Wednesday, 14 December 2011


कभी   कभी   रात   अकेली   हो   जाती   है   और   मुझे   बुलाती   है   साथ   देने   के   लिए  ,
और   मैं  जाग   जाता   हूँ   ,  आँखें   खोल   देता   हूँ  ,  पर  उठता   नहीं   हूँ  ,
मुझे   डर   हो   जाता   है   , अर्धांग्नी   जाग   जायेगी  ,  नींद   उसकी   भी   जायेगी   ,
पर   नींद   तो   टूट   ही   जाती   है  ,  और   मैं   रात   को   डराती   आवाजों   को   सुनता   हूँ  ,
कभी   किसी   पंछी   का   डरा   बोल   निकल   जाता   है   , कभी   चीखता   है   भयानक   सन्नाटा  ,
कभी   गीदड़   साथी   को   पुकारे   ,  हुआ  ,हुआ  ,  वक्त  निकल   गया   पर   एक   घर   न   हुआ  ,
कभी   कोई   मेंढक   की   बारात   चलती   ,  चलो   मेले   ,  चलो   मेले  , कौन   कौन   ?  कौन   कौन  ?
मैं   तैं  ,  मैं   तैं  ,  और   ये   सब   टर्राते   स्वर   हम   दोनों   का   मनोरंजन   कर   जाते   हैं  ,
कभी   घड़ियाल   रात  के   मौन   को   तोड़   देता   है   और   उसे   वक्त   का   अंदाजा   बताता   है  ,
किसी   आहट  पे   कुत्ते   चौंक   जाते   और   भों   भों   की   रट  लगाते   ,  कभी   झगडा   भी   करते  ,
बीच   बीच   ,  मैं   रात   को   कहानी   सुनाता   हूँ   ,  बताता   हूँ   कब   कौन   सी   शरारत   हुई   थी  ,
कब   टीचर   से   मार   पिटी  थी   ,  कब   झील   किनारे   दलदल   में   फंसा   था   , 
कब   दोस्तों   ने   धोखा   दिया   था   ,  कब   दुश्मनों   ने   सबक   इक   दिया   था   ,  और   रात  सब   ,
ध्यान   से   सुन   रही   थी  ,  अब   उसका   डर   भी   कहीं   निकल   गया   था   , नींद   को   रात   थपथपाने   लगी  ,
पर   अचानक   मुर्गे   ने   बांग  इक   लगायी   ,  मुल्ला   ने   भी   सुबह   होने   की   देदी   बधाई  ,
मंदिर   के   घंटे   बजने   लगे   थे   ,  पेड़ों   पर   पंछी   चहचहाने   लगे   थे   ,
कुत्ते   भी   थक   के   अब   चूर   हो   गए   थे  ,  मैंने   रात   को   तब   देदी   विदाई   ,
और   बोला  , मैं   जब   भी   अकेले   तुम   हो   जाना   ,  बस   एक   आवाज़   मुझको   लगाना   , 
अब   जाओ   तुम   भी   लम्बे   जगी   हो   ,  कल   आना   तो   मीठा   सा   सपना   लाना   ,  अब   सुप्रभात   मेरी   रात  !!

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