Tuesday, 13 December 2011


फिर  मोहब्बत  को  भूला  सनम  याद  आया  , नजदीकियां  गैर  से  चार  दिन  न  चलीं  !
उन  को  भरम  था  मैं  टूटूंगा , मुझे  पक्का  था  वो  टूटेंगे  , भरम  टूटेगा  !!

वो  इस  उम्मीद  में  के  बोलेगा  , रूठा  सनम  , मेरी  परछायिओं से  घंटों  बतियाते  रहे  !
और  मैं  तरसाने  को  उनके  , अपनी  परछाई  से  भी  घंटों  रूठा  ही  रहा  !!

1 comment:

  1. Wah! Laazawab likhte hain aap. Ishwar se prarthana hai aap yoon hi apne shabdon se hame jagmagate rahen.

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