क़व्वाली की रात आई है , पैमाने छलक जाने दो ,
सूखे हुए होंठों पे , तरावट इक हलकी सी आने दो ,
दिल के ज़ख्मों में दर्द उठता है अभी ,साँस आने दो ,
ढोल मंजीरे , ढप ,बाजा , घुँघरू , तबले की गमक आने दो,
इक तस्वीर यादों से उठाकर ग़ज़ल बन जाए तो गाने दो !!
वो खफा हैं अपने आप से , मुझे कह रहे हैं बुरा भला !
शायद अब बस चलता नहीं , उनका अपने आप पर !!
अबकी बार समझ बूझ ले मन , घर आँगन की बगिया में कुछ ऐसा बो !
पास पड़ोसी नाराज़ न हों , और कैक्टस में भी चन्दन वन सी खुशबू हो !!
अब की बार उनका न आना खटक गया ,
गम को कीली पे टांग , दो घूँट खुशी गटक गया !!
उन्हें शक है मौसम बिन बात बिगड़ जाएगा ,
और मुझे डर है मौसम में बात बिगड़ जायेगी ,
वो घर से चलते ही हर बात में शगुन देखेंगे ,
और मैं बिल्ली का मुंह देख , पहला कदम धरता हूँ ,
वो ज्योतिष को सिरहाने रख , हाथ में मुंह देखें ,
मैं प्रेयसी का दर्शन कर , सूरज का मुख चूमता हूँ ,
अब जीवन में जीतेगा कौन सब को चिंता है ,
वो स्वर्ग के इच्छुक हैं , और मैं नरक का राही हूँ !!
जाने क्यों मन भटक भटक जाता है ,
आता है राहों का साथी वो याद ,
जिसने मुझे बिसराने की कसम खायी है !!
चीड़ के पेड़ पहरेदार बने,
जाने किस राजा रानी का ,
स्वागत करने को आतुर हैं ,
और मैं सुनसान वीराने में ,
इक इंसान को खोज रहा हूँ ,
भगवान् तो मिलने से रहा !!
तू नाप गजों में या मीटर में ,
या बालिश्त, अंगुष्ठ या फुट में ,
मेरा परिमाण रहेगा वही केवल ,
बस इक समाधी में समाएगा !!
घर को आज़ाद करो मेरे ,
मेरे कब्ज़े में है ,
पंचमहाभूतों का मकान ,
मन बुद्धि अहंकार के कब्ज़े में है ,
आत्मा बन गूंगी , साक्षी का वेश धरे ,
कब्जाई की हर हरकत का ,
संवेदन कर , सूक्ष्म प्रहरी बन ,
सन्देश वहन कर परमात्म तक ,
पहुंचाए , और न्याय दिलाये ,
मेरे मन , तन का मोह त्याग ज़रा ,
घर को आज़ाद करो मेरे ,
मेरे कब्ज़े में है !!
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