गरीबों की बस्ती में इक मेरा भी घर है ,
जितना भी दो तुम हलक में फंसता नहीं है ,
अरबों में भी मिल जाए नहीं भूख का अंत ,
और अमीर के घर दो वक्त की रोटी नहीं है !!
जितना भी दो तुम हलक में फंसता नहीं है ,
अरबों में भी मिल जाए नहीं भूख का अंत ,
और अमीर के घर दो वक्त की रोटी नहीं है !!
No comments:
Post a Comment