Monday, 19 December 2011

क़व्वाली   की  रात  आई  है  ,  पैमाने  छलक  जाने  दो ,
सूखे  हुए  होंठों  पे ,  तरावट  इक  हलकी  सी  आने  दो ,
दिल  के  ज़ख्मों  में  दर्द उठता  है  अभी ,साँस  आने  दो ,
ढोल मंजीरे , ढप ,बाजा , घुँघरू , तबले की  गमक आने दो,
इक तस्वीर  यादों से  उठाकर ग़ज़ल बन  जाए  तो  गाने  दो !!






वो  खफा  हैं  अपने  आप  से  , मुझे  कह  रहे  हैं  बुरा  भला  !
शायद अब  बस  चलता  नहीं  , उनका  अपने  आप  पर  !!

अबकी  बार  समझ  बूझ  ले  मन  ,  घर  आँगन  की  बगिया में  कुछ  ऐसा  बो !
पास  पड़ोसी  नाराज़  न  हों  ,   और  कैक्टस में  भी चन्दन  वन  सी  खुशबू  हो !!

अब  की  बार  उनका  न  आना  खटक  गया ,
गम  को  कीली  पे  टांग ,  दो  घूँट खुशी  गटक  गया !!

उन्हें  शक  है मौसम  बिन  बात  बिगड़  जाएगा ,
और  मुझे  डर  है  मौसम में  बात बिगड़  जायेगी ,
वो  घर  से  चलते  ही  हर  बात  में शगुन देखेंगे ,
और  मैं  बिल्ली  का  मुंह देख , पहला  कदम धरता  हूँ ,
वो  ज्योतिष  को  सिरहाने  रख ,  हाथ  में  मुंह  देखें ,
मैं  प्रेयसी  का  दर्शन  कर ,  सूरज  का  मुख चूमता  हूँ ,
अब  जीवन में  जीतेगा  कौन  सब  को  चिंता  है ,
वो  स्वर्ग  के  इच्छुक  हैं , और  मैं  नरक  का  राही  हूँ !!

जाने  क्यों मन  भटक  भटक  जाता  है ,
आता  है  राहों  का  साथी  वो  याद ,
जिसने  मुझे  बिसराने  की कसम खायी  है !!

चीड़  के  पेड़  पहरेदार  बने,
जाने  किस  राजा  रानी  का ,
स्वागत  करने  को  आतुर  हैं ,
और मैं सुनसान  वीराने में ,
इक  इंसान को  खोज  रहा हूँ ,
भगवान् तो  मिलने  से  रहा !! 

तू  नाप  गजों  में  या  मीटर में ,
या बालिश्त, अंगुष्ठ या  फुट में ,
मेरा  परिमाण  रहेगा  वही केवल ,
बस इक  समाधी  में समाएगा !!

घर  को  आज़ाद  करो  मेरे , 
मेरे  कब्ज़े  में  है ,
पंचमहाभूतों  का  मकान , 
मन  बुद्धि अहंकार के  कब्ज़े में है ,
आत्मा  बन  गूंगी , साक्षी  का  वेश  धरे ,
कब्जाई  की हर  हरकत  का ,
संवेदन  कर ,  सूक्ष्म  प्रहरी  बन ,
सन्देश  वहन  कर  परमात्म तक ,
पहुंचाए , और न्याय दिलाये ,
मेरे  मन ,  तन  का  मोह  त्याग  ज़रा ,
घर  को  आज़ाद  करो  मेरे ,
मेरे  कब्ज़े  में  है !!
  
  

  


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