कभी कभी रात अकेली हो जाती है और मुझे बुलाती है साथ देने के लिए ,
और मैं जाग जाता हूँ , आँखें खोल देता हूँ , पर उठता नहीं हूँ ,
मुझे डर हो जाता है , अर्धांग्नी जाग जायेगी , नींद उसकी भी जायेगी ,
पर नींद तो टूट ही जाती है , और मैं रात को डराती आवाजों को सुनता हूँ ,
कभी किसी पंछी का डरा बोल निकल जाता है , कभी चीखता है भयानक सन्नाटा ,
कभी गीदड़ साथी को पुकारे , हुआ ,हुआ , वक्त निकल गया पर एक घर न हुआ ,
कभी कोई मेंढक की बारात चलती , चलो मेले , चलो मेले , कौन कौन ? कौन कौन ?
मैं तैं , मैं तैं , और ये सब टर्राते स्वर हम दोनों का मनोरंजन कर जाते हैं ,
कभी घड़ियाल रात के मौन को तोड़ देता है और उसे वक्त का अंदाजा बताता है ,
किसी आहट पे कुत्ते चौंक जाते और भों भों की रट लगाते , कभी झगडा भी करते ,
बीच बीच , मैं रात को कहानी सुनाता हूँ , बताता हूँ कब कौन सी शरारत हुई थी ,
कब टीचर से मार पिटी थी , कब झील किनारे दलदल में फंसा था ,
कब दोस्तों ने धोखा दिया था , कब दुश्मनों ने सबक इक दिया था , और रात सब ,
ध्यान से सुन रही थी , अब उसका डर भी कहीं निकल गया था , नींद को रात थपथपाने लगी ,
पर अचानक मुर्गे ने बांग इक लगायी , मुल्ला ने भी सुबह होने की देदी बधाई ,
मंदिर के घंटे बजने लगे थे , पेड़ों पर पंछी चहचहाने लगे थे ,
कुत्ते भी थक के अब चूर हो गए थे , मैंने रात को तब देदी विदाई ,
और बोला , मैं जब भी अकेले तुम हो जाना , बस एक आवाज़ मुझको लगाना ,
अब जाओ तुम भी लम्बे जगी हो , कल आना तो मीठा सा सपना लाना , अब सुप्रभात मेरी रात !!
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