फिर मोहब्बत को भूला सनम याद आया , नजदीकियां गैर से चार दिन न चलीं !
उन को भरम था मैं टूटूंगा , मुझे पक्का था वो टूटेंगे , भरम टूटेगा !!
वो इस उम्मीद में के बोलेगा , रूठा सनम , मेरी परछायिओं से घंटों बतियाते रहे !
और मैं तरसाने को उनके , अपनी परछाई से भी घंटों रूठा ही रहा !!
Wah! Laazawab likhte hain aap. Ishwar se prarthana hai aap yoon hi apne shabdon se hame jagmagate rahen.
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