  है  ,
जो  ख़ुदा  नहीं  कहते  ,
ख़ुदा  की  बख्शिशें  बरसती  हैं  बन्दों  पर  , बराबर  ,
ख़ुदा  है  वो  आखिर  ख़ुदा  ,
कोई  उसको  यूँ  ही  ख़ुदा  नहीं  कहते  !!

............
जुबां  के  तीर , हुए  जिगर  के  पार  ,
खूँ  सूख  गया  , बस  धुंआ  निकला  !!

...........
जुबां  के  तीर , हुए  जिगर  के  पार  ,
खूँ  सूख  गया  , बस  धुआँ  निकला  !!

.........
मुहब्बत  है  ज़मानें  से  मुझे  ,
पर  इतनी  नहीं  कि  मर  जाऊं  मैं  !

Wednesday, 22 February 2012

सातों  दिन  और  बारहों  मॉस  ,  रहो  ना   उदास  तुम ,
इसलिए  मौसम  कई  रंग  के  रच  दिए  मैंने  ,  पर  ,
तुम ,  फिर  भी  गिला  करते  हो  ,  शरद  में  सर्दी  का ,
ग्रीष्म  में  गर्मी  का ,  बरसात  में  बारिश  का  , 
पतझड़  में  आँधियों  का  ,  और  बसंत  में  अलर्जी  का ,
अब  मौसम  प्यार  का  लाया  हूँ ,  जिसमें  सावन  के  अंधे  को ,
हरा  ही  हरा  नज़र  आता  है  ,  शायद  खुश  रह  सको  तुम  अब !!  

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सुर्ख़ियों  में  रहना  सीख  गये  हैं  वो  अब ,
जब  भी  करते  हैं  , बात  उल्टी  करते  हैं ज़मानें से  !!
............
मैं  ना  ज़मानें  का  हूँ , ना  ज़मानें  के  बाहर  का ,
दर्द  हूँ  दिल  जिगर  का , जिसका  होता  हूँ  छुपा  लेता  है  मुझे !!
...........
दिल  को  तोड़  आये  तुम  मेरे क्यों कर ,
बोले ,  बस देखना  था , खिलौना  चलता है कैसे !! 
.........
मुद्दत  से  तलाश  में  था  , आज  मिल  भी गये  अचानक  वो ,
ना  पूछो  हुआ  क्या  क्या , लब  सिले , बस  सिले ही  रहे !!
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सीधे  सीधे  बता  दे  यारा  ,  अब  कोई  बात  नई  होती  नहीं ,
ना  तो  दिल  टूटे  गम  में  , ना  ख़ुशी  में  पगलाता  हूँ !!
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खूँ  ही  था  जो  दिल  में  था , पर  जम  गया ना  डर  से  क्यों ?
अरे  जलाया  हमदर्दों  ने  था  , जब  देखो  उबलता  है अब !!
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सही  को  सही  और  गलत  को  गलत कहता , तो  हूँ ,
पर  सहता  भी  हूँ  ख़ामियाज़ा  बहुत ,  नुक्ताचीनियों  का !!  
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चाँद  उतर  आया  था  मेरे  पास ,
लौटा  मैनें  दिया  , तारों  की  उदासी  जान !!
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महफ़िलों  में  रंग  नये  थे  पर , सरसराहट  थी  बहुत मेरे  आने  से ,
यार  इस   बेरंग  बेनूर  ,  बुढ़ऊ  का  कोई  नगमा  ग़ुम  तो  नहीं ?
............
सिद्ध हस्तों  के  हाथों  से  भी कांच टूटे  हैं  कई  बार ,
जाम  टूटा  है  हाथों  से  मेरे , कोई  बात  नहीं , मदहोश  था  मैं !!
..........
आज  कोई बात  है ,  छलका  है  जो  पैमाना  दिल  का ,
पर  जाहिर  ही  करो  महफ़िल  में , मैंने ना कहा !!

Tuesday, 21 February 2012

रोयेंगे  बहुत ,  रोयेंगे  बहुत  , 
अरमाँ  मेरे  दिल  के  आज ,
मंजिल  के  करीब  आने  पर  ,
हिम्मत  ने  मेरी  दिल  छोड़ा  आज !!

बेईमानी   करे   जाता   हूँ   अपने   से   मैं   ,
और   भ्रम  पाले   हूँ   ,  बख्शा   जाऊंगा   !!
……………
गत   साल   मृत्यु   को   भेंट   किये   मैंने   ,
शेष   जो   जीवन   है   जी   लूं   अब   !!
……………..
जीत   जाता   हूँ   तो ,  जीत   जाता   है   अहं    मेरा   ,
और   हार   जाता   हूँ   तो   भक्ति   में   गुज़र   होती   है   !!
…………..
आया   है   फिर   वही   मौसम   बहलानें   को   ,
पर   दिल   है   मेरा   डूबे   जाता   है   क्षितिज   में   आज  !!
…………..
संभव   है   झुंडों   के   झुण्ड   गिरें   समर   में   ,
पर   समर   होगा   अमर   ना   भूल  ,
ना   भूल   जीत   किसी   की   हो   ,
नाम   लिखा   जाएगा   तेरा   वीरों   में   ,
भागेगा   तो   शायद   ही   रणछोड़   बन   पाए   तू   ,
हर   कोई   कृष्ण   हो   नहीं   सकता   ,
और   सब   विजेता   हों   ,  आवश्यक   ये   भी   नहीं  !!
   

जंगल   बौराया   है   आज   ,
शेर   पे   चढ़   माँ  दुर्गा   निकली   है  ,
वन   विहार   को  ,
सब   जंगल   प्राणी   मुग्ध   हुए   से   ,
राजा   को  ,
शक्ति   की   सवारी   बने   ,  देख   रहे   हैं  ,
और   खुश   हैं   ,  अहंकारी   की   गत   देख   ,
अब   जंगल   ,  फल   से   लदा   ,
जीवन   दाता   बन   झुक   आया   है   !!
…………
बसंत   ने   फूलों   का   मुंह   रंग   दिया   , 
सतरंगी   बासंती   !
अब   हँसते   हैं   तो   मधु   बरसता    है   ,  और   ,
केसर   उड़ता   है   मीलों    तक   !!
…………….
होरी   की   रुत   में  ,  गगन   भरा   पानी   से   ,
और   फाग   उड़ाए   हैं   चीड़   के   जंगल   ने   ,
अब   तो   मन   बरसने   को   है   ,
तन   भीगा   बारिश   से   पहले   ही   !!
………………
झनझना   गया   है   अंतर्मन   ,
मौसम   है   उदास   ,
और   वो   देहरी   पे   खड़े   आस   में   हैं   ,
मेरे   क़दमों   की   आहट   की   ,
और   मुझे   जल्दी   नहीं   कोई   आज  ,
बदले   की   रुत   आई   है   तरसाने   की  ,
मनभावन   को   झुलसाने   की  !!

दम   निकले   तो   करें   दफ़्न   की   रस्म   ,
इस   परेशानी   में   ,  यारों   का   दम   निकला  !!
……………
वो   दफ़्न   कर   आये   मुझे   मुर्दा   ,
मेरा   आवारा   दिल   , अब   मेरा   बदन   ढूंढें   !!
……………..
दिल   को   महसूस   हुआ   क्या   ,  मरना   है   क्या   ?
क्या   मालूम  ?
वो   तो   था   बेख़ुदी   के   आलम   में   !!
……………….
मौकाए   वारदात   पे   घर   था   मेरा   ,
पर   इश्क   की   गवाही   दे   कौन   ?
नज़रों   के   तीर   चले   इधर   भी   ,  उधर   भी   ,
कौन   क़त्ल   हुआ  ,  कौन   मुजरिम   ?  क्या   जानूं   !!

Monday, 20 February 2012


मेरी   आँखें   घूमती   हैं   आज  ,
कल   घूमें   न   घूमें   कौन   जानें  ,
जुबां   चलती   है   मेरी   आज   ,
बंद   हो   जाए   कल   , कौन   जानें  ,
धड़कने  ,  धड़काती    हैं  दिल  मेरा   आज  ,
रुक   जाएँ   कल   अचानक   कौन   जानें  ,
मन   मचलता   है   जिज्ञासा   में  आज  ,
थक   जाए   कल   , है   किसे   पता   ,
पर   ये   श्रृष्टि   कल   भी   थी   ,
आज   भी   है   ,  और   रहेगी   कल   भी  ,
मैं   , बदलूँगा  , तुम   बदलोगे   ,
बदलेगा   हर  जड़   चेतन   सब  , बार   बार  ,
पर   रहेगा   ,  कुछ   हमेशा   ,
जिसे   जानता   ना   मैं   ,
और   , अचम्भे   में  , 
कह   देता   हूँ   उसे   ,  कभी   ईश्वर  ,
कभी   ,  ख़ुदा   ,  कभी   गौड   ,
कभी   प्रकृत   , कभी   जो   मन   चाहे  ,
जैसे   शिव  ,  एक   ओंकार  ,  या   कोई   ज्योति   ,  या   शक्ति  ,
जो   रहेगी   हमेशा   ,
और   हमेशा   रहेगी   इक   पहेली   सी  ,
इस   जगत   को   उल्झानें   को   ,  चलाने   को  !!
छोड़  दो  सब  भरोसे  , त्यागो  सब  सवाल  ,
वो  होगा  तुम्हारा  तब  , जिसको  है  सबका  ख्याल  !!
.........
मैं  हूँ  , मुझे  सब  स्वीकार  करते  हैं  ,
पर  मैं  हूँ  , जो  स्वयं  को  नकारता  अक्सर  !!
............

मिल   जायेंगे   तुम्हें   भी   बहुत   से   नज़र   बट्टू   ,
ख़ुद   को   बचानें   को   ,  दुनियाँ   की   नज़र   से  ,
नज़र   जो   तुम्हें   लगता   है  ,  तुम्हें   लगती   है  ,
और   तुम   हो   जाते   हो   लगातार   असफल   ,  या   परेशान  ,
है   कोई   ज़मानें   में   जो   ,  तुम्हें   बढ़नें   नहीं   देता  ,
और   खुश   रहता   है   तुम्हारी   ,  परेशानी   में  ,
उसका   सारा   ध्यान   ख़ुद   से   अधिक  ,  रहता   है   ऊपर   तुम्हारे  ,
वो   अपनें   विकास   को   उपेक्षित    कर  ,  तुम्हें   गिराता   है  ,
पर   क्या   ये   सब   होता   है   हमेशा   , क्या   ये   है   केवल   सच  ?
कहीं   तुम  छुपते   तो   नहीं   हो   ,  मन   से   अपने   ?
जो   जानता   है   सब   कारण ,  तुम्हारी   असफलताओं   के  ,
तुम   उसे   रखते   तो   नहीं   नज़र बट्टू    के   पीछे   ,
ताकि   ज़माने   से   छुप   जाएँ   वो   और   असल   कारण   ?  और   तुम   भी  ,
ज़रा   निकलो   इन   ढकोंसलों   से   बाहर   तुम  , 
और   जानों   सत्य   कारण  , तुम्हारी  , सफलता   असफलता  का   ,
अगर   दुश्मन   भी   है   बीच  ,  तो   पहचानों   उसे   ,
और   जीतो   उसे   प्यार   से   ,  व्यवहार   से   या   युद्ध   से  ,
पर   न   लटकाओ   नज़र   बट्टू   ये   घर   बाहर    , 
और   दिखाओ   न   के   तुम   भी   हो   अन्धविश्वास   का   हिस्सा   ,
जो   स्वयं   के   सफल   होने   को   , 
अपनी   अबोध   संतान   तक   की   बलि   देते   हैं  ,
या   दण्डित   करते   हैं   स्वयं   को   , 
या   किसी   की   हत्या   तक  हैं  कर   देते  ,
या   बलि   देते   भगवान्   को   तुष्ट   करने   को   ,
या   फिर   फेंक   आते   हो   ग्रहों   का   टाला   चौबाटे   में  ,
उन   स्वस्थ मन   अबोधों   को   भी ,  अपनी   लप्पेट   में   लेने   को  ,
क्या   करूँ   अपेक्षा   टूटेंगे   नज़र   बट्टू   ये   सब   ,
और   घर   लगेगा  घर   , घर   बाहर   , सब   ओर   ?
और   लौटोगे   तुम   भी   सत्य   की   ओर   ,  और   करोगे   स्वयं   का   ,
बिना   परदे   के   अंगीकार   ? अगर   हाँ  ,  बधाई   हो   तुम्हें  ,
अगर   ना   तो   लटकाओ   तुम   भी   नज़र   बट्टू   दो   चार  ,
और   भले   चंगे   घर   को   राक्षस    रूप   देदो    , 
और   धकेलो   देश   को   फिर   गुलामी   की   ओर   ,
स्वयं   को   , रख   भुलावों   में  !!


Sunday, 19 February 2012

भावना  में  मनभावन  ने  रुला  रुला  दिया  ,
अब  दुनियाँ  संभालो  कोई  निर्मोही  बन  !!

..........

मेरे   ज़हीन   नक्शानबीस   कोई   इमारत   कर   आमाल   ,
ख़्वाबों   में   मेरे   ,  मेरी   नूरे   नज़र   आती   है   रोज़  रोज़  ,
आशुफ्तगी   में   मैं   हूँ   ,  और   परेशाँ   हूँ   अलग  ,
के   ताजमहल   से   पेश्तर   ,  जीनतकदः    ख्वाबी   मीनार   हो  !!
………………………………..
नक्शानबीस   (  draughtsman )
आमाल   (  execute  )
आशुफ्तगी   (  anxiety )
पेश्तर   (  better )
जीनतकदः   (  प्रेयसी   का   सुसज्जित   निवास   स्थान  )
मीनार   (  tall  light  house  )
...........
हालात   मेरे   काबू   में   रहें ,  चाहता   तो   हूँ  ,
पर   जिंदगी   मेरे   आगोश   में ,  आये   तो   एक   बार  !
फिसलते   हैं   पल   मेरे   हाथों   से ,  नाराज़   से   ,
जैसे   उनसे   मेरा   सदियों  से  , शरीकों   सा   बैर   हो  !!
.........


Saturday, 18 February 2012


लट   उलझी   है   तो   उलझी   रहे   , मेरे   यार   की   ,
लगते   हैं   परेशानी   में   शम्ये बज़्म   वो   !!
फिरने   तो   दो   कूचे   में   दो   चार   बार   यूं  ,
के   जैसे   गुम   आज   हो   गया   हो   दिल   दिमाग   यार   का  !!
इन्हीं   हालातों   से   गुज़रा   हूँ   मैं   भी   यार   ,
समझे   तो   कोई   दिल   की   बात   ,  जब    दिल   से   दूर   हो   !!
चंद   ख्वाब   उनके   हैं   और   चंद   हैं   मेरे  ,
मालूम   तो   हो   यार   को   ,  मिल   बैठ   हों  पूरे  !!
लट   उलझी   है   तो   उलझी   रहे   ,  मेरे   यार  की   ,
लगते   हैं   परेशानी    में   शम्ये   बज़्म   वो   !!
………………..
शम्ये   बज़्म   (  महफ़िल   में   जलने   वाला   चिराग़  )
बोले  जाईये  , बोले  जाईये  , सूफियत  में  आज  ,
मैं  बड़ा  शर्मिंदा  हूँ  , वहशियत  के  बाद  !!
........
दोपहर  जिसकी  , सुबह  उसकी  ही  सनम  ,
मेरा  तो  बस  होना  है  , जो  ख़ुशी  से  हूँ  !!
........
तेरी  ज़मीं  तेरा  आसमान  , तारे  तेरे  सनम  ,
मैं  तो  सिर्फ  ख्वाब  , बस  ख्वाब  हूँ  सनम  !!
...........
सब  अजनबी  हैं  और  हालात  भी  अजनबी  सनम  ,
बस  इक  मैं  और  मैं  सिर्फ  काएनात  में  !!
............
तेरे  ख्वाब  में  था  कोई  तो  , मैं  न  था  सनम  ,
मेरा  तो  अजनबी  है  नाम  , और  अजनबी  बस  हूँ  !!
............
मुझे  चाहिए  तो  सनम  , बस  सनम  , मेरे  सनम  ,
पर  सनम  हो  खुदा  बस  खुदा  , मेरे  सनम  !!

Friday, 17 February 2012

लगता  नहीं  है  दिल  मेरा  अब , यादों  को  चलता  करो ,
सालती  रहेंगी  ये बिन  बात , सालों  साल  तन्हाईयों   में !!
वो  बोलते  थे  जब  ,
ज़माने  का  शोर  , शोर  न  था  ,
वो  चुप  हुए   तो  ,
सांस  भी  शोर  लगता  है  !!
...........
मैं  ढूंढता  हूँ  छाँव  , जो  जलती  दोपहरी  में  मिले  ,
जैसे  तन्हाईओं  के  बाद  , अपना  कोई  मिले  !!
...........
पल  पल  रुलाता  रहा  जिंदगी  को  ,
अब  जिंदगी  रुलाती  है  पल  पल  मुझे !!
............

तेरी  चुप  से  आँधियों  का  अहसास  ,
जाने  क्यों  हवाओं  में  तैर  तैर  गया  !!
..........
मैं  जो  भी  कहूँ  जब  भी कहूँ , उसे  मान  लेना  तुम ,
तुम  मेरे  साँसों  में  हो , उलट  के  आयें  न  आयें  फिर !!
........
जामियें  महाराज  , जो  परोसा  ,  सिर्फ  आपका  ,
मैं  तो  जो  बचा  खा  लूँगा  !
बिल्ली  के  हिस्से  तो  जो  आये  ,  वो  प्रशाद ,
शेर  जी  महाराज ,  पचा  लूँगा !
यहाँ  तो  खटमल  पिस्सू  की  भी  मौज  हो  रही  ,
आप  तो  देश  के  हैं  करणधार !
ना  ना  मेरा  परिचय  ना  पूछिए  ,  सर्वत्र  व्याप्त हूँ ,
जो  ऊपर  या  नीचे  से  दे ,  सिर्फ  उसका !
फिर  आप  तो  सबसे  ऊपर  विराजे  महाराज ,  क्या  करें ,
आपका  सेवक  वफादार  !
ना  ना  जनता  का  कुछ  पूछिए  भी  मत  श्रीमान ,
उनका  ना  कोई  आधार  !
अजी  चिंता  नको ,  जामियें  महाराज ,  जो  परोसा  , सिर्फ  आपका  ,
मैं  जो  बचा  खा  लूँगा !!   
...............
घुंघरुओं को  बाँध  ना  चल  ज़माने  में ,
देखनी  है  परिंदों  की  मौज  अगर  !
बिल्लिओं की  मानिंद  रख  चाल , मगर ,

नीयत  में  खोट  ना  रख  सहम  जायेंगे !!    
वो  बोलते  थे  जब  ,
ज़माने  का  शोर  , शोर  न  था  ,
वो  चुप  हुए   तो  ,
सांस  भी  शोर  लगता  है  !!
...........
मैं  ढूंढता  हूँ  छाँव  , जो  जलती  दोपहरी  में  मिले  ,
जैसे  तन्हाईओं  के  बाद  , अपना  कोई  मिले  !!
...........
पल  पल  रुलाता  रहा  जिंदगी  को  ,
अब  जिंदगी  रुलाती  है  पल  पल  मुझे !!
............

तेरी  चुप  से  आँधियों  का  अहसास  ,
जाने  क्यों  हवाओं  में  तैर  तैर  गया  !!
..........
मैं  जो  भी  कहूँ  जब  भी कहूँ , उसे  मान  लेना  तुम ,
तुम  मेरे  साँसों  में  हो , उलट  के  आयें  न  आयें  फिर !!
........
जामियें  महाराज  , जो  परोसा  ,  सिर्फ  आपका  ,
मैं  तो  जो  बचा  खा  लूँगा  !
बिल्ली  के  हिस्से  तो  जो  आये  ,  वो  प्रशाद ,
शेर  जी  महाराज ,  पचा  लूँगा !
यहाँ  तो  खटमल  पिस्सू  की  भी  मौज  हो  रही  ,
आप  तो  देश  के  हैं  करणधार !
ना  ना  मेरा  परिचय  ना  पूछिए  ,  सर्वत्र  व्याप्त हूँ ,
जो  ऊपर  या  नीचे  से  दे ,  सिर्फ  उसका !
फिर  आप  तो  सबसे  ऊपर  विराजे  महाराज ,  क्या  करें ,
आपका  सेवक  वफादार  !
ना  ना  जनता  का  कुछ  पूछिए  भी  मत  श्रीमान ,
उनका  ना  कोई  आधार  !
अजी  चिंता  नको ,  जामियें  महाराज ,  जो  परोसा  , सिर्फ  आपका  ,
मैं  जो  बचा  खा  लूँगा !!   
...............
घुंघरुओं को  बाँध  ना  चल  ज़माने  में ,
देखनी  है  परिंदों  की  मौज  अगर  !
बिल्लिओं की  मानिंद  रख  चाल , मगर ,

नीयत  में  खोट  ना  रख  सहम  जायेंगे !!    

Thursday, 16 February 2012

लब  सी  लिए  क्यों  ?  बात  है  कुछ  क्या ?
इस  नाराज़गी  के  चलते , ख़ुदा  को  क्या मनाऊँ !
किस्मतों  को  मेरी  कुछ ज़रूर  हो  गया  है ,
देवता   सारे  हो  गये  हैं ,  अपने मंदिरों  में बंद !
दफ्तर  में  साहेब नाराज़ ,  घर  में  साहिबा  खफा ,
मंदिर  में  देवता  का  कोप ,  स्वयं का  दिल  दिमाग  बंद !
अब  कुछ  बोलो  भी  महाराज ,  कुछ  हो  गया  है  क्या ,
सब्जी  आई  घटिया  या ,  साड़ी  ना  आई  पसंद ? 
..............

ज़ालिम  को  खूब  आया  , हमको  नशा  कराना ,
भर  भर  के  आँखें शोख़ , मुझपे  उँडेलीं  बस  सब  !! 

............
अजब  परेशानी  है  मेरे  दिल   में  आज ,
ना  की  तो  वो  गया ,  हाँ  की  तो  मैं !


दिल  चाहता  है  मेरा  ,  कोई  दे  न  झूठी तसल्लियाँ ,
सच  बोलता  है  कोई  तो  ,  विश्वास   होता  नहीं  है  !!

.........
रिमोट  से  खेलते  खेलते , खुद  रिमोट  हो  गये  हम ,
रोबोट  हो  गये  हम ,  मोबाइल  हो  गये  हम !!
अब  पास  से  भी  आवाज़ ,कोई  दे  तो  ,  सुन  न  पाते ,
कानों  में  हैण्डज़  फ्री है ,  अपनों  से  दूर  गये  हम !!

...........
कौन  चला  ये  नेह  की  डगर  ,
जानता  भी  है  ,खतरे  हैं  बहुत ?
सफल  हो  गये  तो  हारोगे  बहुत ,
असफल  हो  गये  तो , अफसाना  बन  रहोगे !!
..........

कल कौन  जानें  हम  हों  ना  हों ,
क्यों  ना  आज  ही  करलें ,
सब  जिंदगी  से  सवाल ?
आज  ही  जान  लें  सब जिंदगी  के  उत्तर ,
कल  कौन  जानें  हम  हो  ना  हों  !
ये  उतावला  सा  होना  ,
भविष्य  जाननें  को ,
और  टाल  देना  सब  ,
करने  को  कल  को ,
ये  आदत  सी  हो  गयी है ,
आदमीं  को  क्यों ?
या  ये  मेरी  ही  गुटरगूं है ,
नींद  आने  से  पहले ,  और ,
पेट  भरने  के  बाद !!

Wednesday, 15 February 2012

ज़ुल्म  कमा आये  हैं  वो ,
आँखों  को  लड़ा  आये  हैं  वो !!
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कभी  ऐसा  भी  हुआ  होता  ,  भूले  होते  कुछ ,
इन  यादों  ने  तरसाया  बहुत  ,  रुलाया  बहुत !!
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पंखुड़ी  पंखुड़ी  कर  दिया  गुलाब ,  यार  ने  मेरे  ,
शहादत  गुल  की  हुई ,  कश्मशे  हाँ  ना में  !!
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आसमाँ  अभी  और  ,  अभी  और  ,  अभी  और  भी  हैं ,
सर  पे  मेरे  जो  है ,  तेरा  सहारा  भर  है  !!
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यार  कुछ  तो  सज़ा  उनको  भी  मिले  ज़मानें  में  ,
कर  आये  जो  दीदारे  यार  , दीद  खुलने  से  पहले  !!
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हाले  दिल  दीवारों  को  सुनाया  करते  हैं  रोज़  ,
जाने  कौन  घड़ी  ज़माना  भी  सुनले  साथ  !!
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तरन्नुम  में  वो  चलते  हैं  ,  ठुमक जाता  बदन  उनका ,
लहरें  सी  उठाते  हैं  तालाब  में  मन  के  वो !!
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टूटा  था  मेरा  दीवाना  दिल  ,
और  वो  समझे  रात  हुई !!      
सितारे  रोज़  मिलने  आते  रहे  मुझे  अँधेरे  में  ,
और  नादाँ  , मैं  समझा  रात  हुयी  !!
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चल  जीवन  कश्ती  पानी  में  बिन  डोले  ,
तेरे  पीछे  पानी  बस  जीत  ( v- for victory ) की  कहानी  बोले !!
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रे  मन  झगड़ा  किस  से  करे  तू  ? सपनों  से  ?
चल  फिर  , पूरे  हुए   तो  तेरे  , सपने  रहे  तो  मेरे  !!
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चन्द  घूँट  कड़वे  और  फिर  जलवा  ही  जलवा  देख  ,
जिंदगी  को  भी  कभी  पैमानों  की  मानिंद  देख  !!
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जालिम  बैठा  तो  है  दिल  के  अन्दर  ,
और  चैन  भी  दिल  को  ना  लेने  देता  !!
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जब्र  से  होता  ना  जो  , सब्र  करा  लेता  है  ,
जगता  है  तब  ख्वाब  , जब  आँखों  में  नींद  आती  है  !!
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दिक्कत  हुयी  उन्हें  बस  इतनी  , दिल  को  इक  बार  फिर  समझाना  पड़ा  !
साँसों  की  लड़ी  टूटे  कोई  बात  नहीं  , नादाँ  हैं  जज़्बात  , समझाना  पड़ा  !!

Tuesday, 14 February 2012

धडकनों  की  कसम  , धड़कने  ना  देता  दिल  को  अकेले  में  ,
पर  तुमसे  ख्वाबों  में  मिलने  का  लालच  ,ले  आता  है  , आँखों  में  नींद  मेरी !!
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फिर  लिख  आया  हूँ  वही शब्द  पुराने ,
जिनपे ताजमहल  खड़े  होते  हैं ,  पानी   में ,
फिर  गुनगुना  आया  हूँ , शब्द  वही जाने  पहचाने ,
जिनपे  अफ़साने  घड़े  जाते  हैं  ,  हवा में ,
फिर  उट्ठा  है  शोर  मारो  काटो ,
घर  से  निकले  हैं दीवाने  दो  मिलने  को , ज़माने  में ,
पर  ये  तो  चलन  हमारा  नहीं  ,  बसने  दें ,
बनने  दें  प्यार  का  घर  दस्तूर  नहीं ,
आइ  ,  लव  यू  ,  कहने  वाले  जीने  के  हकदार  नहीं ,
इन्हें बस  इक  कहानी  ही  में  रहने  दो ,
या  फिर  पेड़ों  की  छालों  में  खुदा  रहने  दो ,
प्यार  को  अमरत्व  मिला  है  ,  जीवन  नहीं ,  चाहो  तो  अब  जीने  दो !!

Monday, 13 February 2012

समंदर  भी  गया  और  सेतु  भी गया ,
रह  गया  तो  बस
राम , जीवन  में  मेरे ,
श्यमन्तक  भी  गया  और माखन  भी  गया ,
रह  गया तो  बस  श्याम  जीवन  में  मेरे !!

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मन मेरे  ज़रा  होश  में  आ ,
क्यों  मचलता  है , मदहोशी  में ,
कौन वस्तु  तुम्हें नहीं हासिल ,
तेरे  बस  में  हैं  समंदर सात ,
ज़रा  हाथ  बढ़ा , तोड़  तारे  ला ,
चाँद  है  तेरी  बंद  आँखों  में ,
इन्द्रधनुष  सतरंगी , उपलब्ध  तुझे सपनों के ,
ललचाये  क्यों भीख  को  तू ,
क्यों हाथ  उठाये  वर  मांगे  तू ,
तू  पूर्ण  है ,  ना  अधूरा  बन ,
सम्पूरणता  को सजा जीवन  में ,
मन  मेरे  ज़रा  होश में  आ ,
क्यों  मचलता  है , मदहोशी  में !!  

उल्फत  में  तेरी  चैन  गया  नींद  गयी  , और  गया  दिल  का  क़रार  ,
पर  हाथ  तेरे  sms को  मेरे  , मशहूरी  समझ  करते  रहे  delet !!
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आज  आएगी  तबाही  , मालूम  है  मुझे  ,
बड़े  अदब  से  , मुस्कुराके  , गुज़रे  हैं  , मेरे  पास  से  वो  !!
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आली  जनाब  , आली  हज़रत  , के  पोंछे  से  वो  ,
जेबें  मेरी  सब  साफ़  किये  देते  हैं  !!
कट  जाता  हूँ  कभी  कागज़  से  भी  , 
कभी  तलवारें  भी  गर्दन  पे  मेरी  , बे  असर  साबित  हुयीं !!
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उजाला  पर्वत  पे  देखा , ऊषा  का  भ्रम  हो  गया  , 
क्या  था  इंगित  मन  को  मेरे  , अँधा  यूँ  हो  जाऊंगा  ?
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अपने  ही  ख्याल  में  डूबा  रहा  मैं  , 
और  वक्त  का  आना  जाना  ना  हुवा  !!
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भारी  भरकम  शब्दों  में  , वो  खुद  दबे  और  दबी  पंडिताई  उनकी  , 
और  मैं  गाँव  का  निपट  गंवार  , लोक गीत  बन  छा  गया  !!
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है  मालूम  मुझे  मेरी  सीमाओं  का  विस्तार  , 
इसलिए  कोल्हू  में  भी  निकालूँ  , अनवरत  तेल धार  !!
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कद्रदान  बन  के  मिले  जब  भी  तुम  , 
जुनूने  इश्क  में  मैं  , बड़बड़ाता  ही  रहा  बस  !!

Sunday, 12 February 2012


चलो   जिंदगी   का   कबाड़   बेच   आऊँ  आज  ,
बहुत   दिन   हुए   घर   के ,  भण्डार ,  में   घुसे   हुए   ,
धूल    भी   है   बहुत   ,  जाले   मकड़ी   के  ,
पाँव   धरने   को   भी   जगह   ना   बची   कुछ  ,
कुछ   तो   फेंकना   होगा   ,
नया   बेकार   सामान   रखने   को  !
सबसे   पहले   तो   किताबें   रद्दी   हैं   ,
छेड़ता   हूँ   उनको   मैं  ,
हिसाब   बरकत   राम  का  ,
अपने   ज़माने   की   सबसे   अच्छी   किताब  , 
हिसाब   की  ,
अब   सिलेबस   से   बाहर   हुयी   ,
व्यवहार   गणित   अब   व्यवहार   में   नहीं   आता  ,
ठीक   है   बेच   दो   अब  !
दादाजी   की   डायरी  ,
चीफ   वैक्सिनेटिंग    स्टाफ   पंजाब  ,
1919  ,  वार्ड    वार   2  ,
दज़ला   फ़रात   ,  कुछ   संस्मरण   ,
कुछ   फार्मूले   ,  आम   रोगों   की   दवाओं   के   ,
बेकार   अब  ,
ठीक   है   ,  फेंको   अब  ,
दादाजी   की   आत्मकथा   ,
कितना   पढ़े   ,
कैसे   पहुंचे   पैदल   लाहौर   ,
कैसे   बारह   वर्ष   के   हिन्दू   बच्चे    को   ,
उसका   बिगाड़ते   हुए  ना  धर्मं     ,
एक   मुसलमान   ने   जीवन   के  कैसे   दिए  गुर  ,
कैसे   वो   मुस्लिम   बूढ़ा   ,
बैठ   दरवाज़े   पे   देता   निर्देश  ,
बेटा   ,  चूल्हे   पे   पानी   धर   ,
निकल   जाओ   जंगल   पानी   को   ,
आते ही   पानी  गर्म  होगा   ,  नहा   लेना   ,
खाना   तक   बनाना   ,  दरवाज़े   के   बाहर   बैठ   ,
सिखाया   सब  , 
ताकि    ब्राह्मन   बच्चे    का   धर्म   बर्बाद   ना   हो  ,
दिल   छलक   आया   , 
बड़े   दर्द   से   कहानी   को   कबाड़   बनाया   ,
पिताजी   की   कुच्छ   पुरानी   किताबें   ,
तीर्थ   यात्राओं   के   संस्मरण   ,
और   भी   बहुत   सी  अनछुई   ,  अनपढ़ी   किताबें  ,
सब   कबाड़   ,  फेंको   भाई   !
दादाजी   का   लाहौर   से   लाया   ,
शीशम   का   फर्नीचर   ,
अब   तक   दीमक   से   सुरक्षित   ,
पर   पुराना  , 
घर   के   लोगों   की   आँखों   को   खटकता   ,
ठीक   है   तुम   खुश   तो   मैं   खुश   ,
फेंको   ,
दादाजी   का   हुक्का   कांसे   का   ,
जिसको   कोई   हाथ   तक   नहीं   लगा   सकता   था  , इक  दिन  ,
और   इसके   साथ   जुड़ी   यादें   ,  सब   फेंको   सब   बेकार   हैं   अब  ,
जिगर   कट   गया   मेरा   ,
पर   कबाड़   को   घर   में   जगह   नहीं   अब   ,
घर   में   बहू   बेटों   का   सामान   भी   ज़रूरी   है   अब  ,
फेंको   सब   यादें   भी   फ़ेंक   दो   ,
जो   जुड़ी   हुई   हैं   जीवन   से   मेरे   ,  उफ़   भी   ना   करूंगा   मैं   ,
पर   मुझे   जाने   दो   ,
और   मुझसे   पूछना   भी   मत   ,
टूट   जाऊंगा   ,  इजाज़त   है   तुम्हें   ,
चलो   जिंदगी   का   कबाड़   बेच   दो   सब   ,
बुजुर्गों   की   , सब   तस्वीरों   और   ,  यादों   के   साथ  !!




कुछ  तो  था  मेरा  क़ुसूर  , कुछ  लगाई  ज़माने  ने  ,
आग  में  झुलसता  घर  , अब  उंगलिओं  के  इशारों  पे  है !!
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ना  तो  भूल  पाऊंगा  ज़माने  में  , ना  भूल  पाऊंगा  ज़माने  बाद  ,
वो  तल्ख़  तल्ख़  नज़रें  तेरी  , एहसान  मुझपे  कर  गयीं  आज  !!
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बहुत  रात  बीते  , इक  ख्याल  के  ,
मैं  हूँ  अकेला  , दगा  दे  गया  ,
मुझे  सपनों  की  दुनियां  से  अलग  ले  गया  ,
मेरी  नींदों  को  ले  गया  , उड़ा  आसमान  ,
और  यादों  का  गट्ठर  मुझे  दे  गया  !!
............
खामियां  तुम  देखो  तो  हैं  ,
और  ना  देखो  तो  भी  हैं  मुझमें  ,
मेरा  अंतर  जानता  है  सब  ,
पर  तुम  बताओ  तो  अच्छा  ,
और  ना  बताओ  तो  और  भी  अच्छा  !!
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नूरे  माह  फिर  उतरी  है  शरारा  बनकर  ,
जाने  किस  महफ़िल  को  जलना  है  आज  !!

Saturday, 11 February 2012

बंद  थी  पलकें  मेरी  और  सोच  में  डूबी  थी  में  ,
जाने  क्यों  एहसास  तेरे  होने  का  हो  आया  यूँ  ,
जैसे  चौंका  दिया  हो  , गुंजार  ने  भंवरे  की  ,
अधखिली  कली  को  , इक  फूल  बनाया  हो  ज्यों !!
..................
मेरी  आँख  भर  आई  , ज़माने  बाद  ,
तेरे  जिक्र  के  बाद  , महफ़िल  में  मेरा  नाम  आया  !
किस्मत  को  मेरी  कहिये  क्या  ,
मुद्दत  बाद  साक़ी  का  पयाम  मेरे  नाम  आया  !!

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प्रीत  थी  अपनों  से  तो ,  कड़वे  बोल  बोल  आया ,
मालूम  नहीं  दवा  समझेंगे वो , या  समझेंगे  रोग ,
मुझे  तो  जहर  और  अमृत  दोनों  में  भेद  नहीं ,
मैंने  तो  मिटाए  हैं , दोनों  से  असाध्य  माने  गये  रोग !!

Friday, 10 February 2012

नजदीकियां  कुछ  भी  नहीं  बीच , है  मालूम  ,
पर  पीठ  ही  फेरो  ज़रूरी  तो  नहीं  !!
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ख़ाली  हैं  मेरे  हाथ  तो  उठते  हैं  दुआ  में  ,
ख़ाली  ही  रहने  दे  , आज़ाद  हूँ  अब  !!
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कितना  जानते  हैं  तुम्हें  ?
सात  ही  तो  जन्म  हुए  अभी  साथ  !!
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कुछ  बोलें  तो  गिला  हो  जाता  क्यों  ?
ये  चुप  सी  तो  मुझसे  होती  नहीं !!
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चौतरफा  चर्चे  हैं  , गुनाह  कुछ  हो  तो  सही  ,
दरमियाँ  हमारे  कुछ  है  , तो  परेशां  दुनियां  क्यों  ?
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रूठेंगे  तो  मना  भी  लेंगे  , इस  उम्मीद  में  रूठा  ही  रहा  मैं  ,
अब  सिवा  मान  जाने  के  चारा  क्या  है !! ..,........
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हमारे  हिमाचल  में  मशहूर  है  ,
रुस्सी  घुग्गी  किने  मनाई  , फत  फत  करदी  अप्पू  आई  !
अर्थात  , रूठे  हुओं  को  किसने  मनाया  ,
हार  कर  वो  अपने  आप  मान  जाते  हैं  !!
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पैमाना  ए  दिल  छल्का  है  पहली  बार , 
नूरे  सहर  ऐसा  ही  होता  है  क्या  ? 
नूरे  माह  ऐसी  ही  होती  है  क्या ?
................

"इक  तू  ही  जवान  न  हुआ   दुनियाँ  में  ,
नूरे  सहर  भी  वही  है  , नूरे  माह  भी  वही  ,
फिर  क्यों  दीवाना  हुआ   जाता  है  तू  !!"

(  नूरे  सहर  :-  सुबह  का  उजाला  ,  नूरे  माह :-  चांदनी )
..................
"करार  आ  जाए  तो  अच्छा  , न  आये  तो  भी  अच्छा  ,
दिल  के  बहकने  की  गुंजाईश  नहीं  अब  !!"

Thursday, 9 February 2012


मेरे   बिखरे   हुए   जीवन   का   कोई   सिरा   तो   मिले   ,
समेटूं   किस   तरह  डोर , समझ   आता   नहीं   !
सब   उलझे   हुए   पल   हैं  ,  कुच्छ   जिए   ऐसे    ,
गांठें   ही   गांठें   हैं  ,  सिरे   नदारद  जीवन  के   !
बुनकर   है   जो   जीवन   का   बैठा   है   उदास   ,
सुलझाने   को   हाथों   में   नश्तर केवल   है   पास  !
अब   इक   ही   सहारा   है  , सुलझाए   जो   नसीबों   को  ,
हार   के   जीवन   को   , दूं   उसको   अब  , उलझी   हुई   डोर  !!     


पैमाना  ए  दिल  छल्का  है  पहली  बार ,
नूरे  सहर  ऐसा  ही  होता  है  क्या  ?
नूरे  माह  ऐसी  ही  होती  है  क्या ?
.........
महज़  कालिख  देखी  दिल  की  मेरी  ,
जलाया  किसने  ? ना  पूछा  इक  बार  !!
........
दिल  खाली  है  उनका  , ना  बोल  ,
खाली  इक  बद्दुआ  और  दिल  की  तबाही  है !!
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लाज़िम  नहीं  लहजा  अंगूरी  हो  तेरा  ,
पर  तुर्श  हो  जाए  जिगर  लाज़िम  है  क्या  ?
..........
लफ़्ज़ों  को  उसने  देदी  तरज़ीह  ,
ना  देखा  उसने  अश्कों  का  सैलाब  !
गिला  उसने  किया  मेरे  गिले  का  ,
ना  देखा  उसने  , बर्बादी  है  क्या  !!
.............
हर्फ़  दिख  जाएँ  तेरे  काफी  है  ,
कागज़  में  मज़मून  लिख  ,मैं  नहीं  कहता  !
इक  नज़र  ही  काफी  है  पैमाने  पे  तेरी  ,
हाथों  में  मेरे  दे दे  , मैं  नहीं  कहता  !!

.........
कर  आये  मेरे  खवाबों  का क़त्ल वो , वस्ल से  पहले ,
इक  कब्र  में  ख्वाब  हैं  ,और   इक  कब्र में  हूँ  मैं  अब !!

Wednesday, 8 February 2012

सितारों  को  मुंह  पर  ओढ़े  लेटूं  तब  भी ,
चाँद  झरोखों  से  नज़र  आ  जायेगा  मुझे ,
सम्मोहन  में  मदारी  के  आ  जाता  हूँ मैं ,
मेरा  कृष्ण  कन्हईया  तरसाता  बहुत  है  !!  

.........
उनसे  निपटना  आता  है  मुझे ,
गर्दन  ना  में  हिलाते , हाँ  कहता  हूँ  !!

.......
तुम  चाहो  मुझे , कहाँ  कहता  हूँ  ?
हाँ  कहदो  तुम ,  कहाँ  कहता  हूँ  ?
ना  कहदो  तो  भी  चलेगा  मुझको ,
तेरे  दिल  में  है  हाँ , कहाँ कहता  हूँ ?

..............
अजब  धागे  से  बंधे  दोनों  हैं  हम ,
खींचो तो  छिटकते  हैं , छोड़ो तो लिपटते हैं !!
  
किताबों  के  सवाल  औ  जवाब ,  किताबों  में  रहे  बंद  ,
जिंदगी  के  जवाब , नकदी   में  मिले  ठोकरों  से  मुझे  !
मुझे  मिलते  रहे  उधारी  में  भी  ज्ञान  , ज्ञानियों  से ,
पर  मेरा  मुकद्दर  था  ,  ठोकरें  , तो  खानी  थीं  मुझे !!

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अलग  अंदाज़  में  देखा  है  तुझे ,
भोर  का  तारा  देख  आये  तुम  ,
खिलती  कलियाँ  खोल  आये  तुम ,
बिखरी  शबनम समेट  आये  तुम ,
दामन  में  ख़ुशबू लपेट  आये  तुम ,
दोपहरी  का  चाँद  देख  आये  तुम ,
गोधूली  में  सूरज को  सिन्दूरी  पल  में ,
माँ  के  माथे  पे  टिका  आये  तुम ,
इससे  पहले  कि  बदलो  तुम ,
मेरे  मानस  पटल पे  लिख डालो  ,
मेरे  हो तुम ,  मेरे  हो  तुम !! 

Tuesday, 7 February 2012

खारा  है  !
आंसू  पी  मैंने  कहा  ,
सूख  गए  आँख  ही  में  , बाकी  सब  !!

हा  ! भाग्य   मेरा  !
ललचाये   बच्चे   चाँद   को   , मुख   धरा   का   छोड़  ,
आँख   उनकी   दूध   तक ,  बस   दूध   तक ,  है   मेरे   !
मैं   भी  लटकी   अधर   में ,  चाँद   जैसी   ,  चाँद   से   पहले  ,
पर   गगन   में   छटा   मेरी  , कैसी   सुन्दर ,  जाने   कौन  ?
मेरा   ठाठें   मारता   समंदर   , नीला   नीला   आभा   युक्त  ,
मेरे   मटमैले   ,  हरे ,  पीले  ,  मैदान   पर्वत   सब   चमकते   ,
पर  , ललचाये   बच्चों   को   सिर्फ   ,  आसमान   का  चाँद   चाहिए   ,
सूरज   दिखता   , दिवस   में   , निशा   में  , तारे   ,  निहारिकायें  ,
पर   बच्चे   केवल   चाँद   ,  चाँद   की   रट   लगाए   ,  मचलते  ,
खून   और   दूध   से   सिंचित   ,  मेरे   तल   ,  पर   पलते   , निखरते  ,
हा ! ये   कैसे   बच्चे   हैं   जिन्हें   माँ   न   दिखती   ,  चाँद   दिखता   ,
पर   मैं   अकेली   नहीं  ,  इक   माँ घर  में  और   भी   है   , परित्यक्त   मेरे   जैसी  ,
कहीं   दिखती   तुम्हें   हो   , उसी   से ,  मेरा   दुःख   बाँट   लेना   तुम   ,
उसी   से   नेह   लग   जाए   तुम्हारा   , समझ  लूंगी   उद्धार   अपना    हो   गया  !!