जय पलासणियां
Thursday, 15 December 2011
खोलिए दिल के कपाट ,और झांकिए आसमानों में ,
तुम्हारी किस्मत के सितारे इंतज़ार में हैं !
यूँ करते रहोगे मलाल बीते कल की इबारत का और कापियां बंद रखोगे ,
तो आज और कल के कागज़ भी खाली पायेंगे !!
आज मौन को त्यागो बहुत तपस्या की ,
तपस्या की उपलब्धियां रात को गिनना !
युद्ध में तो शस्त्र और युद्ध कौशल ही है वरता ,
राक्ष्शों को तो रन में ही मरना है !!
उसके प्रथम मिलन को स्नेही रात सजने लगी ,
और सजनी द्वन्द में सपनों को सहेजने लगी ,
क्या जाने साजन का प्यार कैसा हो ?
मधुर सपनों का श्रृंगार कैसा हो ?
साजन का स्वर ,कानों में क्या बोलेगा ?
जीवन के अनबूझे भेद खोलेगा ?
या मौन की भाषा राजेगी ?
घूंघट के राज़ खोलेगी ?
या ले चलेगा साजन मुझे हवाओं में ?
या साजन कहीं सनकी तो नहीं ?
तोड़े जो मेरे सपनों को ?
झिंझोड़े जो धरा को प्रलय की तरह ?
और बिखर जाए कहीं मधुमास की रात ?
पर तभी वो नींद से जागा ,
सजनी के द्वन्द से भागा ,
और सपनों को वो सहेजने लगा ,
और सजनी के रंग रंगने लगा ,
और दोनों के मौन समर्पण से ,
मधुमास उनका रचने लगा !!
मुझे बहलाओ ना विचारों के विज्ञापन से ,
मैं मस्ती के सौदे किया करता हूँ !
तेरा बाज़ार सजेगा महारथियों में ,
मैं तो मस्तों के टोले का इकतारा हूँ !!
इकतारे पे धुन छेड़ कोइ मस्ती में ,
मुझे यार के प्यार का राग सुना ,
वो फाग उड़ा था जो केसर का ,
उस रंग से रंगा चित हरता चेहरा दिखा !!
गुलालों की लाली गालों पे तिर आई है ,
आँखों में लाज शर्म घिर आई है ,
पैरों के अंगूठों ने ज़मीं से पानी निकाला है ,
शायद उनको प्यार की खुशबू आई है !!
जाम उठा प्यार से प्यार का , क्यों डरता है ,
बाद ज़माने के कोई सोनी महीवाल उतरता है ,
जी जाएगा तो दिल की कर जाएगा ,
मर जाएगा तब भी दुनिया में कुछ बचता है !!
छलिया है सारा ज़माना , ना बता ,
कुछ हैं यहाँ भी ,जिन्हें दर्द ज़माने का है !
वो फिरते हैं गली गली दर्द मिटाने को ,
और परेशानी में औरों की , घर उनका मूल्य भरता है !!
चाँद को सूरज की क्या ताब दिखाए तू ,
ये तो रोज का जलना है और जल के निखरना है !!
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment